SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 390
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॐ गीता दर्शन भाग-500 क्यों नहीं लगती? शराबी अपने को अलग नहीं रखता। जब शराब पी लेता है, तो बेहोश हो गया, वह प्रकृति का हिस्सा हो गया। अब उसको कोई होश नहीं कि मैं हूं। अब वह गिरता है, तो कड़ा नहीं हो पाता। बैलगाड़ी उलट रही है, आप भी उलट रहे हैं, वह भी उलट रहा है आपके साथ। आप सम्हल गए, बचने लगे। आपका अहंकार आ गया कि मैं बचूं। और शराबी का कोई अहंकार नहीं आया, वे लुढ़क गए। जैसे ही बैलगाड़ी लुढ़की, उसी के साथ लुढ़क गए। उनका कोई विरोध नहीं है, कोई प्रतिरोध नहीं है; को-आपरेशन है, सहयोग है। उनको चोट नहीं लगेगी। छोटे बच्चे गिरते हैं, उनको चोट नहीं लगती। जैसे-जैसे बड़े होने लगते हैं, चोट लगने लगती है। जिस दिन से आपके बच्चे को चोट लगने लगे, समझना कि अहंकार निर्मित हो गया। जब तक उसको चोट नहीं लग रही, तब तक अहंकार नहीं है। वह गिरता है, तो गिरने के साथ होता है। रोकता नहीं कि अरे, मैं गिर रहा हूं। अभी कोई है नहीं, जो गिरने से रोके अपने को। वह गिर जाता है। गिरकर वह उठ जाता है। कहीं कोई चोट घटती नहीं। यह जो कृष्ण का कहना है कि तू जीता ही हुआ है, वह इसीलिए कि तू उस पक्ष में है, जो बुराई के साथ नहीं है। तू विपरीत नहीं बह रहा है, तू साथ बह रहा है। और ये हारे ही हुए हैं। ये विपरीत बह रहे हैं। यह नियति तय हो गई है अर्जुन, इसलिए तू व्यर्थ चिंतित न हो, निस्संदेह तू जीतेगा; युद्ध कर। आज इतना ही। पांच मिनट रुकें, कीर्तन के बाद जाएं। 13601
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy