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________________ ॐ अचुनाव अतिक्रमण है - विकास नहीं होता। आज किसी से कहना, श्रद्धा करो, नासमझी है। आज तो एक ही तो चौदह वर्ष की उम्र तक जो प्रवेश कर जाता है, वह आधार | उपाय है कि उसके संदेह को संदेह के ही मार्ग से काट डाला जाए। बन जाता है। फिर जो कंछ भी होगा. उसके ऊपर होगा। एक ऐसी घडी आ जाए कि उसका संदेह करने वाला मन संदेह करने इसलिए किसी आदमी के चेहरे को एकदम मोड़ा नहीं जा | | में असमर्थ हो जाए, संदेह कर-करके असमर्थ हो जाए। सकता। उसके संदेह को श्रद्धा नहीं बनाई जा सकती। और अगर एक उपाय तो यह होता है कि आपको बांधकर बिठा दिया जाए जबरदस्ती बनाने की कोशिश की जाए, तो संदेह भीतर होगा, श्रद्धा कि शांत हो जाओ। छोटे बच्चों को घर में मां-बाप बिठा देते हैं कि ऊपर हो जाएगी–थोथी, झूठी, मुर्दा। उसमें कोई प्राण नहीं होंगे। | शांत हो जाओ। छोटा बच्चा बैठ जाता है। लेकिन जरा उसका तो एक ही उपाय है और वह यह है कि धर्म की ऐसी व्याख्या | निरीक्षण करें, आब्जर्व करें। वह हाथ-पैर हिलाएगा, कुछ करेगा, की जाए, जो संदेहशील मन को भी आकर्षित करती हो। संदेह को | | सिर हिलाएगा, कुछ करेगा। वह जो दौड़ता था, वह दौड़ अब इनकार न किया जाए, स्वीकार कर लिया जाए। और श्रद्धा की उसके भीतर-भीतर चलेगी। जबरदस्ती न की जाए, श्रद्धा को संदेह के मार्ग से ही लाया जाए, आप उसको जबरदस्ती बिठा दिए हैं। इससे कुछ हल होने वाला जो अति कठिन है। लेकिन अब इसके सिवाय कोई उपाय नहीं है। | नहीं है। ज्यादा वैज्ञानिक यह होगा कि उसे कहें कि जाकर मकान के __ अगर मनुष्य-जाति पुनः धार्मिक होगी, तो एक नया अनूठा दस चक्कर लगाकर आ! उसे दस चक्कर लगाने दें। शायद दस वह प्रयोग करना पड़ेगा; वह यह कि आपके संदेह का ही उपयोग किया लगा भी न पाएगा, तीन-चार या पांच में थक जाएगा। और कहेगा, जाए, आपको श्रद्धा तक लाने के लिए। आपके विचार, आपके मुझे नहीं लगाना। उसे कहें कि और पांच पूरे कर। फिर आप कोने तर्क, आपकी समझ का ही उपयोग किया जाए, समझ को ही नष्ट में बैठा हुआ उसे देखें। अब उसके भीतर कोई गति नहीं होगी। अब करने के लिए। आपके तर्क का ही उपयोग किया जाए, आपके तर्क वह शांत होगा। अब वह बुद्ध की प्रतिमा की तरह बैठा होगा। को ही काट डालने के लिए। आपके लिए अब दूसरा ही रास्ता है। आपको सीधे नहीं बिठाया यह हो सकता है। पैर में कांटा लग जाता है, तो हम दूसरे कांटे | | जा सकता। इसलिए दस चक्कर मुझे लगाने पड़ते हैं। जो सीधा बैठ से उस कांटे को निकाल लेते हैं। और कोई भी यह नहीं कहता कि सकता है, उससे मुझे कुछ नहीं कहना है। लेकिन मुझे एक आदमी आप कांटे से कांटे को कैसे निकालेंगे? आदमी बीमार होता है, नहीं दिखाई पड़ता, जो अब सीधा बैठ सकता है। आपको दस उसके शरीर में जहर फैल जाता है, तो हम एंटीबायोटिक्स, और चक्कर लगाने पड़ेंगे। इसलिए इतनी लंबी व्याख्या करनी पड़ती है। जहर डालकर उसके जहर को नष्ट कर देते हैं। वैक्सिनेशन का तो | | वह चक्कर है। और आपके साथ मुझे भी लगाने पड़ते हैं। क्योंकि सारा सिद्धांत इस बात पर खड़ा हुआ है, कि आपके शरीर में जो | ध्यान रखना पड़ता है कि कहीं बीच में आप रुक न जाएं। जब तक कीटाणु हैं बीमारी के, वे ही कीटाणु और बड़ी मात्रा में आपके भीतर | थक न जाएं, एक्झास्टेड! आपकी बुद्धि को थकाने के सिवाय अब डाल दिए जाएं। श्रद्धा तक ले जाने का कोई मार्ग नहीं है। तो अब तो धर्म होगा वैक्सिनेशन। अब तो आपसे यह नहीं कहा अब हम सूत्र को लें। जा सकता कि श्रद्धा करिए। यह कोई खेल नहीं है। अब बहुत और हे महाबाहो! आपके बहुत मुख और नेत्रों वाले तथा बहुत मुश्किल है। हाथ, जंघा और पैरों वाले और बहुत उदरों वाले तथा बहुत-सी ___ अब किसी छोटे बच्चे को भी कहना कि चुपचाप मान लो, व्यर्थ | | विकराल जाड़ों वाले महान रूप को देखकर सब लोग व्याकुल हो है। वह बच्चा भी कहेगा, आप क्या कह रहे हैं। पूर्वी न? विचार न | | रहे हैं तथा मैं भी व्याकुल हो रहा हूं। करूं? तर्क न करूं? तो आपका यह कहना कि श्रद्धा ही हमारी | | (कोई मित्र के बीच में से उठकर जाने से कुछ व्यवधान होता है। पहली शर्त है, बच्चे के लिए आपके धर्म का द्वार बंद हो गया। इस पर भगवान श्री ने कहा, ये जो मित्र उठ रहे हैं उनको वहीं बिठा इसका अर्थ हुआ कि आप व्यर्थ की बकवास कर रहे हैं। जिसमें | | दें। बिलकुल उनको वहीं बिठा दें। जाने न दें बाहर। और कल से मैं प्रश्न न पूछा जा सके और जिसमें संदेह न किया जा सके, वह सत्य | आपको कहता हूं कि जिसको जाना हो, पहले से बाहर रहे, बीच में नहीं हो सकता, वह अंधविश्वास है। आपने द्वार बंद कर दिए। बैठने की कोई जरूरत नहीं। उनको बिठाइए वहां। वह जो मित्र जा 319
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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