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________________ साधना के चार चरण 83 करेगा। प्रभावशाली व्यक्ति था। लेकिन हो नहीं पाएगा संन्यासी। से अगर टक्कर लेनी पड़े, तो क्या उपाय है? क्योंकि पुरुष शरीर और अगर संन्यास लेकर बैठ भी जाए कहीं जंगल में ध्यान वगैरह से तो ज्यादा ताकतवर है। इसलिए अमेरिका में नगर-नगर में करने. तो ज्यादा देर नहीं चलेगा ध्यान वगैरह उसका। एक हरिण जजत्स के स्कल खलते जा रहे हैं। स्त्रियां ट्रेनिंग ले रही हैं। और दिखाई पड़ जाएगा और उसके हाथ धनुष-बाण खोजने लगेंगे। | थोड़े सावधान रहना, आज नहीं कल यहां भी लेंगी ही। और एक कौआ ऊपर से बीट कर देगा, तो पत्थर उठाकर उसका अगर जुजुत्सु की ट्रेनिंग ठीक से ले ली हो, तो बड़े से बड़ा वह वहीं फैसला कर देगा। वह जो उसका होना है, जो स्वधर्म है ताकतवर पुरुष साधारण कमनीय स्त्री से हार जाता है। कला क्या उसका, वह योद्धा है। उसमें कहीं भी कोई व्यवस्था नहीं है, जिससे | है? कला यही है, जो कृष्ण कह रहे हैं। कि वह संन्यासी हो सके। जुजुत्सु की कला यह है कि विराट के साथ रहना। इस आदमी तो कृष्ण उससे कह रहे हैं कि तू नदी में उलटे बहने की कोशिश की फिक्र मत करना, विराट की फिक्र करना। इस आदमी से सीधे कर रहा है। अगर तू सोचता है कि मैं ऐसा करूं, वैसा करूं; यह । | मत लड़ना। तुम तो विराट के साथ सहयोग करना। फिर यह ठीक नहीं है, वह ठीक है...। कृष्ण उससे कह रहे हैं, तू सिर्फ बह आदमी नहीं जीत सकेगा। उसके सहयोग का पूरे का पूरा प्रशिक्षण जा, नियति के हाथ में छोड़ दे। तू निमित्त हो जा। उनकी हार है, पूरी साधना है कि विराट से कैसे सहयोग करना।। निश्चित है। और विपक्ष में खड़े योद्धा मेरे मुंह में जा रहे हैं, मृत्यु | | तो जुजुत्सु का पहला नियम है कि जुजुत्सु का साधक जब खड़ा में, यह निश्चित है। वे पहले ही मारे जा चुके हैं। ये द्रोणाचार्य, होगा, तो वह यह नहीं कहता कि मैं लड़ रहा हूं। वह अपने को भीष्म पितामह, ये जयद्रथ और कर्ण, जो महाप्रतापी हैं, महावीर हैं, पहले समर्पित कर देता है विराट को, कि अब मैं परमात्मा को इनसे भी तू भय मत कर। क्योंकि जिनके साथ ये खड़े हैं, वे गलत समर्पित हूं। अगर तेरी मर्जी हो, तो जो हो। फिर वह लड़ता है। फिर लोग हैं। उनके साथ ये पहले ही डूब चुके। लड़ने में वह हमला नहीं करता। जुजुत्सु का साधक हमला नहीं भीष्म पितामह भले आदमी हैं। लेकिन गलत लोगों के साथ करता, सिर्फ हमला सहता है। वह कहता है, तुम मुझे मारो, मैं खडे हैं। अक्सर भले आदमी कमजोर होते हैं। और अक्सर भले सहंगा. क्योंकि परमात्मा मेरे साथ है। आदमी कई दफा चुपचाप बुराई को सह लेते हैं और बुराई के साथ आप जानकर हैरान होंगे कि अगर कोई व्यक्ति बिलकुल शांत खड़े हो जाते हैं। ये जो खड़े हैं बुराई के साथ, ये कितने ही भले सहने को राजी हो और आप सा मार दें उसको और वह जरा भी हों, और इनके पास कितनी ही शक्ति हो, तेरी शक्ति से ये नहीं विरोध ने करे, अचेतन विरोध भी न करे...। साधना यही है। क्योंकि कटेंगे, विराट की शक्ति के विपरीत होने से ये कट गए हैं। अगर कोई घूसा आपको मारने आता है, तो अचेतन आप कड़े हो इस अर्थ को ठीक से समझ लें। जाते हैं। आपने विरोध शुरू कर दिया, आपकी हड्डियां कड़ी हो जाती . तू इन्हें नहीं मार पाएगा। अर्जुन और कर्ण में सीधा मुकाबला हो हैं। जुजुत्सु की कला कहती है कि आपकी हड्डियां अगर कड़ी हो गई सकता था। और कुछ तय करना मुश्किल है कि कौन जीतेगा। वे और उसने चोट मारी, तो कड़े होने की वजह से टूट जाती हैं; उसकी एक ही मां के बेटे हैं। और कर्ण रत्तीभर भी कम नहीं है। डर तो यह चोट से नहीं टूटतीं। अगर आप नर्म रहे और आपने जरा भी रेसिस्ट है कि वह ज्यादा भी साबित हो सकता है। लेकिन हारेगा। कोई नहीं किया, आप सहने को राजी रहे, कि तुम घुसा मारो, हम तुम्हारे ताकत के कारण ही नहीं, हारेगा इसलिए कि विराट की शक्ति के चूंसे को पी जाएंगे, क्योंकि विराट हमारे साथ खड़ा है-उसका हाथ विपरीत खड़ा है। जो विराट चाहता है, उसके विपरीत खड़ा है। | टूट जाएगा; हाथ में फ्रैक्चर हो जाएगा। विराट के विपरीत खड़ा होना खतरनाक है। फिर कभी छोटा आदमी और यह वैज्ञानिक है। इसको आप ऐसा भी देख सकते हैं कि भी हरा सकता है। एक बैलगाड़ी में आप बैठे हैं और एक शराबी बैठा है। बैलगाड़ी जापान में जुजुत्सु, जूडो की कला होती है। उसमें छोटा बच्चा उलट जाए, आपको फ्रैक्चर हो जाएंगे, शराबी को बिलकुल नहीं भी पहलवान को हरा देता है। स्त्री भी पुरुष को हरा देती है। अभी होंगे। शराबी रोज गिर रहा है सड़क पर। कम से कम इतना तो तो पश्चिम में चूंकि स्त्रियों का आंदोलन चलता है, लिब मूवमेंट, | सीखो उससे! कि चोट नहीं खाता। रोज सुबह देखो, फिर ताजे हैं! स्वतंत्रता का, तो सभी स्त्रियां जुजुत्सु सीख रही हैं। क्योंकि पुरुषों नहा-धोकर फिर चले जा रहे हैं! और रोज गिर रहे हैं, इनको चोट 359
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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