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________________ परमात्मा का भयावह रूप को, उसे व्यास ने संगृहीत किया है, उसे लिपिबद्ध किया है। है। लिखना और कहना दो विधियां हैं। कहने में और लिखने में अगर साहित्य है केवल, तब तो व्यास निर्माता हैं; और कृष्ण, | कोई अंतर पड़ने की जरूरत नहीं है। अर्जुन, संजय, धृतराष्ट्र, सब उनके हाथ के खिलौने हैं। अगर यह ___ इसलिए मैंने व्यास को छोड़ दिया था, कोई बात नहीं उठाई थी। वास्तविक घटना है, अगर यह इतिहास है, न केवल बाहर की वे परिधि के बाहर हैं। हमारे लिए उनकी बहुत जरूरत है। हमारे आंखों से देखे जाने वाला, बल्कि भीतर घटित होने वाला भी, तब | पास गीता बचती भी नहीं। व्यास के बिना बचने का कोई उपाय न व्यास केवल लिपिबद्ध करने वाले रह जाते हैं। वे केवल लेखक था। लेकिन घटना के भीतर वे नहीं हैं, इसलिए मैंने उनकी चर्चा हैं। और पुराने अर्थों में लेखक का इतना ही अर्थ था; वह लिपिबद्ध | नहीं की है। ये चार व्यक्ति ही घटना के भीतर गहरे हैं। व्यास का कर रहा है। होना बाहर है, परिधि पर है। हमारे और व्यास के बीच गहरा संबंध है। क्योंकि संजय ने जो कहा है, वह धृतराष्ट्र से कहा है। अगर बात कही हुई ही होती, तो खो गई होती। हमारे लिए संगृहीत व्यास ने किया। हमारे तो | एक मित्र ने पूछा है कि क्या दिव्य-चक्षु सिद्धावस्था निकटतम व्यास हैं। लेकिन मूल घटना कृष्ण और अर्जुन के बीच | | के पूर्व भी उपलब्ध हो सकता है? घटी; और मूल घटना को शब्दों में पकड़ने का काम संजय और धृतराष्ट्र के बीच हुआ है। हमारे और व्यास के बीच भी कुछ घट रहा है-उन शब्दों को संगृहीत करने का। नहीं, दिव्य-चक्षु सिद्धावस्था के पूर्व उपलब्ध नहीं हो और इसीलिए व्यास के नाम से बहुत-से ग्रंथ हैं। और जो लोग UI सकता। क्योंकि दिव्य-चक्षु का उपलब्ध होना और पाश्चात्य शोध के नियमों को मानकर चलते हैं, उन्हें बड़ी सिद्धावस्था एक ही बात के दो नाम हैं। लेकिन कठिनाई होती है कि एक ही व्यक्ति ने, एक ही व्यास ने इतने ग्रंथ | टेलीपैथी, दूर-दृष्टि उपलब्ध हो सकती है। उससे कोई सिद्धावस्था कैसे लिखे होंगे! का संबंध नहीं है। और वह तो ऐसे व्यक्ति को भी उपलब्ध हो सच तो यह है कि व्यास से व्यक्ति के नाम का कोई संबंध नहीं सकती है, जिसकी कोई साधना भी न हो। है। व्यास तो लिखने वाले को कहा गया है। किसी ने भी लिखा हो, टेलीपैथी तो हमारे मन की ही क्षमता है। हमारे मन के पास व्यास ने लिखा है, लिखने वाले ने लिखा है। कोई एक व्यक्ति ने संभावना है कि वह दूर की चीजों को भी देख ले, आंख के बिना। ये सारे शास्त्र नहीं लिखे हैं। लेकिन लिखने वाले ने अपने को कोई | | हमारे मन के पास संभावना है कि दूर की वाणी को सुन ले, कान मूल्य नहीं दिया, क्योंकि वह केवल लिपिबद्ध कर रहा है। उसके | | के बिना। और बहुत बार तो हममें से अनेक लोग देख लेते हैं, सुन . नाम की कोई जरूरत भी नहीं है। जैसे टेप रिकार्डर रिकार्ड कर रहा | | लेते हैं। लेकिन हमें खयाल नहीं कि हम क्या कर रहे हैं। बहुत बार हो, ऐसे ही कोई व्यक्ति लिपिबद्ध कर रहा हो, तो लिपिबद्ध करने | हमें पीछे पता चलता है, तो आज के युग की वजह से हम सोच वाले ने अपने को कोई मूल्य नहीं दिया। और इसलिए एक लेते हैं, संयोग की बात है। सामूहिक संबोधन, व्यास, जिसने लिखा। वह सामूहिक संबोधन | अगर बेटा मर रहा हो, तो दूर मां को भी प्रतीत होने लगता है। है: वह किसी एक व्यक्ति का नाम भी नहीं है। कोई सिद्धावस्था की बात नहीं है, सिर्फ एक प्रगाढ़ लगाव है। तो लेकिन हमारे लिए तो लिखी गई बात अत्यंत महत्वपूर्ण है, कितना ही फासला हो, अगर बेटा मर रहा हो, तो मां को कुछ इसलिए व्यास को हमने महर्षि कहा है। जिसने लिखा है, उसने परेशानी शुरू हो जाती है। वह समझ पाए या न समझ पाए। अगर हमारे लिए संगृहीत किया है, अन्यथा बात खो जाती। बहुत निकट मित्र कठिनाई में पड़ा हो, तो मित्र को भीतर बेचैनी शुरू निश्चित ही, संजय के कहने में और व्यास के लिखने में कोई | | हो जाती है, फासला कितना भी हो। कोई धक्के आंतरिक तरंगों के अंतर नहीं है, क्योंकि लिखने में और कहने में किसी अंतर की कोई | | लगने शुरू हो जाते हैं, कोई संवाद किसी द्वार से मिलना शुरू हो जरूरत नहीं है। अंतर तो घटित हुआ है, कृष्ण के देखने में और जाता है, जिसके हम ठीक-ठीक उपयोग को नहीं जानते हैं। संजय के कहने में। जो कहा जा सकता है, वह लिखा भी जा सकता | || लेकिन कुछ लोग इसका ठीक उपयोग करना सीख लें, तो जरा 297
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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