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________________ 8 गीता दर्शन भाग-500 लगेगा। थोड़ी मौत करीब आने दें, दांत गिरने दें, भरोसा आने तो हम परमात्मा का रूप बनाते हैं, मोहक, सुंदर। हमने नाम जो लगेगा। क्यों? रखे हैं, वे सब ऐसे रखे हैं कि मन को लुभाएं। लेकिन जो दूसरा इसलिए नहीं कि इसे कोई अनुभव हुआ जा रहा है। कोई बूढ़े | | हिस्सा है, वह हमने काट रखा है। होने से अनुभवी नहीं होता। अगर बूढ़े होने से दुनिया में अनुभव __अर्जुन भी भयभीत हुआ। इसलिए नहीं कि परमात्मा का भयंकर मिलता होता, तो सारे लोग कितनी दफे बूढ़े हो चुके हैं, अनुभव | रूप है, बल्कि इसलिए कि आज तक उसने सोचा ही नहीं था कभी। ही अनुभव होता। कोई अनुभव नहीं मिलता। लेकिन बूढ़े होने से | | यह कभी धारणा ही मन में न बनी थी कि यह भयंकर रूप भी भय बढ़ता है, मौत करीब मालूम पड़ने लगती है। अब इतना भरोसा | परमात्मा का होगा। हम सोचते हैं यमराज को, भैंसे पर बैठे हुए, नहीं मालूम पड़ता, पैरों में इतनी ताकत नहीं मालूम पड़ती। अब | विकराल दांतों वाला, काला आदमी, सींगों वाला। लेकिन हम तर्क करने की सुविधा नहीं मालूम पड़ती। अब लगता है, अब तो | कभी यमराज को परमात्मा के साथ एक करके नहीं देखते। यमराज ऐसा लगता है कि वह जो अंधविश्वासी कहते हैं, वही ठीक हो, | | अलग ही मालूम पड़ता है। उसका डिपार्टमेंट, वह सब अलग तो अच्छा। आत्मा हो! यह हमारा विश फलफिलमेंट है, आत्मा | विभाग है। परमात्मा से हम उसको नहीं जोड़ते हैं, कि मृत्यु हो। तो हम मानने लगते हैं कि आत्मा है। परमात्मा से आती है। जाएं मस्जिद में, मंदिर में, चर्च में; बूढ़े लोग! और पुरुषों से भी | गीता के ये सूत्र बड़े कीमती हैं, इन्हें थोड़ा समझ लेना। ज्यादा बूढ़ी स्त्रियां वहां इकट्ठी हैं। क्योंकि पुरुष बूढ़ा भी हो जाए, यमराज कहीं भी नहीं, परमात्मा के मुंह में ही है। और यमराज तो थोड़ा-बहुत अपना पुरुषत्व, अकड़ कायम रखता है। स्त्रियां | कहीं किसी हाथी-घोड़े पर बैठकर नहीं आने वाला है, किसी भैंसे और जल्दी घबड़ा जाती हैं और मंदिर की तरफ चल पड़ती हैं। । | पर सवार होकर। परमात्मा के दांत, वे ही यमराज हैं। घबड़ाहट की वजह से, भय की वजह से आदमी मान लेता है, | । यह देखकर अर्जुन घबड़ा गया है और वह कह रहा है कि सारे आत्मा अमर है, अनुभव की वजह से नहीं। क्योंकि अनुभव तो| लोक व्याकुल हो रहे हैं, मैं भी व्याकुल हो रहा हूं। क्योंकि हे बड़ी और बात है। और अनुभव तो उसे उपलब्ध होता है, जो मृत्यु विष्णो! आकाश के साथ स्पर्श किए हुए, देदीप्यमान, अनेक रूपों से भय छोड़ देता है और जीवन की वासना छोड़ देता है। से युक्त तथा फैलाए हुए मुख और प्रकाशमान विशाल नेत्रों से ___ हम तो मृत्यु के भय से, आत्मा अमर है, मान लेते हैं। हमें कभी | युक्त आपको देखकर भयभीत अंतःकरण वाला मैं धीरज और पता नहीं चलेगा कि आत्मा है भी। उसी को पता चलेगा, जो मृत्यु | शांति को नहीं प्राप्त होता हूं। का भय नहीं करता और जीवन का मोह नहीं करता। वह ठीक कह रहा है। वह कह रहा है, आपकी वजह से मैं कौन है जो मृत्यु का भय नहीं करे और जीवन का मोह न करे? | | भयभीत हो रहा हूं, ऐसा नहीं; भयभीत अंतःकरण वाला, मैं वही व्यक्ति, जो जीवन और मृत्य को एक की तरह देख ले, भयभीत अंतःकरण वाला हूं, इसलिए भयभीत हो रहा हूं। आपके अनुभव कर ले शास्त्र में जाने की जरूरत कारण भयभीत नहीं हो रहा है। आप तो विशाल हैं. महान हैं. विष्ण नहीं। और इसके लिए किसी महापुरुष, महाज्ञानी के चरणों में बैठने | | हैं, महादेव हैं, आप तो परमेश्वर हैं। आपके कारण नहीं भयभीत की जरूरत नहीं। जीवन काफी शिक्षा है। हो रहा हूं, लेकिन मेरा अंतःकरण भय वाला है। जीवन और मृत्यु दो कहां हैं? वे एक ही हैं। हमने अपने मोह में । इसे हम थोड़ा समझ लें। बांटा है दो में। वे एक ही हैं। कभी आपको पता है किस दिन जन्म हम सबके पास अंतःकरण भय वाला है। यह थोड़ा गहन है। समाप्त होता है और मृत्यु शुरू होती है? और किस दिन, किस | | और आपको पता भी नहीं कि आपका अंतःकरण क्या है, सीमा पर जीवन समाप्त होता है और मृत्यु का आगमन होता है? कानशिएंस क्या है। कहीं कोई विभाजन नहीं है। कोई वाटर-टाइट कंपार्टमेंट, कोई | | आप चोरी करने से डरते हैं। भीतर कोई कहता है, चोरी बुरी है। खंड-खंड बांटने का उपाय नहीं है। जीवन, मृत्यु एक ही चीज के | आप पड़ोसी की स्त्री को भगा ले जाने से बचते हैं। भीतर कोई दो नाम मालूम पड़ते हैं। एक ही घटना के लिए दो शब्द मालूम कहता है, यह बात बुरी है। किसी की हत्या करने से भय है, कंपता पड़ते हैं। एक छोर जीवन, दूसरा छोर मृत्यु। है मन। भीतर कोई कहता है, हत्या पाप है। हिंसा बुरी है। कौन |322]
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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