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8 गीता दर्शन भाग-
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रूपं महत्ते बहुवकत्रनेत्रं महाबाहो बहुबाहरुपादम् । और हे विश्वमते, जैसे नदियों के बहुत-से जल के प्रवाह बहूदरं बहुदंष्ट्राकरालं दृष्ट्वा लोकाः
समुद्र के ही सम्मुख दौड़ते हैं अर्थात समुद्र में प्रवेश करते हैं, प्रव्यथितास्तथाहम् ।। २३ ।।
वैसे ही वे शूरवीर मनुष्यों के समुदाय भी आपके प्रज्वलित नभःस्पृशं दीप्तमनेकवर्ण व्यात्ताननं दीप्तविशालनेत्रम् ।
हुए मुखों में प्रवेश करते हैं। दृष्ट्वा हि त्वां प्रव्यथितान्तरात्मा धृति न विन्दामि शमं च
विष्णो ।। २४ ।। दंष्ट्राकरानानि च ते मुखानि दृष्ट्वैव कालानलसन्निभानि । | एक मित्र ने पूछा है कि परमात्मा के विराट स्वरूप को दिशो न जाने न लभे च शर्म प्रसीद देवेश समझाते हुए आपने कल जन्म और मृत्यु, सृजन और जगनिवास ।। २५।।
संहार, सुंदर और भयानक आदि के द्वंद्वात्मक अस्तित्व अमी च त्वां धृतराष्ट्रस्य पुत्राः सर्वे सहवावनिपालसंधः। की बात की। समझाएं कि जिस परम सत्य को अमृत भीष्मो द्रोणः सूतपुत्रस्तथासौ सहास्मदीयैरपि या सच्चिदानंद के नाम से कहा गया, वह उपरोक्त योधमुख्यैः । । २६ ।।
द्वंद्वों का जोड़ है, अथवा इन दो के अतीत वह कोई वक्त्राणि ते त्वरमाणा विशन्ति दंष्ट्राकरालानि भयानकानि । तीसरी सत्ता है?
केचिद्धिलग्ना दशनान्तरेषु संदृश्यन्ते
चूर्णितैरुत्तमाङ्गः ।। २७ ।। यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगाः समुद्रमेवाभिमुखा द्रवन्ति । । द्वचारों ओर है। संसार में जहां भी देखेंगे, वहां एक तथा तवामी नरलोकवीरा विशन्ति
४ कभी भी दिखाई नहीं पड़ेगा। विपरीत सदा मौजूद वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति ।। २८।।
होगा। संसार के होने का ढंग ही विपरीत के बिना और हे महाबाहो, आपके बहुत मुख और नेत्रों वाले तथा असंभव है। इस एक बात को ठीक से समझ लें। जैसे कि कोई बहुत हाथ, जंघा और पैरों वाले और बहुत उदरों वाले तथा | मकान बनाने वाला राजगीर विपरीत ईंटों को जोड़कर गोल दरवाजा बहुत-सी विकराल जाड़ों वाले महान रूप को देखकर सब बनाता है। अगर एक ही रुख में ईंटें लगाई जाएं, तो दरवाजा गिर
लोक व्याकुल हो रहे हैं तथा में भी व्याकुल हो रहा हूं। | जाए। विपरीत ईंटें एक-दूसरे के प्रति विरोध का काम करके दरवाजे __ क्योंकि हे विष्णो, आकाश के साथ स्पर्श किए हुए, | को सम्हालने का आधार बन जाती हैं। देदीप्यमान, अनेक रूपों से युक्त तथा फैलाए हुए मुख और । सारा जगत विपरीत ईंटों से बना हुआ है। वहां प्रकाश है, तो प्रकाशमान विशाल नेत्रों से युक्त आपको देखकर भयभीत केवल इसीलिए कि अंधेरा भी है। और अंधेरा भी हो सकता है तभी अंतःकरण वाला मैं धीरज और शांति को नहीं प्राप्त होता है। तक, जब तक प्रकाश है। प्रकाश और अंधेरा विपरीत ईंटें हैं। दो ___ और हे भगवन, आपके विकराल जाड़ों वाले और कारणों से। एक तो सभी ईंटें समान होती हैं, हम उन्हें विपरीत लगा प्रलयकाल की अग्नि के समान प्रज्वलित मुखों को देखकर सकते हैं। अंधेरा और प्रकाश एक ही सत्ता के दो रूप हैं। ईंटें एक
दिशाओं को नहीं जानता हूं और सुख को भी नहीं प्राप्त । | जैसी हैं, लेकिन एक-दूसरे के विपरीत लग जाती हैं। होता हूं। इसलिए हे देवेश, हे जगन्निवास, आप प्रसन्न होवें।। | जन्म और मृत्यु एक ही जीवन के दो छोर हैं। लेकिन जन्म नहीं और मैं देखता हूं कि वे सब ही धृतराष्ट्र के पुत्र, राजाओं के | होगा जिस दिन, मत्य बंद हो जाएगी। और मत्य भी नहीं होगी उसी
दिन, जिस दिन जन्म बंद हो जाएगा। जन्म और मृत्यु का विरोध जो द्रोणाचार्य, तथा कर्ण और हमारे पक्ष के भी प्रधान योद्धाओं तनाव पैदा करता है, वही तनाव संसार है। के सहित सब के सब, वेगयुक्त हुए आपके विकराल जाड़ों | | संसार एक अशांत अवस्था है। और अशांत अवस्था तभी हो वाले भयानक मुखों में प्रवेश करते हैं और कई एक चूर्ण | सकती है, जब वैपरीत्य, द्वंद्व मौजूद हो। आप भी अगर केवल हुए सिरों सहित आपके दांतों के बीच में लगे हुए दिखते हैं। आत्मा हों, तो संसार में नहीं रह जाएंगे। आप भी केवल शरीर हों,
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