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________________ ॐ दिव्य-चक्षु की पूर्व-भूमिका - इसलिए ध्यान रखना, कृष्ण ने जो पहला पर्दा उठाया, वह प्रीतिकर थीं और इसीलिए यही परमात्मा का पहला चेहरा था अर्जुन ऐश्वर्य का, महिमा का, सौंदर्य का, प्रीतिकर, कि अर्जुन डूब जाए, | | के लिए। इसमें जितनी चीजें कही गई हैं, वे अर्जुन की ही प्रीति की आलिंगन करना चाहे, लीन होना चाहे, मिल जाना चाहे, एक हो | चीजें हैं। इसे फिर से हम सुन लें, तो खयाल में आ जाएगा। जाना चाहे-ताकि तैयार हो जाए। परम ऐश्वर्ययुक्त! ईश्वर का अर्थ होता है, मालिक, ऐश्वर्य से इसलिए जो ठीक-ठीक साधना पद्धतियां हैं...। और गलत भरा हुआ। क्षत्रिय के लिए ईश्वर जैसा होना, ऐश्वर्य से भर जाना, साधना पद्धतियां भी हैं। गलत साधना पद्धतियों से इतना ही मतलब उसकी पहली वासना है। क्षत्रिय जीता उसके लिए है। गुलाम होकर है कि आपको पहुंचा तो देंगी वे, लेकिन ऐसे किनारे से पहुंचा देंगी, क्षत्रिय मरना पसंद करेगा। मालिक होकर ही जीना पसंद करेगा। जहां परमात्मा से भी आपका तालमेल होना मुश्किल हो जाए। ठीक ऐश्वर्य उसकी वासना है, उसकी आकांक्षा है। वह ऐश्वर्य की भाषा साधना पद्धतियों से इतना ही मतलब है कि वे ठीक सामने के द्वार ही समझ सकता है। वह दूसरी कोई भाषा नहीं समझ सकता। से आपको परमात्मा के पास पहुंचाएंगी। जहां मिलन सुखद और इसलिए पहली जो छबि, पहला जो रूप आविष्कृत हुआ अर्जुन प्रीतिकर और आनंदपूर्ण हो। पीछे दूसरा छोर भी देखा जा सकता के सामने, वह था ऐश्वर्य से परिपूर्ण। और ऐश्वर्य में भी जो चीजें है। देखना ही पड़ेगा, क्योंकि पूरे को ही जानना होगा, तभी कोई | गिनाई हैं, वे कई लोगों को लगेंगी, कैसी फिजूल की बातें हैं! मुक्त होता है। खासकर उनको, जो त्याग इत्यादि की भाषा सुन-सुनकर परेशान - इसलिए गलत और ठीक साधना पद्धति का इतना ही फर्क है कि | हो गए हैं। उनको बड़ी मुश्किल लगेगी कि यह भी क्या बात है! परमात्मा के किस द्वार से...। वहां शंकर तांडव करते हुए भी __ अनेक मुख, नेत्रों से युक्त, अदभुत दर्शनों वाले, बहुत-से दिव्य मौजूद हैं, और वहां कृष्ण बांसुरी बजाते हुए भी मौजूद हैं। अच्छा | भूषणों से युक्त! दिव्य भूषणों से युक्त, आभूषण पहने हुए! हो कि कृष्ण की तरफ से यात्रा करें। बहुत-से दिव्य शस्त्रों को हाथ में उठाए हुए! शंकर की तरफ से भी यात्रा होती है। और कुछ के लिए वही | वे अर्जुन की प्रीति की चीजें हैं। अगर उसको इस दरवाजे से उचित होगी, और कुछ के लिए वही प्रीतिकर होगी। कुछ हैं, जो प्रवेश न मिले, तो शायद प्रवेश असंभव हो जाए, मुश्किल हो शंकर की बारात में ही सम्मिलित होना चाहेंगे। वहां से भी परमात्मा जाए, कठिन तो हो ही जाए। वह जो-जो, जिन-जिन चीजों से प्रेम तक पहुंचा जाता है। लेकिन वह जो रूप है, अत्यंत विकराल, मृत्यु करता है, अस्त्र-शस्त्र अर्जुन का प्रेम है, और जब उसने परमात्मा का, अत्यंत दुस्साहसियों के लिए है, जो मृत्यु में भी छलांग लगाने के अनंत-अनंत विराट हाथों में अस्त्र-शस्त्र देखे होंगे, तो उसका को तैयार हों। | | परमात्मा में प्रवेश धीमे-धीमे नहीं हआ होगा: दौड़कर इब गया __ आप तो अभी जीवन से भी डरते हैं, डर-डरकर जीते हैं, मृत्यु होगा, जैसे नदी डूबती है सागर में दौड़कर।। की तो बात अलग है। डर-डरकर तो सभी मरते हैं। डर-डरकर दिव्य माला और वस्त्रों को धारण किए हुए वे भी अर्जुन की जीते हैं। कंपते रहते हैं, और जीते हैं। इनके लिए विकराल के निकट | प्रीति की चीजें हैं—दिव्य गंध का अनुलेपन किए, सब प्रकार के जाना खतरनाक हो जाए। इसलिए गीता बहुत व्यवस्था से आगे आश्चर्यों से युक्त, सीमारहित, विराटस्वरूप परमदेव परमेश्वर को बढ़ती है। अर्जुन ने देखा। संजय ने कहा कि अर्जुन के लिए परम ऐश्वर्ययुक्त दिव्य स्वरूप वह विमोहित हो गया होगा, स्तब्ध हो गया होगा। इस सौंदर्य को दिखाया। और उस अनेक मुख और नेत्रों से युक्त तथा अनेक देखकर विस्मृत हो गया होगा सब कुछ। इसे देखकर उसकी श्वासें अदभुत दर्शनों वाले, एवं बहुत-से दिव्य भूषणों से युक्त और | ठहर गई होंगी। इसे देखकर उसके प्राणों में हलन-चलन न रही बहुत-से दिव्य शस्त्रों को हाथ में उठाए हुए, तथा दिव्य माला और | होगी। इसे देखकर वह बिलकुल शून्यवत हो गया होगा। यही उसकी वस्त्रों को धारण किए हुए, और दिव्य गंध का अनुलेपन किए हुए | वासना थी। यही वह चाहता था। यह उसकी चाह की भाषा है। एवं सब प्रकार के आश्चर्यों से युक्त, सीमारहित, विराटस्वरूप इसलिए जब त्यागवादी परंपरा के लोग इसको पढ़ते हैं, तो उन्हें परमदेव परमेश्वर को अर्जुन ने देखा। बहुत हैरानी लगती है कि ईश्वर को ऐसी बातें...! जैसे महावीर को ये जितनी बातें वर्णन की गई हैं, ध्यान रखना, अर्जुन के लिए यही जो नग्न पूजते हैं, उनको कृष्ण का सजा हुआ रूप बड़ा अप्रीतिकर 277]
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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