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________________ ॐ मंजिल है स्वयं में 3 ईश्वर है, तो हम मौलिक रूप से यह कहना चाहते हैं कि प्रत्येक मछली सागर में तैरती रहती है, उसे सागर का पता नहीं चलता। ईश्वर है और हो सकता है। मछली को सागर से निकालकर रेत पर डाल दो, तब उसे पहली दफा कष्ण ने कहा है. ऐसा चर और अचर कोई भी नहीं है. जो मेरे पता चलता है कि सागर था। तब उसकी तड़फन, तब उसकी बेचैनी, से रहित होवे। ऐसी कोई भी सत्ता नहीं है, जहां मैं मौजूद नहीं हूं। | तब उसके प्राणों का संकट खड़ा होता है, तब उसे पता चलता है कि लेकिन पत्थर की तो हम बात छोड़ दें, आदमी को भी पता नहीं जहां मैं थी, वह सागर था, वह मेरे प्राणों का आधार था। चलता कि वह मौजूद है। पत्थर में भी वह मौजूद है। पत्थर को हम । लेकिन आदमी को परमात्मा के बाहर निकालकर किसी भी रेत छोड़ दें, आदमी को भी पता नहीं चलता कि वह मेरे भीतर मौजूद | | पर डालने का कोई उपाय नहीं है। इसलिए आदमी को पता नहीं है। हमें भी अनुभव नहीं होता कि वह हमारे भीतर मौजूद है। और | | चलता कि वह परमात्मा में जी रहा है! यह अजीब सा लगेगा। हम भी उसे खोजने निकलते हैं, तो कहीं और खोजने निकलते | | हम तो साधारणतः सोचते हैं कि परमात्मा बहुत दूर होना चाहिए, हैं—काबा में, काशी में, मक्का में, मदीना में कहीं उसे खोजने | इसलिए हमें पता नहीं चलता है। वह बिलकुल ही गलत है। दूर निकलते हैं। यह खयाल ही नहीं आता कि वह यहां भीतर हो सकता होता, तो पता हम चला ही लेते। इतना निकट है, इसीलिए पता नहीं है। क्या कारण होगा? चलता। और निकटता इतनी सघन है कि कभी नहीं टूटी, इसलिए __कारण बहुत सहज, बहुत सरल है। जो अति निकट होता है, वह | पता नहीं चलता। विस्मरण हो जाता है। जो बहुत निकट होता है, उसकी हमें याद ही | | दूरी कितनी ही बड़ी हो, पार की जा सकती है। और परमात्मा नहीं आती। और जो भीतर ही होता है, उसका हमें पता ही नहीं अगर दूर होता, तो हमने पार कर लिया होता। और एक आदमी चलता। हमें पता ही उन चीजों का चलता है, जो दूर होती हैं, जिनमें | | पार कर लेता, फिर तो हम पक्का रास्ता बना लेते। फिर कोई और हममें फासला होता है। बोध के लिए बीच-बीच में गैप, कठिनाई न थी। एक कृष्ण पहुंच जाते, एक बुद्ध पहंच जाते, फिर अंतराल चाहिए। हमारे और परमात्मा के बीच में कोई अंतराल नहीं | क्या दिक्कत थी। फिर कोई कठिनाई न थी। चांद पर एक आदमी है, इसलिए बोध पैदा नहीं हो पाता। उतर गया, अब सिद्धांततः पुरी मनष्यता उतर सकती है। अब यह इसे थोड़ा हम समझ लें। कोई कठिनाई की बात नहीं रही, देर-अबेर की बात है। एक बार अगर आपको बचपन से ही शोरगुल के बीच बड़ा किया जाए, | रास्ते का पता चल गया, तो कोई भी उतर सकता है। रेलवे स्टेशन पर बड़ा किया जाए, जहां दिनभर गाड़ियां दौड़ती | ___ जापान की एक हवाई यात्रा कंपनी उन्नीस सौ पचहत्तर के लिए रहती हों, और यात्री भागते रहते हों, और शोरगुल होता हो, इंजन टिकट बेच रही है चांद के लिए! थ्योरेटिकली पासिबल हो गया, आवाज करते हों, तो आपको उसी दिन पता चलेगा कि शोरगुल हो सिद्धांततः तो संभव हो गया; कोई अड़चन नहीं है। चांद पर आज रहा है, जिस दिन रेलवे में हड़ताल हो जाए; उसके पहले पता नहीं नहीं कल कोई भी उतरेगा। एक आदमी उतर गया, तो कोई भी उतर चलेगा। जिस दिन सब गाड़ियां बंद हों और यात्री कोई न आएं, न जाएगा। जाएं, उस दिन आपको पहली दफा पता चलेगा कि शोरगुल हो रहा ___ दूरी की यात्रा की एक खूबी है। दूरी की यात्रा में रास्ता बन जाता था। अन्यथा आप शोरगुल के आदी हो गए होंगे। आपको खयाल | | है। एक आदमी पहुंच जाए, सब पहुंच सकते हैं। लेकिन परमात्मा में भी नहीं आएगा। और हमारे बीच दूरी न होने से रास्ता नहीं बन सकता। रास्ते के लिए जो बात निरंतर होती रहती है, उसका हमें बोध मिट जाता है। | दूरी जरूरी है। कुछ तो फासला हो, तो हम रास्ता बना लें। जो बात अचानक होती है, उसका हमें बोध होता है। जो | इसलिए इतने लोग परमात्मा को पा लेते हैं, फिर भी रास्ता नहीं कभी-कभी होती है, उसका हमें बोध होता है। जो सदा होती रहती | | बन पाता बंधा हुआ कि जिस पर से फिर कोई भी धड़ल्ले से चला है, उसका हमें बोध मिट जाता है। और परमात्मा और हमारे बीच | | जाए। और फिर किसी को भी यह चिंता न रहे कि मुझे खोजना है। कभी भी हड़ताल नहीं होती, यही तकलीफ है। परमात्मा और हमारे | | रास्ता पकड़ लिया, खोज पूरी हो ही जाएगी। बीच कभी ऐसी घटना नहीं घटती कि परमात्मा मौजूद न हो। अगर | | ध्यान रहे, अगर रास्ता मजबूत हो, तो आपको सिर्फ चलना एक क्षण को भी परमात्मा गैर-मौजूद हो जाएं, तो हमें पता चले। जानना जरूरी है। धर्म के मामले की कठिनाई यह है कि चलना तो 233]
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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