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जोर दिया है / पूरा परमात्मा देखने पर व्याकुलता स्वाभाविक है / तांत्रिकों ने साहस-पूर्वक कुरूप प्रतिमाएं भी बनाई हैं / काली की प्रतिमा में द्वंद्व को इकट्ठा करने की कोशिश / मां का प्रेम और मृत्यु की कठोरता / काली का प्रतीक-मूल्य खोता चला गया है / परमात्मा के सौम्य, सुंदर रूप से हमें राहत मिलती है / मोर-मुकुट बांधे, बांसुरी बजाते हुए कृष्ण / सुख ही सुख, शांति ही शांति-मनोकामना की परिपूर्ति / कृष्ण, राम, बुद्ध, महावीर-सदा युवा / बूढ़े, जीर्ण-जर्जर, रुग्ण व्यक्ति को भगवान मानना कठिन होगा / सब तीर्थंकर और अवतार-बिना दाढ़ी-मूंछ के / हमारी चिंता—कि वे हम जैसे न हों / शरीर के नियमों में अपवाद नहीं होते / रोज दाढ़ी-मूंछ छोलने का मनोवैज्ञानिक अजूबापन / दाढ़ी-मूंछ-पुरुष का प्राकृतिक सौंदर्य / मृत्यु का भय-आत्मा की अमरता की बातें / जीवन का मोह / समाज प्रदत्त झूठा अंतःकरण / भय और लोभ का आधार / आचार-विचार के सामाजिक संस्कार / धारणाशून्य चित्त में परमात्मा का अनुभव / ईश्वर भी माया का हिस्सा है / भक्तों द्वारा निर्मित अलग-अलग भगवान / माया की आखिरी परिधि—ईश्वर / मृत्यु के विकराल मुंह की ओर बढ़ते हुए सारे लोग / अंततः आदमी पहुंचता है कब्र में / मृत्यु का, दुख का कारण परमात्मा ही है / परमात्मा सृष्टि है-और प्रलय भी / अर्जुन की बेचैनी / जुनैद का संस्मरण : पड़ोसी पुण्यात्मा और पापी एक साथ / किसी के पैरों में झुकना एक बड़े निष्कलुष हृदय का लक्षण है / अर्जुन परमात्मा के मृत्यु-रूप को अप्रीतिकर समझ कर हटाना चाह रहा है / यह चुनाव उसे पुनः द्वंद्व में गिरा रहा है।
पूरब और पश्चिम : नियति और पुरुषार्थ ... 329
महाभारत युद्ध क्या एक अपरिहार्य नियति था? / दो जीवन दृष्टियां : पुरुषार्थ की और नियति की / पश्चिम का प्रयोगः बाहर समृद्धि, भीतर तनाव, संताप / महंगा सौदा / पूरब का प्रयोगः भौतिक दरिद्रता-आत्मिक शांति और ऐश्वर्य / भविष्य की चिंता नहीं, तो वर्तमान में जीना संभव / कल कभी आता नहीं है / जीने की तैयारी करते-करते जीने वाला ही नष्ट हो जाता है / पाने के लिए गंवाना भी होता है / पश्चिम का नया अनुभव-बाहर समृद्ध होने पर भी भीतर दरिद्र है / पूरब बहुत बार समृद्ध हो चुका है / महाभारत के समय भारत समृद्धि के शिखर पर था / परमाणु ऊर्जा वाले अस्त्र-शस्त्रों का उल्लेख / समृद्धि और युद्ध / आत्मिक दरिद्रता हिंसा लाएगी ही / मनुष्यता विश्वयुद्ध के कगार पर / तीसरे विश्वयुद्ध से बचना करीब-करीब असंभव दिखता है / एक व्यक्ति का रोम जाकर जीसस की मूर्ति तोड़ना / विध्वंस की विक्षिप्तता / विनाश का आनंद / स्वतंत्रता के नाम पर विध्वंसः अति दयनीय, रुग्ण दशा / विश्वयुद्ध की अतिशय तैयारी हो चुकी है / पूरब में समृद्धि का शिखर और खाई अनेक बार घटित / पश्चिम का इतिहास छह हजार साल का / वेद के नब्बे हजार साल से भी ज्यादा पुराने होने की संभावना / मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की प्राचीन सभ्यताएं / आस्ट्रेलिया में उपलब्ध पत्थर पर खुदे चित्र-अंतरिक्ष यात्रियों जैसी वेशभूषा-सत्तर हजार साल पुराने / तिब्बत के एक पहाड़ पर प्राप्त ग्रामोफोन रिकार्ड जैसे पत्थर के सत्तर चके-बीस हजार साल पुराने / पूरब का निष्कर्षः भविष्य की चिंता छोड़ी जा सके, तो ही आत्मा निर्मित होती है / सफलता असंभव है / वासना सदा
और ज्यादा की मांग है / नियति की धारणा वाला व्यक्ति निर्भार हो जाता है / महत्वाकांक्षा का अंतिम परिणाम विक्षिप्तता / मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि तीन चौथाई मनुष्य जाति का मस्तिष्क गड़बड़ है / मन एक अराजकता है-एक भीड़ / क्रोध अस्थायी पागलपन है / भारत की दृष्टि ः भविष्य को छोड़ दो परमात्मा पर / कल की चिंता के साथ वर्तमान में जीना संभव नहीं / गीता की दृष्टिः भविष्य सिर्फ अनफोल्ड हो रहा है / यह दृष्टि एक उपाय है / रामलीला में कथा को बदलने का कोई उपाय नहीं है / एक रामलीला में रावण का सीता से प्रेम / रावण ने शिवजी का धनुष तोड़ दिया / नकली को असली मान लेने से जीवन में बड़ी उलझन हो जाती है / कृष्ण ने कहाः अर्जुन, जो हो रहा है, उसे होने दे / तू निमित्त मात्र है / बंगाल के अदभुत संन्यासी स्वामी युक्तेश्वर गिरि-योगानंद के गुरु / बोध घटनाः एक शिष्य का मारपीट में भाग न लेना / युक्तेश्वर ने कहा: तूने नि दूसरा बन गया / कृष्ण कह रहे हैं : जो होनी है, वह होने दे-युद्ध, तो युद्ध; संन्यास, तो संन्यास / तू बीच में मत आ / सृजन, फिर विनाश; फिर सृजन, फिर विनाश—इस वर्तुल के पीछे परमात्मा का क्या आशय है? / आदमी निरंतर पूछता रहा है कि इस विराट आयोजन का क्या लक्ष्य है / यदि आत्मज्ञान
और मोक्ष लक्ष्य है, तो इतनी ज्यादा बाधाएं क्यों बनाईं / जैनों ने परमात्मा को नहीं माना / आदमी अमुक्त क्यों हुआ? / परमात्मा ने आदमी को अपने राज्य से बाहर क्यों निकाला? / कहते हैं कि शैतान ने अदम को बगावत का खयाल दिया / शैतान को कौन बनाता है? / हिंदू कहते हैं : जगत का कोई प्रयोजन नहीं है; यह लीला है / काम में प्रयोजन होता है / खेल में प्रयोजन नहीं होता / प्रातः सैरः बस, होने का मजा / निष्प्रयोजन घूमने का आनंद / भविष्य से, लक्ष्य से तनाव पैदा होता है / सारी सृष्टि परमात्मा की लीला है-निष्प्रयोजन / परमात्मा खेल रहा है : हाइड एंड सीक / खुद को छिपा रहा है और खुद ही खोज रहा है । धार्मिक आदमी वह है, जिसके लिए सब कुछ खेल हो गया / रावण में भी वही. राम में भी वही / दोनों तरफ से वह दांव