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साधना के चार चरण
विज्ञान तो खड़ा ही नियम पर है। अगर जगत में नियम न हो, तो विज्ञान बिलकुल खड़ा नहीं हो सकता। विज्ञान नियम की खोज कर लेता है कि सौ डिग्री पर पानी भाप बनता है। यह नियम की खोज है। अगर कभी निन्यानबे पर बनता हो और कभी डेढ़ सौ पर बनता
और कभी बनता ही न हो, तो फिर विज्ञान खड़ा नहीं हो सकता। विज्ञान नियम का तो पता लगा लिया है, लेकिन वैज्ञानिक से पूछो कि प्रयोजन क्या है ? तो वैज्ञानिक कहता है, प्रयोजन का तो कोई पता नहीं चलता। इसलिए विज्ञान कहता है, प्रयोजन का हमें कोई भी पता नहीं है। हम इतना ही बता सकते हैं कि ऐसा है। क्यों है? किस लिए है ? इसका कोई उत्तर नहीं है। हम से यह मत पूछो। हमसे व्हाई, क्यों मत पूछो। हमसे सिर्फ व्हाट, क्या है, इतना ही पूछो।
हम बता सकते हैं, सौ डिग्री पर पानी गर्म होता है। लेकिन क्यों डिग्री पर गर्म होता है ? निन्यानबे पर होने में क्या अड़चन थी ? और निन्यानबे पर होता, दुनिया में कौन-सी खराबी हो जाती ? या एक सौ एक डिग्री पर होता, तो दुनिया में कौन-सी विकृति आने वाली थी? और सौ डिग्री पर ही होता है, इसका क्या लक्ष्य है? यह भी विज्ञान कहता है, हम कुछ नहीं कह सकते। कोई लक्ष्य नहीं दिखाई पड़ता, कोई प्रयोजन नहीं दिखाई पड़ता। एक नियम- वर्तुलता दिखाई पड़ती है, कि नियम आवर्तित होता रहता है।
धर्म कहता है, कोई प्रयोजन नहीं है। हमें बहुत घबड़ाहट लगती है इस बात से कि कोई प्रयोजन नहीं है। क्योंकि तब सब बातें फिजूल मालूम पड़ती हैं। अगर कोई प्रयोजन नहीं, तो सब बात फिजूल मालूम पड़ती है। लेकिन आप समझें थोड़ा।
आपको फिजूल इसीलिए मालूम पड़ती है कि आप अब तक प्रयोजन से ही जीते रहे हैं। प्रयोजन के कारण ही, प्रयोजन की धारणा के कारण ही फिजूल मालूम पड़ती है। अगर कोई प्रयोजन है ही नहीं, तो कोई चीज फिजूल भी नहीं है। प्रयोजन हो, तो कोई चीज फिजूल हो सकती है। प्रयोजन हो ही न जगत में, तो फिर कोई चीज यूजलेस नहीं है, कोई चीज फिजूल नहीं है। क्योंकि फिजूल को जांचिएगा कैसे ?
अगर सभी प्रयोजनरहित है, तो फिर कोई चीज व्यर्थ नहीं है। न कोई चीज सार्थक है, न कोई चीज व्यर्थ है। बस, चीजें हैं।
ऐसा जो स्वीकार कर लेता है, उसके जीवन से अशांति के सारे कारण विदा हो जाते हैं। ऐसा जो मान लेता है, समझ लेता है, गहरे में इसकी प्रतीति हो जाती है, उसके जीवन में कोई बेचैनी नहीं रह जाती। कोई बेचैनी नहीं रह जाती। बेचैनी का उपाय ही नहीं रह
| जाता । परम शांति और परम विश्राम में उतरने का मार्ग इस अनुभव को पा लेना है कि सब खेल है।
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आप रात सपना देखते हैं। कोई आपकी चोरी करके ले जा रहा है। किसी ने आपकी पत्नी की हत्या कर दी है। आप बड़े बेचैन होते हैं, बड़े परेशान होते हैं। रोते हैं सपने में। घबड़ाहट में नींद खुल जाती है। तो देखते हैं कि आंख से आंसू बह रहे हैं। छाती जोर से धड़क रही है। ब्लड-प्रेशर बढ़ गया होगा ।
लेकिन नींद खुलते ही आप हंसने लगते हैं। क्योंकि आपको पता चलता है, जो था, वह स्वप्न था। तब फिर आप यह नहीं पूछते कि यह आदमी मेरी पत्नी की हत्या क्यों किया ? फिर आप यह नहीं पूछते कि वह एक आदमी चोरी करके ले गया है, उसने पाप किया? फिर आप यह सवाल ही नहीं पूछते ।
आप इतना ही जानकर कि वह स्वप्न था, एक खेल था मन का, शांत हो जाते हैं। फिर हृदय की धड़कन अपनी जगह लौट आती है। खून ठीक चलने लगता है। पसीना बंद हो जाता है। आंसू सूख जाते हैं। आप फिर विश्राम में, नींद में प्रवेश कर जाते हैं।
स्वप्न में क्या तकलीफ आ गई थी? क्योंकि तब स्वप्न वास्तविक मालूम पड़ता था, इसलिए घबड़ा गए थे। जैसे ही पता चला स्वप्न है, घबड़ाहट खो गई, शांत हो गए।
जब तक जगत में आपको प्रयोजन मालूम पड़ता है, तब तक आप परेशान रहेंगे। जिस क्षण आपको लगेगा, जगत लीला है, स्वप्नवत, एक खेल, कोई प्रयोजन नहीं, उसी क्षण आप स्वप्न के बाहर हो जाएंगे।
यह गहनतम आधारभूमि है, जिसके सहारे आदमी विराट को अपने में उतार पा सकता है। जब तक आपको लग रहा है, सब तरफ वास्तविकता है, रियलिटी है; जब तक आपको लग रहा है, ऐसा होना ही चाहिए, इसके बिना जीवन बेकार हो जाएगा, तब तक आप बेचैन और परेशान होंगे और जीवन को बेकार कर लेंगे। | क्योंकि परेशानी और बेचैनी में ही नष्ट हो जाएगी ऊर्जा। यह ऊर्जा
अगर ठहर जाए, शांत हो जाए, तो इस शांत ऊर्जा से जो झील बन | जाती है मौन की, तरंगरहित, उसी झील में संपर्क हो जाता है अनंत से, विराट से, प्रभु से ।
एक और मित्र ने
पूछा
मान लें और समझ लें कि सब नियति का खेल है,
है कि अगर आपकी बात हम