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के वर्तुल बनने पर मन का शांत हो जाना / ऊर्जा का प्रवाह-गुरु से शिष्य में / आशीर्वाद / ट्रॅक्वेलाइजर्स के बदले विद्युत तरंगों का उपयोग / वैज्ञानिक साल्टर का बिल्लियों पर प्रयोग / अल्फा वेव्स और ध्यान।
मनुष्य बीज है परमात्मा का ... 393
.. कृष्ण के विराट स्वरूप को देखते समय अर्जुन ने सब प्राणियों को मृत्यु-मुख में गिरते देखा / लेकिन स्वयं को गिरते नहीं देखा / ऐसा क्यों? / हम बहुत बार मरे हैं, लेकिन मृत्यु को कभी देखा नहीं है / मरते समय बेहोश हो जाना / मृत्यु के समय होश हो, तो पता चले कि शरीर मरता है-मैं नहीं / मरने की कल्पना करनी भी मुश्किल / सब मर रहे हैं अर्जुन देख रहा है / मृत्यु को देखने की चेष्टा में अमृत का अनुभव / रमण का मृत्यु से साक्षात्कार / योग है स्वेच्छा से मरने की कला/आचार्यो मृत्युः / सदगुरु के पास मृत्यु और अमृत का अनुभव / समाधि में मर्त्य और अमृत की भेद-रेखा स्पष्ट / आत्मा की अमरता ः विश्वास मात्र नहीं अनुभव बने / मृत्यु बड़े से बड़ा आपरेशन है / ध्यान है होश का क्रमिक अभ्यास-देह से भिन्न होने का बोध / नींद को होशपूर्वक देखने का प्रयोग करना / नींद में होश-तो फिर मृत्यु में होश आसान / उपवास का ध्यान-प्रयोगः शरीर को भूख लगी-मुझे नहीं / स्वयं के भीतर अमर्त्य का बोध-फिर सब के भीतर अमर्त्य का दर्शन / रामकृष्ण की अपनी मृत्यु की तीन दिन पूर्व घोषणा / शारदा से कहा-मैं नहीं मरूंगा/ शरीर से तादात्म्य के कारण मृत्यु का भ्रम होना / हम भगवान के अंश हैं—यह समझ में आता है / लेकिन हम भगवान है-यह समझ में नहीं आता! / धर्म का गणित भिन्न है / ईशावास्य उपनिषद कहता है-पूर्ण में से पूर्ण निकाल लो, तो भी पीछे पूर्ण ही शेष / परमात्मा के टुकड़े संभव नहीं / परमात्मा समग्रता है, उसमें न कुछ जोड़ा जा सकता–न कुछ घटाया / थोड़े-थोड़े परमात्मा का कोई अर्थ नहीं / असीम को खंडों में नहीं बांटा जा सकता / टर्शियम आर्गानम में आस्पेस्की का कथन-टुकड़ा पूरे के बराबर है / आंशिक परमात्मा होने का पूरे के पूरे परमात्मा हैं-अभी और यहीं / संबोधि—जो सदा से मिला ही हुआ था, उसका बोध / अपने को भगवान स्वीकार करने में बेचैनी / भीतर छिपा परमात्मा जब तक प्रकट न हो जाए, तब तक अतृप्ति / विचार भी परिणाम लाते हैं / धारणा का मनोविज्ञान / संस्मरणः विश्वविद्यालय में एक शिक्षक को बीमार होने के सुझाव दिलवाना / आदमी सिर्फ एक संभावना है / डार्विन और फ्रायड की धारणाओं से पश्चिम में हीनता को बल / आप ईश्वर हैं—परम विस्तार की धारणा / परमात्मा होना-आपकी अंतिम नियति है / अखंड भीतर विराजमान है संभावना की तरह / आप बीज हैं परमात्मा के/ अर्जुन कृष्ण का विराट रूप देख हर्षित भी, भयभीत भी / राबिया का हंसना और रोना एक साथ / अर्जुन की घबड़ाहट ः सीमा का असीम से साक्षात / विराट में खोकर मिट जाने का भय / कवि गेटे का मृत्यु-क्षण में हर्षित और कंपित होना / अर्जुन का कृष्ण से निवेदन-विराट से पुनः मनुष्य-देहरूप में वापसी के लिए / वर्तमान से राजी होने की हिम्मत नहीं है / रवींद्रनाथ की कविताः जब वे परमात्मा के द्वार से घबड़ा कर वापस लौट आए / मिटने से भयभीत अर्जुन / रसेल का व्यंग्य ः हिंदुओं के मोक्ष से उसको भय / ऊब के लिए बुद्धि जरूरी / ऊब नहीं है-बुद्धि के नीचे या बुद्धि के पार / आदमी परेशान है-भैंस और भगवान के बीच खड़ा हुआ / अर्जुन का भय-निराकार से साकार में लौटने की आकांक्षा / निराकार में सीधे जाने की तैयारी न हो, तो फिर मूर्तियां उपयोगी / अद्वैत ब्रह्मवादी शंकर द्वारा मूर्ति की पूजा करना / अर्जुन पहला और आखिरी व्यक्ति है जिसे कृष्ण ने अपना विराट रूप दिखाया / अर्जुन जैसा व्यक्ति पाना कठिन है / अर्जुन जैसा शिष्य बुद्ध, जीसस, राम-किसी को उपलब्ध नहीं हुआ / तप, साधना आदि से कोई अर्जुन जैसा न बन पाएगा / अर्जुन का अनूठा समर्पण / कृष्ण की हवा में अर्जुन ने अपने पाल खोल दिए।