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________________ 3 गीता दर्शन भाग-50 द्यूतं छलयतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम् । की होती है। जो लोग जीवन को. जीवन की सार्थकता को, जीवन जयोऽस्मि व्यवसायोऽस्मि सत्त्वं सत्त्ववतामहम् ।। ३६ ।। के आनंद को पा लेते हैं, वे मृत्यु से पीड़ित होते हुए नहीं देखे जाते। वृष्णीनां वासुदेवोऽस्मि पाण्डवानां धनंजयः। | उन्हें तो मृत्यु एक विश्राम मालूम होती है। लेकिन अधिकतम लोग मुनीनामप्यहं व्यासः कवीनामुशना कविः ।। ३७ ।। तो मृत्यु से पीड़ित होते देखे जाते हैं। दण्डो दमयतामस्मि नीतिरस्मि जिगीषताम् । ___ हम सबको यही लगता है कि वे मृत्यु से दुखी हो रहे हैं। वह गलत मौनं चैवास्मि गुह्यानां ज्ञानं ज्ञानवतामहम् ।। ३८॥ | है। वे दुखी हो रहे हैं इसलिए कि वह जीवन चला गया, जिसमें पाने हे अर्जुन, मैं छल करने वालों में जुआ और प्रभावशाली | के बहुत मन्सूबे थे, बड़ी आकांक्षाएं थीं, बड़े दूर के सपने थे। बड़े पुरुषों का प्रभाव हूं तथा मैं जीतने वालों का विजय हूं और | तारे थे, जिन तक पहुंचना था और कहीं भी पहुंचना नहीं हो पाया। निश्चय करने वालों का निश्चय एवं सात्विक पुरुषों का | और आदमी इस पूरी दौड़ में बिना कहीं पहुंचे रास्ते पर ही मर जाता सात्विक भाव हूं। | है। पड़ाव भी उपलब्ध नहीं होता, मंजिल तो बहुत दूर है। और वृष्णिवंशियों में वासुदेव अर्थात मैं स्वयं तुम्हारा सखा ___ मृत्यु का जो दंश है, जो पीड़ा है, वह जीवन की व्यर्थता के और पांडवों में धनंजय अर्थात तू एवं मुनियों में वेदव्यास | कारण है। ___ और कवियों में शुक्राचार्य कवि भी मैं ही हूं। इसलिए बुद्ध को हम दुखी नहीं देखते मरते क्षण में। सुकरात को और दमन करने वालों का दंड अर्थात दमन करने की शक्ति | हम दुखी नहीं देखते। महावीर को हम पीड़ित नहीं देखते। मृत्यु उन्हें हूं, जीतने की इच्छा वालों की नीति हूं और गोपनीयों में | | मित्र की तरह आती हुई मालूम पड़ती है। लेकिन हमें शत्रु की तरह अर्थात गुप्त रखने योग्य भावों में मौन हूं, तथा ज्ञानवानों का | आती मालूम पड़ती है। क्यों? क्योंकि हमारी वासनाएं तो पूरी नहीं तत्व-ज्ञान मैं ही हूं। हुईं; हमें अभी और समय चाहिए। हमारी इच्छाएं तो अभी अधूरी हैं। अभी हमें और भविष्य चाहिए। ध्यान रहे, भविष्य न हो तो हमारी इच्छाओं को फैलने की जगह - अर्जुन, मैं छल करने वालों में जुआ, प्रभावशाली पुरुषों नहीं रह जाती। भविष्य तो चाहिए ही, तभी हम अपनी इच्छाओं की e का प्रभाव, जीतने वालों का विजय, निश्चय करने | शाखाओं को फैला सकते हैं। वर्तमान में इच्छा नहीं होती, इच्छा वालों का निश्चय, सत्पुरुषों का सात्विक भाव हूं। सदा भविष्य में होती है। वासनाओं का जाल तो सदा भविष्य में हैरानी होगी यह सोचकर कि कृष्ण कहते हैं कि मैं छल करने | होता है, वर्तमान में कोई वासना का जाल नहीं होता। अगर कोई वालों में जुआ हूं। व्यक्ति शुद्ध वर्तमान में हो, अभी, यहीं हो, तो उसके चित्त में कोई शायद जीवन में सभी कुछ छल है। और जीवन की जो वासना नहीं रह जाएगी। छल-स्थिति है, वह जैसी जुए में प्रकट होती है, वैसी और कहीं| | वासना हो ही नहीं सकती वर्तमान में। वासना तो होती ही कल नहीं। जीवन जुआ है और जुए में जीवन का जो मायिक रूप है, जो है, आने वाले कल में, आने वाले क्षण में। वासना का संबंध ही छल है, वह अपनी श्रेष्ठतम अभिव्यक्ति को उपलब्ध होता है। इसे भविष्य से है। जो लोग गहरे में खोजते हैं, वे तो कहते हैं कि भविष्य थोड़ा हम समझें, तो आसानी हो। और यह कीमती है। | ही इसीलिए मन पैदा करता है, क्योंकि बिना भविष्य के वासनाओं __जीवनभर हम कोशिश करते हैं जो भी पाने की, उसे कभी पा | को फैलाएगा कहां। भविष्य कैनवस का काम करता है, जिसमें नहीं पाते हैं। लगता है कि मिलेगा। लगता है कि अब मिला। लगता वासनाओं के सपने फैल जाते हैं। है कि बस, अब मिलने में कोई देर नहीं। और हर बार निशाना चूक इसलिए जो लोग वासनाओं से मुक्त होना चाहते हैं, उनके लिए जाता है। और मृत्यु के क्षण में आदमी पाता है कि जो भी चाहा था, | एक ही प्रक्रिया है और वह यह है कि भविष्य को छोड़ दो और वह कुछ भी नहीं मिला। सिर्फ अपनी वासनाओं की राख ही हाथ | वर्तमान में जीयो। वर्तमान से आगे मत बढ़ो। जो क्षण हाथ में है, में रह जाती है। उसको ही जी लो; आने वाले क्षण का विचार ही मत करो। जब वह मरते क्षण में जो पीड़ा है, वह मृत्यु की नहीं, वह व्यर्थ गए जीवन | । | आ जाएगा, तब जी लेंगे। 214 .
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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