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________________ ॐ गीता दर्शन भाग-500 लगता है। आभूषणों से भरा हुआ, तो ऐसा लगता है, यह भी क्या नाटक है! तपस्वी होना चाहिए। यह कृष्ण भी क्या हीरे-जवाहरात पहने हुए, मोर-मुकुट बांधे हुए खड़े हैं! मगर जो यह कह रहा है, तपस्वी होना चाहिए, वह भी अगर ठीक से समझे, तो यही उसकी भी भाषा है। और कृष्ण के इस प्रीतिकर रूप से उसको भी प्रवेश मिल सकता है। क्योंकि यही उसकी भी चाह है। इस चाह की भाषा में ही पहला अनुभव अर्जुन को हुआ। ध्यान रखें, परमात्मा कैसा दिखाई पड़ता है, यह आप पर निर्भर करेगा कि आप कैसा उसे पहली दफा देखेंगे। यह परमात्मा पर निर्भर नहीं करेगा। यह आप पर निर्भर करेगा कि कैसा आप उसे देखेंगे। आप अपनी ही अनुभव की संपदा के द्वार से उसे देखेंगे। आप अपने ही द्वारा उसे देखेंगे। तो जो पहला रूप आपको दिखाई पड़ेगा, वह परमात्मा का रूप कम, आपकी समझ, भाषा का रूप ज्यादा है। यह अर्जुन की भाषा, समझ का रूप है, जो उसे दिखाई पड़ा। और धन्यभागी है वह व्यक्ति, जिसको अपनी ही भाषा में परमात्मा से मिलना हो जाए। क्योंकि दूसरी भाषा में मिलना हो, तो तालमेल नहीं बैठ पाता। कठिन हो जाता, शायद द्वार भी बंद हो जाता। आज इतना ही। लेकिन पांच मिनट रुकें। कीर्तन में सम्मिलित हों, फिर जाएं।
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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