SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 326
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गीता दर्शन भाग-563 आठ वसु और साध्यगण, विश्वेदेव तथा अश्विनी कुमार और मरुदगण और पितरों का समुदाय तथा गंधर्व, यक्ष, राक्षस और सिद्धगणों के समुदाय हैं, वे सब ही विस्मित हुए आपको देखते हैं। | एक मित्र ने पूछा है कि आपने कहा कि गीता चार व्यक्तियों के संयोग के कारण हमें उपलब्ध हो सकी है-कृष्ण, अर्जुन, संजय और धृतराष्ट्र। लेकिन गीता श्रीमद्भागवत का एक अंश है और श्रीमद्भागवत को महर्षि व्यास ने लिखा है। इसलिए महर्षि व्यास या संजय, कौन उसका मूल स्रोत है? त्वमक्षरं परमं वेदितव्यं त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् । त्वमव्ययः शाश्वतधर्मगोप्ता सनातनस्त्वं पुरुषो मतो मे ।।१८।। अनादिमध्यान्तमनन्तवीर्यमनन्तबाहुं शशिसूर्यनेत्रम् । पश्यामि त्वां दीप्तहुताशवक्त्रं स्वतेजसा विश्वमिदं तपन्तम् । । १९ ।। द्यावापृथिव्योरिदमन्तरं हि व्याप्तं त्वयैकेन दिशश्च सर्वाः। दृष्ट्वाद्भुतं रूपमुग्रं तवेदं लोकत्रयं प्रव्यथितं महात्मन् । । २०।। अमी हि त्वां सुरसंघा विशन्ति केचिद्भीताः प्राञ्जलयो गृणन्ति। स्वस्तीत्युक्त्वा महर्षिसिद्धसंघाः स्तुवन्ति त्वां स्तुतिभिः पुष्कलाभि ।। २१।। रुद्रादित्या वसवो ये च साध्या विश्वेऽश्विनी मरुतश्चोष्मपाश्च। गन्धर्वयक्षासुरसिद्धसंघा वीक्षन्ते त्वां विस्मिताश्चैव सर्वे।। २२ ।। इसलिए हे भगवन, आप ही जानने योग्य परम अक्षर हैं अर्थात परब्रह्म परमात्मा हैं और आप ही इस जगत के परम आश्रय है तथा आप ही अनादि धर्म के रक्षक हैं और आप ही अविनाशी सनातन पुरुष है, ऐसा मेरा मत है। हे परमेश्वर, मैं आपको आदि, अंत और मध्य से रहित तथा अनंत सामर्थ्य से यक्त और अनंत हाथों वाला तथा चंद्र-सूर्य रूप नेत्रों वाला और प्रज्वलित अग्निरूप मुख वाला तथा अपने तेज से इस जगत को तपायमान करता हुआ देखता हूं। और हे महात्मन्, यह स्वर्ग और पृथ्वी के बीच का संपूर्ण आकाश तथा सब दिशाएं एक आप से ही परिपूर्ण हैं तथा आपके इस अलौकिक और भयंकर रूप को देखकर तीनों ___ लोक अतिव्यथा को प्राप्त हो रहे हैं। और हे गोविंद, वे सब देवताओं के समूह आपमें ही प्रवेश करते हैं और कई एक भयभीत होकर हाथ जोड़े हुए आपके नाम और गुणों का उच्चारण करते हैं तथा महर्षि और सिद्धों के समुदाय, कल्याण होवे, ऐसा कहकर उत्तम-उत्तम स्तोत्रों द्वारा आपकी स्तुति करते हैं। और हे परमेश्वर, जो एकादश रुद्र और द्वादश आदित्य तथा - स संबंध में कुछ बातें विचारणीय हैं। र एक तो जो लोग श्रीमद्भागवत को या गीता को केवल साहित्य मानते हैं, लिटरेचर मानते हैं, ऐतिहासिक | घटनाएं नहीं; जो ऐसा नहीं मानते कि कृष्ण और अर्जुन के बीच जो घटना घटी है, वह वस्तुतः घटी है; जो ऐसा भी नहीं मानते कि संजय ने किसी वास्तविक घटना की खबर दी है या कि धृतराष्ट्र | कोई वास्तविक व्यक्ति हैं; बल्कि जो मानते हैं कि वे चारों, व्यास ने जो महासाहित्य लिखा है, उसके चार पात्र हैं। __ जो ऐसा मानते हैं, उनके लिए तो व्यास की प्रतिभा मौलिक हो | जाती है, मूल आधार हो जाती है और शेष सब पात्र हो जाते हैं। तब तो सारा व्यास की ही प्रतिभा का खेल है। जैसे सार्च के उपन्यास में उसके पात्र हों या दोस्तोवस्की की कथाओं में उसके | पात्र हों, ठीक वैसे ही इस महाकाव्य में भी सब पात्र हैं और व्यास की प्रतिभा से जन्मे हैं। __ ऐसा भारतीय परंपरा का मानना नहीं है। और न ही जो धर्म को | समझते हैं, वे ऐसा मानने को तैयार हो सकते हैं। तब स्थिति | बिलकुल उलटी हो जाती है। तब व्यास केवल लिपिबद्ध करने वाले रह जाते हैं। तब घटना तो कृष्ण और अर्जुन के बीच घटती | है। उस घटना को पकड़ने वाला संजय है। वह पकड़ने की घटना | संजय और धृतराष्ट्र के बीच घटती है। लेकिन उसे लिपिबद्ध करने | का काम हमारे और व्यास के बीच घटित होता है। वह तीसरा तल है। जो हुआ है, उसे संजय ने कहा है। जो संजय ने कहा है धृतराष्ट्र 296
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy