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चल रहा है / परमात्मा की खोज के नाम पर चलते अलग-अलग गोरखधंधे / छोटे बड़े सभी प्राणी तीव्र वेग से मृत्यु के मुख की ओर गति कर रहे हैं | आप उग्र रूप वाले कौन हैं? / आप प्रसन्न होइए / आपको मैं तत्व से जानना चाहता हूं / आप अपनी प्रवृत्तियां सिकोड़ लें / संसार परमात्मा की ही प्रवृत्ति है / हम परमात्मा को पाना चाहते हैं, लेकिन उसकी प्रवृत्ति से बचना चाहते हैं / उग्रता और प्रसन्नता दोनों प्रवृत्तियां हैं / तत्व तो शून्य है / शून्य को तो हम देख नहीं पाते / मौन को तो हम सुन नहीं पाते / एक फ्रेंच महिला के संस्मरण : अनिर्वाण के साथ पांच साल का मौन सत्संग / मौन को सुनने में देश-काल की कोई बाधा नहीं है / जब तक प्रवृत्ति, तब तक चुनाव / प्रवृत्ति नहीं बांधती, चुनाव बांधता है / चुनाव से भीतर का शून्य खंडित होता है । जो शून्य हो जाता है, वह उसे तत्व से जान लेता है।
साधना के चार चरण ... 345
दिव्य-दृष्टि को पाकर भी अर्जुन भयभीत क्यों है? / मरण-धर्मा है अहंकार / अंतिम बाधा–अस्मिता / बहुत से मैं / बहुचित्तवान है मनुष्य / भीतरी भीड़ / साधना से भीड़ को काटना और एक-मैं का निर्माण करना / फिर मैं का विसर्जन / फिर न-मैं का भी विसर्जन / गुरजिएफः साधना के चार चरण / बहु मैं, एक मैं, न-मैं, परम शून्य / विराट को झेलने के लिए क्या तैयारी जरूरी है? / मिटने की तैयारी / सभी तरफ से मैं को मजबूत करने की तरकीबें / अपनी धार्मिकता का प्रदर्शन-प्रचार / बड़ा प्रचार–बड़ा महात्मा / बड़े अपराधी-बड़ा अहंकार / संस्मरण ः एक प्रवचन देते साधु का सामने बैठे हुए सेठों को बार-बार संबोधित करना / अहंकार के प्रति असहयोग और साक्षीभाव / जगत निष्प्रयोजन लीला है, तो फिर इसमें इतनी प्रगाढ़ नियमबद्धता क्यों है? / खेल टिकता ही नियम पर है / विज्ञान नियम की खोज है / स्वीकार से परम विश्राम घटित / स्वप्न में बेचैनी, घबड़ाहट / जागकर हंसना / प्रयोजन से चिंता / शांति से ऊर्जा का संग्रह / सब नियति का खेल मान लें, तो क्या जगत में आलस्य न छा जाएगा? / आलसी कोई नुकसान नहीं करते / सब उपद्रव कर्मठ लोगों द्वारा / जन्मजात आलस्य-जन्मजात कर्मठता / लोकमान्य तिलक का जेल में कोयले से गीता-रहस्य लिखना / बोधकथाः आलसियों का प्रेमी जापानी सम्राट / आलसियों की झोपड़ी में आग लगवाना / आलस्य या कर्मठता-सहज स्वीकार / नियति की धारणा से क्या अपराध में वृद्धि न होगी? / भीतर छिपे अपराधी से भय / नियति का स्वीकार–सभी आयामों में / चोर भी भरोसे वाला साझीदार खोजता है / लाभ का स्वीकार-हानि का भी स्वीकार / सर्व स्वीकार में अहंकार का खो जाना / अहंशून्य व्यक्ति से अपराध संभव नहीं / अहंकारजनित समाज सुधार का उपद्रव / कर्म की विक्षिप्तता / बुराई की जड़ में मैं /...युद्ध की नियति / छिपा हुआ भविष्य / आक्सफर्ड की डेलाबार प्रयोगशाला में कली की फोटो लेने पर उसमें फूल का उभरना / रूस में ऊर्जा-मंडलों का अध्ययन / तीन महीने पहले ही बीमारी का पता लग जाना / चेतना की ऊंचाइयों में भविष्य का स्पष्ट दर्शन / अर्जुन युद्ध का निमित्त है-कारण नहीं / निमित्त बदले जा सकते हैं / अगर अर्जुन नहीं मारेगा, तो कोई और मारेगा / नियति योद्धाओं को मार चुकी है / अर्जुन की जीत निश्चित हो चुकी है / रावण की या दुर्योधन की हार निश्चित / अस्तित्व के विपरीत होने में हार है / अहंकार को मजा-धारा के विपरीत तैरने में / पांडव धारा के अनुकूल हैं / संन्यास अर्जुन के लिए सहज नहीं / जुजुत्सु की कला-विराट के साथ होना / जुजुत्सु का साधक सहयोग करता है-संघर्ष नहीं / शराबी गिरता है-चोट नहीं लगती / बच्चों को भी चोट नहीं लगती / अर्जुन! तू निस्संदेह जीतेगा; युद्ध कर।
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बेशर्त स्वीकार ... 361
संसार में ही रह कर मन सदा शांत, प्रसन्न और उत्साही कैसे रखें? / अशांति और उदासी के स्वीकार में ही उनका अंत है / अशांत आदमी कुछ भी करे, वह अशांति को बढ़ाएगा / नीम के बीज से नीम का पत्ता ही निकलेगा / कुछ करें मत, सिर्फ राजी हो जाएं / स्वीकार क्रांतिकारी तत्व है / संस्मरणः