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________________ ॐ गीता दर्शन भाग-500 श्रीमद्भगवद्गीता अज्ञेय से अर्थ है, जिसे हम किसी भांति पहचान भी लेते हैं, फिर अथ दशमोऽध्यायः | भी नहीं कह सकते कि हमने उसे जान लिया। ऐसे अज्ञात, ऐसे अज्ञेय के संबंध में जो वचन हैं, कृष्ण उन्हें परम वचन कहते हैं। श्रीभगवानुवाच | इस सूत्र में जो बहुत कीमती शब्द है, वह है परम वचन। उसे हम भूय एव महाबाहो शृणु मे परमं वचः । थोड़ा समझें। यत्तेऽहं प्रीयमाणाय वक्ष्यामि हितकाम्यया।।१।। ___ कृष्ण ने कहा, हे महाबाहो, फिर भी मेरे परम वचन श्रवण कर, नमे विदुः सुरगणाः प्रभवं न महर्षयः । जो कि मैं तुझ अतिशय प्रेम रखने वाले के लिए हित की इच्छा से अहमादिहि देवानां महषीणां च सर्वशः।।२।। | कहूंगा। यो मामजमनादिं च वेत्ति लोकमहेश्वरम् । साधारणतः, परम वचन शब्द को पढ़ते समय कोई विशेष असंमूढः स मत्येषु सर्वपापैः प्रमुच्यते ।।३।। खयाल मन में नहीं आता है। और इसीलिए उसके विशेष अर्थ भी भगवान श्रीकृष्ण बोले, हे महाबाहो, फिर भी मेरे परम वचन | चूक जाते हैं। एक वचन तो होता है, जिसे हम कहते हैं, सत्य श्रवण कर, जो कि मैं तुझ अतिशय प्रेम रखने वाले के लिए | वचन। एक वचन होता है, जिसे हम कहते हैं, असत्य वचन। परम हित की इच्छा से कहूंगा। वचन क्या है? अगर भाषाकोश में खोजने जाएंगे, तो भाषाकोश हे अर्जुन, मेरी उत्पत्ति को अर्थात विभूतिसहित लीला से कहेगा, सत्य वचन ही परम वचन है। लेकिन वह ठीक नहीं है प्रकट होने को न देवता लोग जानते हैं और न महर्षिजन ही बात। सत्य वचन का अर्थ ही होता है, जिसके विपरीत भी असत्य जानते हैं, क्योंकि मैं सब प्रकार से देवताओं का और वचन हो सकता है। महर्षियों का भी आदि कारण हूं। परम वचन का अर्थ होता है, जिसके विपरीत कोई वचन नहीं हो और जो मेरे को अजन्मा, अनादि तथा लोकों का महान सकता, जिसके विपरीत किसी वक्तव्य की कोई संभावना नहीं है। ईश्वर तत्व से जानता है, वह मनुष्यों में ज्ञानवान पुरुष पहली बात। संपूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है। सत्य, जो आज सत्य मालूम पड़ता है, कल असत्य हो सकता . है। जो आज असत्य मालूम पड़ता है, कल खोज से पता चले कि सत्य है। इसलिए विज्ञान जिसे सत्य कहता है, कल उसे असत्य जीवन है एक रहस्य। गणित की पहेली जैसा नहीं कि | कहने को मजबूर हो जाता है। न्यूटन का जो सत्य था, वह UII श्रम से उसे हल किया जा सके। रहस्य जीवन का | | आइंस्टीन का सत्य नहीं है। और आइंस्टीन का जो सत्य है, वह त्य जीवन का स्वभाव आने वाली सदी का सत्य नहीं होगा। और आज कोई भी वैज्ञानिक है। जीवन है रहस्य ही। | यह नहीं कह सकता कि हम जो सत्य उदघोषित कर रहे हैं, वह सदा अज्ञात है बहुत कुछ, अननोन है बहुत कुछ, लेकिन वह ज्ञात हो | ही सत्य रहेगा। जाएगा। आज नहीं कल, हम उसे जान लेंगे। जो आज नहीं जाना सत्य असत्य हो सकते हैं। असत्य भी कल खोजे जाएं और पता है, वह भी कल जाना जा सकेगा। जो कभी भी जाना जा सकता है, | चले, तो सत्य बन सकते हैं। उसका नाम रहस्य नहीं है। परम वचन का अर्थ है, जिसे हम न सत्य कह सकते हैं और न रहस्य से अर्थ है, जो कभी भी जाना नहीं जा सकेगा, जो अज्ञेय असत्य कह सकते हैं। क्योंकि हम जिसे सत्य कह सकते हैं, वह है, अननोएबल है। जानने की आकांक्षा प्रगाढ़ है जिसके लिए, हमारे कारण कल असत्य भी हो सकता है। परम वचन का अर्थ है जिस तक पहुंचने के लिए जीवन दौड़ता है, जिससे मिलने की प्यास | कि हमारे सत्य और असत्य दोनों के जो पार है; हम जिसके संबंध है और फिर भी समस्त श्रम और समस्त इच्छाएं और सारी अभीप्सा में कभी भी निर्णायक न हो सकेंगे। और सारी प्यासें व्यर्थ रह जाती हैं और हम उसके निकट ही पहुंच इस संबंध में जो लोग आधुनिक चिंतन से परिचित हैं, उन्हें ज्ञात पाते हैं, उसका स्पर्श होता है, लेकिन उसे जान नहीं पाते। होगा कि बड रसेल, विगिंस्टीन, ए.जे.अय्यर, ऐसे कुछ
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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