________________
8 विराट से साक्षात की तैयारी
परमात्मा को पाता है, न कभी कोई मोक्ष को पाता है। और साथ ही | पहला लक्षण है, योग्यता का दंभ, योग्यता का अहंकार। यह भी खयाल रखें कि बिना श्रम के भी कभी किसी ने नहीं पाया इसलिए जिन्हें खयाल है कि वे पात्र हैं, वे ठीक से समझ लें है। यह पहेली है। श्रम से हम इस योग्य बनते हैं कि हमारा द्वार | कि उनसे ज्यादा बड़ा अपात्र खोजना मुश्किल है। और जिन्हें खुल जाए। खुले द्वार में सूरज प्रवेश कर जाता है। खुला द्वार सूरज | खयाल है कि उनकी कोई भी पात्रता नहीं है, उन्होंने पात्र बनना को पकड़कर ला नहीं सकता। लेकिन खुला द्वार, सूरज आता हो, | शुरू कर दिया है। तो बाधा नहीं डालता है। मनुष्य का सारा श्रम बाधा को तोड़ने के । अर्जुन पात्र था। इसलिए सहज भाव से कह सका कि मेरी कोई लिए है।
पात्रता नहीं, आपका अनुग्रह है। इस बात को खयाल में लें, तो यह सूत्र समझ में आएगा। __ अपात्र पर तो अनुग्रह भी नहीं हो सकता। उलटे रखे घड़े पर
इस प्रकार कृष्ण के विभूति-योग पर कहे गए वचन सुनकर वर्षा भी होती रहे, तो घड़ा भर नहीं सकता। उलटा रखा हुआ घड़ा अर्जुन बोला, मुझ पर अनुग्रह करने के लिए परम गोपनीय | अपात्र है। क्यों उलटा घड़ा मैं कह रहा हूं? ताकि खयाल में आ अध्यात्म-विषयक वचन आपके द्वारा जो कहा गया, उससे मेरा सके कि पात्रता भीतर छिपी है, लेकिन उलटी है। और घड़ा सीधा अज्ञान नष्ट हो गया है।
हो जाए, तो पात्र बन जाए। इसमें पहला शब्द समझ लेने जैसा है, अनुग्रह। अनुग्रह का अर्थ | । पात्रता कहीं पाने भी नहीं जाना है; हम पात्रता लेकर ही पैदा होते होता है, जिसे पाने के लिए हमने कुछ भी नहीं किया। जिसे पाने | हैं। ऐसा कोई मनुष्य ही नहीं है, ऐसी कोई चेतना ही नहीं, जो प्रभु के लिए हमने कुछ किया हो, वह सौदा है। उसमें अनुकंपा कुछ भी | को पाने की पात्रता लेकर पैदा न होती हो। फिर भी परमात्मा हमें नहीं है। जिसे पाने के लिए हमने कुछ अर्जित की हो संपदा, वह | मिलता नहीं। उसकी वाणी सुनाई नहीं पड़ती, उसके स्वर हमारे हमारे श्रम का पुरस्कार है, उसमें कुछ प्रसाद नहीं है।
हृदय को नहीं छूते। उसका स्पर्श हमें नहीं होता, उसका आलिंगन कि आपके अनग्रह से मझे जो कहा गया है। नहीं मिलता। हम पात्र हैं. लेकिन उलटे रखे हए हैं। और उलटे रखे मेरी कोई योग्यता न थी, और मेरा कोई श्रम भी नहीं था, मेरी कोई | | होने की सबसे सुगम जो व्यवस्था है, वह दंभ है, वह अहंकार है। साधना भी नहीं थी। मैं दावा कर सकू, ऐसी मेरी कोई अर्जित संपदा जितना ज्यादा बड़ा हो मैं का भाव, उतना ही पात्र उलटा होता है। नहीं है। फिर भी आपके अनुग्रह से मुझे जो कहा गया है! अर्जुन ने कहा कि आपका अनुग्रह है। ___ इससे यह अर्थ आप न लेना कि अनुग्रह की इस घटना में कृष्ण कठिन है, क्योंकि अर्जुन के लिए और भी कठिन है। अगर कृष्ण ने अर्जुन के साथ कुछ पक्षपात किया है। क्योंकि आपका भी कोई आपको मिल जाएं, तो कृष्ण से अभिभूत होना कठिन नहीं होगा। श्रम नहीं है, आपकी भी कोई साधना नहीं है, फिर यह कृष्ण अर्जुन | | लेकिन अर्जुन के कृष्ण हैं मित्र, सखा, साथी। उनके कंधे पर हाथ को ही देने पहुंच गए! और आपके द्वार को खोजकर अब तक नहीं रखकर, गले में हाथ रखकर अर्जुन चला है, उठा है, बैठा है,
तो ऐसा लगेगा कि कछ पक्षपात मालम होता है। गपशप की है। कष्ण में अनग्रह को देख लेना, मित्र में, जो साथ ___ ध्यान रहे, जो योग्य है, उसे ही यह खयाल आता है कि मेरी ही खड़ा हो! और आज तो साथ भी नहीं, अर्जुन ऊंचा बैठा था और कोई योग्यता नहीं। अयोग्य को तो सदा खयाल होता है कि मेरी | कृष्ण सारथी बने नीचे बैठे थे। आज तो केवल कृष्ण के सारथी होने बड़ी योग्यता है। जो पात्र होता है, वही विनम्र होता है। अपात्र तो | की स्थिति थी। अर्जुन ऊंचा बैठा था। उस क्षण में भी अर्जुन अनुग्रह बहुत उदंड होता है। अपात्र तो मानता है कि मैं योग्य हूं, अभी | मान पाता है, इसके लिए अत्यंत निरअहंकारी मन चाहिए। इतना तक मुझे मिला नहीं। इसमें जरूर नियति, भाग्य, परमात्मा का | | विनम्र मन चाहिए, जो कि ऊपर बैठकर भी अपने को नीचे देख कोई हाथ है। सब भांति मैं योग्य हूं और अगर मुझे नहीं मिला तो | पाता हो। मित्र को भी जो परमात्मा की स्थिति में रख पाता हो। अन्याय हो रहा है।
___ हमें परमात्मा भी मिले, तो हम मित्र की स्थिति में रखना चाहेंगे। पात्र मानता है कि मैं अपात्र हूं। इसलिए नहीं मिला, तो दोषी मैं संगी-साथी, साथ तल पर खड़ा कर लेना चाहेंगे। अर्जुन मित्र को हूं। और अगर मिलता है, तो वह प्रभु की अनुकंपा है, अनुग्रह है। परमात्मा की स्थिति में रख पाता है। और जो परमात्मा को इतने योग्यता का पहला लक्षण है, अयोग्यता का बोध। अयोग्यता का | | निकट देख पाता है, वही देख पाता है। दूर आकाश में बैठे हुए
आTS
| 2491