SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 376
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गीता दर्शन भाग- 58 श्रीभगवानुवाच | संकोच है, तो अस्वीकार शुरू हो जाता है और भय भी। कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः । | भय एक ही है कि कहीं मैं मिट न जाऊं। और यह भय अंतिम ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु | बाधा है। इसलिए जो जानते रहे हैं, उन्होंने कहा है, जैसे जीसस ने, योधाः ।। ३२ ।। | कि जो अपने को बचाएगा, वह खो देगा। और जो अपने को खोने तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून्मुश्व राज्यं | को तैयार है, वह प्रभु को पा लेगा। अपने को बचाना ही धर्म के मार्ग समृद्धम्। | पर पाप है। अपने को बचाने की चेष्टा ही एकमात्र रुकावट है। मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव __ तो अर्जुन सामने खड़ा है; विराट के द्वार खुल गए हैं। लेकिन सव्यसाचिन् ।। ३३ ।। | कहीं मैं मिट न जाऊं—इसकी वह बात कर नहीं रहा है, यह भी द्रोणं च भीष्मं च जयद्रथं च कर्ण तथान्यानपि योधवीरान् । | समझ लेने जैसा है। वह कह रहा है कि आपके दांतों में दबे हुए, मया हतांस्त्वं जहि मा व्यथिष्ठा युध्यस्व जेतासि रणे | पिसते हुए द्रोण को देखता हूं, भीष्म को देखता हूं, कर्ण को देखता सपत्नान् ।। ३४।। हूं। आपका मुंह मृत्यु, महाकाल बन गया है। आपके मुंह से लपटें इस प्रकार अर्जुन के पूछने पर श्रीकृष्ण भगवान बोले,हे निकल रही हैं और विनाश की लीला हो रही है। और मैं बड़े-बड़े अर्जुन, मैं लोकों का नाश करने वाला बढ़ा हुआ महाकाल योद्धाओं को भी इस विनाश के मंह की तरफ भागते हए देखता है. हूं। इस समय इन लोकों को नष्ट करने के लिए प्रवृत्त हुआ | | जैसे पतंगे दीप-शिखा की तरफ भागते हों, अपनी ही मौत की हूं। इसलिए जो प्रतिपक्षियों की सेना में स्थित हुए योद्धा तरफ। कहीं भी वह अपनी बात नहीं कह रहा है। . लोग हैं, वे सब तेरे बिना भी नहीं रहेंगे अर्थात तेरे युद्ध न लेकिन ध्यान रहे, जब भी कोई दूसरा मरता है, तो हमें अपने मरने करने से भी सबका नाश हो जाएगा। की खबर मिलती है। और जब भी कहीं मृत्यु घटित होती है, तो किसी इससे तू खड़ा हो और यश को प्राप्त कर तथा शत्रुओं को एक अर्थ में तत्काल हमें चोट भी लगती है कि मैं भी मरूंगा। जीतकर धनधान्य से संपन्न राज्य को भोग। और ये सब __जब अर्जुन यह देख रहा होगा सबको मिटते हुए कृष्ण के मुंह शूरवीर पहले से ही मेरे द्वारा मारे हुए हैं। हे सव्यसाचिन्, तू | में, तो यह असंभव है कि यह छाया की तरह चारों तरफ यह बात तो केवल निमित्तमात्र ही हो जा। उसको न घेर ली हो कि मैं भी मिलूंगा, मैं भी ऐसे ही मरूंगा। और तथा इन द्रोणाचार्य और भीष्म पितामह तथा जयद्रथ और मैं भी पतंगे की तरह किसी ज्योति में जलने को इसी तरह भागा जा कर्ण तथा और भी बहुत-से मेरे द्वारा मारे हुए शूरवीर । रहा हूं, जैसे यह सारा लोक। मैं भी इस लोक से अलग नहीं हूं। योद्धाओं को तू मार और भय मत कर, निस्संदेह तू युद्ध में । | वह कह तो दूसरों की बात रहा है, लेकिन उसमें खुद स्वयं की बात वैरियों को जीतेगा, इसलिए युद्ध कर! भी गहरे में सम्मिलित है। वह भय पकड़ता है। बुद्ध अपने साधकों को कहते थे, इसके पहले कि तुम परम सत्य को जानने जाओ, तुम ऐसे हो जाओ जैसे मर गए हो, जीते जी मृत। एक मित्र ने पूछा है, दिव्य-दृष्टि को पाकर भी अर्जुन | | अगर तुम जीते जी मृत नहीं हो गए हो, तो उस परम सत्य को तुम परमात्मा को उसकी समग्रता में स्वीकार करने में क्यों | न झेल पाओगे। जो जीते जी मृत हो गया है, उसे फिर कोई भी भय असफल हो रहा है? क्यों भयभीत है? | नहीं है। फिर परमात्मा के सामने खड़े होकर मिटने की उसकी पहले से ही तैयारी है। यह तैयारी न हो, तो अड़चन होगी। और जो लोग भी परमात्मा की खोज में जाते हैं, वे जीवन की 17 रमात्मा के साक्षात्कार में, उसकी पूर्ण स्वीकृति में, स्वयं खोज में जाते हैं, मृत्यु की खोज में नहीं। जो जीवन के पिपासु हैं 4 को पूरा खोने की तैयारी चाहिए। परमात्मा का अनुभव अभी, वे उसे न पा सकेंगे। जो मिटने को राजी हैं, वे उसे पा लेंगे, अपनी पूर्ण मृत्यु का अनुभव है। जो मिटने को राजी है, परम जीवन भी उन्हें मिलेगा। लेकिन परम जीवन मिलता है पूर्ण वही उसे पूरी तरह स्वीकार कर पाता है। अगर मिटने में जरा-सा भी मृत्यु की स्वीकृति से। "बुद्ध अपने सावकार हो जाओ जैसे परम सत्य को 346
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy