________________
ॐ मैं शाश्वत समय हूं 8
गुण विकसित नहीं हो पाए हैं।
ने कहा, माफ करिए। आप फिर भूल कर रहे हैं, मैं उसकी मां हूं! और अब एक दुर्घटना घट रही है दुनिया में कि स्त्रियां इस लंबी स्त्रियां कपड़े पुरुषों जैसा पहनें, चलें पुरुषों जैसा, उठे पुरुषों परेशानी से पीड़ित होकर एक प्रतिक्रिया में उतर रही हैं और वे जैसा, पुरुष का व्यवसाय करें, पुरुष के ढंग से जीएं, पुरुष सिगरेट कोशिश कर रही हैं परुषों जैसा हो जाने की। वह बड़ी से बड़ी पीएं तो वे सिगरेट पीएं, पुरुष गालिया बके ता दुर्घटना है, जो मनुष्य-जाति के ऊपर घट सकती है। स्त्रियां | | अमेरिका में स्त्रियां उन अपशब्दों का प्रयोग कर रही हैं, जिनका कोशिश कर रही हैं पुरुष जैसा हो जाने की—कपड़े-लत्तों से, | | कभी भी स्त्रियों ने नहीं किया था। लेकिन अगर पुरुष के बराबर व्यक्तित्व से, ढंग से, बात से। जो-जो व्यवस्था पुरुष को है, | समानता चाहिए, तो करना ही पड़ेगा। जो पुरुष कर रहा है, वही वही-वही उनको भी होनी चाहिए।
करना पड़ेगा। भूल है उसमें, क्योंकि स्त्री का व्यक्तित्व बुनियादी रूप से तो जो पुरुष के अत्याचार से भी नहीं मिटा था, वह उनकी अलग है। उसे भी हक होना चाहिए खुद के विकसित करने का, | नासमझी से बिलकुल मिट जाएगा। स्त्रियों के गुण अलग हैं। उतना ही जितना पुरुष को है। लेकिन पुरुष जैसा विकसित होने का इसलिए कृष्ण ने उचित ही किया कि स्त्रियों के गुण अलग से हक बहुत महंगा सौदा है। और अगर स्त्रियां पुरुष जैसी होती हैं, | | गिनाए और कहा कि अगर मुझे तुझे स्त्रियों में खोजना हो तो तू तो हम इस दुनिया को बिलकुल बेरौनक कर देंगे। कुछ गुण एकदम | | कीर्ति में, श्री में, वाक् में, स्मृति में, मेधा में, धृति में और क्षमा में खो जाएंगे, जो स्त्रियों के ही हो सकते थे।
मुझे देख लेना। __ आज पश्चिम में कीर्ति नहीं हो सकती स्त्रियों में। श्री नहीं हो | __ अर्जुन ने पूछा है कि किन भावों में मैं आपको देखू? कहां सकती। क्षमा नहीं हो सकती। धृति नहीं हो सकती। जिस स्मृति की | | आपको खोजूं? कहां आपके दर्शन होंगे? तो स्त्रियों में अगर मैंने बात कही. वैसी समग्र स्मति नहीं हो सकती। क्योंकि वह हर देखना हो, तो इनमें खोज लेना। मामले में पुरुष के साथ, जैसा पुरुष है, वैसा करने की कोशिश में | तथा मैं गायन करने योग्य श्रुतियों में बृहत्साम, छंदों में गायत्री लगी है।
| छंद तथा महीनों में मार्गशीर्ष का महीना, ऋतुओं में वसंत ऋतु हूं। इसमें नुकसान पुरुष को होने वाला नहीं है। इसमें नुकसान स्त्री अंतिम, वसंत ऋतु पर दो शब्द हम खयाल में ले लें। को ही हो जाएगा। क्योंकि वह नंबर दो की ही पुरुष हो सकती है। ऋतुओं में खिला हुआ, फूलों से लदा हुआ, उत्सव का क्षण पुरुष तो हो नहीं सकती; सेकेंडरी, नंबर दो की पुरुष हो सकती है। वसंत है। परमात्मा को रूखे-सूखे, मृत, मुर्दा घरों में मत खोजना।
और नंबर दो की पुरुष होकर वह एकदम कुरूप और विकृत हो | जहां जीवन उत्सव मनाता हो, जहां जीवन खिलता हो वसंत जैसा, जाएगी।
जहां सब बीज अंकुरित होकर फूल बन जाते हों, उत्सव में, वसंत सुना है मैंने, मुल्ला नसरुद्दीन एक भीड़ में खड़ा है। टिकट | में मैं हैं। खरीदने लोग खड़े हैं एक क्यू में सिनेमागृह के पास। सामने के | ईश्वर सिर्फ उन्हीं को उपलब्ध होता है, जो जीवन के उत्सव में, व्यक्ति से, बड़ी देर हो गई है, वह कुछ बात करना चाहता है। उसने | | जीवन के रस में, जीवन के छंद में, उसके संगीत में, उसे देखने की कहा कि देखते हैं, कैसा जमाना बिगड़ गया! सामने देखते हैं उस क्षमता जुटा पाते हैं। उदास, रोते हुए, भागे हुए लोग, मुर्दा हो गए लड़के को, जो खिड़की के करीब पहुंच गया। लड़कियों जैसे कपड़े | लोग, उसे नहीं देख पाते। पतझड़ में उसे देखना बहुत मुश्किल है। पहन रखे हैं। मुल्ला नसरुद्दीन के पड़ोसी व्यक्ति ने कहा, क्षमा करें, | | मौजूद तो वह वहां भी है। लेकिन जो वसंत में भी उसे नहीं देख पाते, आप भूल में हैं। वह लड़का नहीं है, लड़की ही है। नसरुद्दीन ने वे पतझड़ में उसे कैसे देख पाएंगे? वसंत में जो देख पाते हैं, वे तो कहा कि तुम्हारे पास क्या मापदंड है इतनी दूर से! मुझे बिलकुल उसे पतझड़ में भी देख लेंगे। फिर तो पतझड़ पतझड़ नहीं मालूम लड़का मालूम होता है! उसने कहा, क्षमा करिए। वह मेरी ही | | पड़ेगी; वसंत का ही विश्राम होगा। फिर तो पतझड़ वसंत के विपरीत लड़की है। लड़की है, लड़का नहीं; मेरी ही लड़की है। तब तो | | भी नहीं मालूम पड़ेगी; वसंत का आगमन या वसंत का जाना होगा। नसरुद्दीन ने कहा कि क्षमा करिए। मुझसे बड़ी भूल हो गई! कपडे | | लेकिन देखना हो पहले, तो वसंत में ही देखना उचित है। की वजह से यह भूल हो गई। तो आप उसके पिता हैं ! उस व्यक्ति | । शायद पृथ्वी पर हिंदुओं ने, अकेला ही एक ऐसा धर्म है, जिसने
211