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विहीन जीवन विनम्रता पैदा करता था / बहिर्यात्रा की कमी-अंतर्यात्रा की सुविधा / आज भीतर जाना कठिन हो गया है / आस्तिक का प्रारंभ-मैं अधूरा हं, इसके स्वीकार से / जो नापा जा सके-बुद्धि केवल उसे ही जान सकती है / विज्ञान बुद्धि का विस्तार है / प्रेम अमाप्य है / परमात्मा है असीम / ईश्वर के होने के सभी प्रमाण बचकाने हैं / विचार जुगाली है / ईश्वर को न पढ़ा जा सकता, न सुना जा सकता, न सोचा जा सकता / मनुष्य की इंद्रियों से ज्यादा सशक्त इंद्रियां-पशु-पक्षियों के पास / मनुष्य कितना सीमित है! / अनंत में छलांग कैसे लगे / प्राकृत नेत्रों से कृष्ण को देखना संभव नहीं-दिव्य-नेत्र जरूरी / कृष्ण के मूल को देखा अर्थात स्वयं को देखा / समर्पण होते ही दिव्य-चक्षु उपलब्ध / कृष्ण कैटेलिटिक एजेंट हैं / बिजली की मौजूदगी में ही हाइड्रोजन और आक्सीजन का मिलकर पानी बनना / कृष्ण की मौजूदगी में अर्जुन का समर्पण / मीरा का समर्पण: पहले कृष्ण को अपने भाव से जीवंत करना / मीरा की प्रगाढ़ भाव-ऊर्जा / परम सत्ता कभी तिरोहित नहीं होती, सिर्फ उसके प्रतिबिंब तिरोहित होते हैं / देहधारी कृष्ण के प्रति समर्पित होने में दूसरी कठिनाई है / जहां समर्पण-वहां परमात्मा / अब जाकर अर्जुन समर्पित हुआ / कैटेलिटिक एजेंट के अभाव में समर्पण अति कठिन / संस्मरण : एक जर्मन युवती का तिब्बतन आश्रम में नमस्कार सीखना / झुक जाना अहंकार की मौत है / अहंकार सबसे बड़ा पाप है / भीतर देखने के लिए आंख जरूरी नहीं है / दिव्य-चक्षु अर्थात सिर्फ देखने वाला ही हो-बिना किसी माध्यम के / संसार में थोड़ा भी रस हो, तो समर्पण नहीं हो सकता / कृष्ण ने कहा, तुझे दिव्य-चक्षु देता हूं / भाषा की अड़चन / सारी भाषाएं लेने-देने पर निर्मित हैं / प्रेम प्रेमी से ज्यादा बड़ी घटना है, उसका नियंत्रण संभव नहीं है / गीता की कथा कई तलों में फैली हुई /घटना घटी कृष्ण और अर्जुन के बीच / दूर से देखा संजय ने/संजय ने सुनाया-अंधे धृतराष्ट्र को / संजय के पास दिव्य-दृष्टि नहीं-दूर-दृष्टि है / गीता के चार तल-कृष्ण, अर्जुन, संजय और धृतराष्ट्र / गीता की लोकप्रियता का कारण / अंधे धृतराष्ट्र को कही गई है / हम सब अंधे हैं / कृष्ण ने अपना ऐश्वर्ययुक्त दिव्य स्वरूप अर्जुन को दिखाया / अर्जुन की तैयारी अच्छे-अच्छे को पहले देखने की / बुराई के लिए शैतान को जिम्मेदार बताना / मोजेज, जीसस, मोहम्मद का द्वैत की भाषा बोलना-श्रोताओं के कारण / सारा द्वैत परमात्मा है / गलत विधियों के कारण परमात्मा का विकराल रूप पहले दिखाई पड़ जाना / जन्म-जन्म के लिए बंद-भयभीत होकर / तांडव करते शंकर और बांसुरी बजाते कृष्ण / क्षत्रिय अर्जुन के लिए ऐश्वर्य की भाषा सरल / कृष्ण के सजे-धजे रूप से तपस्वियों को कठिनाई / परमात्मा की पहली झलक व्यक्ति के अनुकूल हो।
धर्म है आश्चर्य की खोज ... 279
कृष्ण और अर्जुन के बीच घटी घटना को संजय कैसे देख पाया? / अंश से पूर्ण को पकड़ा नहीं जा सकता, लेकिन छुआ जा सकता है | अर्जुन के पास अनुभव है-अभिव्यक्ति की क्षमता नहीं / गुरजिएफ का अनुभव-आस्पेंस्की की अभिव्यक्ति / अनुभव और अभिव्यक्ति एक ही व्यक्ति में मिलना कठिन है / अनुभव, वक्ता, श्रोता—विभिन्न तल / स्वप्न में समय की गति / सुख में समय छोटा और दुख में समय लंबा / आनंद में समय शून्य हो जाता है / कृष्ण और अर्जुन के बीच का संवाद-समयशून्यता में घटित / संजय को लंबा समय लगा-धृतराष्ट्र को बताने में / गीता में कृष्ण, अर्जुन, संजय और धृतराष्ट्र का अदभुत संयोग / संजय है बीच की कड़ी / अर्जुन ने पहले परमात्मा का ऐश्वर्यरूप देखा-फिर प्रकाश रूप / ऐश्वर्य धीमा प्रकाश है / परमात्मा के प्रकाशरूप के सीधे साक्षात से खतरा / सूर्य पर एकाग्रता का क्रमिक अभ्यास / सभी धर्मों की सहमति-प्रकाश की परम अनभति पर / प्रकाश ही प्रकाश / अंधों के लिए कोरे शब्द हैं-ईश्वर, आत्मा / अनुभूति के तीन चरण-ऐश्वर्य, प्रकाश, एकता / जब तक पदार्थ दिखे, तब तक अनेकता / एक स्वामी कहते हैं : सोना मिट्टी एक है; फिर भी सोना नहीं छूते / सोना मिट्टी एक-यह कोई नैतिक सिद्धांत नहीं, एक आध्यात्मिक अनुभव है / सोना, मिट्टी, शरीर-सब प्रकाश ऊर्जा से निर्मित / परम प्रकाश के अनुभव के बाद-अद्वैत, अभेद / तर्क और वाद चीजों को खंड-खंड करते हैं / आश्चर्य है-बुद्धि के पार की झलक / आज की आश्चर्य-शून्य सदी / बच्चे के आश्चर्य को नष्ट करना / मस्तिष्क को ट्रांसप्लांट करने के प्रयोग / गर्भ में बच्चे को शिक्षित करना / धर्म है रहस्य / धर्म है आश्चर्य की खोज / बुद्धि से दुख / बुद्धि जो नहीं है, उसे खोजती है / जो है, वह बुद्धि को दिखाई नहीं पड़ता / अर्जुन की बुद्धि गिरी, वह आश्चर्य से भर गया / एक गृहिणी का दुखी होना कि भगवान चार दिन बाद चले जाएंगे / वर्तमान को चूकना / ईश्वर का अनुभव रोएं-रोएं तक स्पंदित / योग-शरीर से आत्मा तक / भक्ति-आत्मा से शरीर तक / सरदार पूर्णसिंह का संस्मरण : स्वामी राम के शरीर से राम की ध्वनि का निकलना / आत्मा के अनुभव से शरीर भी पवित्र हो जाता / आप ही आप श्रद्धा से सिर झुक जाना / अर्जुन झुक गया / हाथ जुड़ गए / आश्चर्य में डूबे, लड़खड़ाते शब्द / अर्जुन का हर्षोन्माद / विराट-दर्शन / अनुभव का वर्णन-गैर-अनुभवियों को पागलपन लगना / मंसूर का उदघोष–अनलहक / योग्य श्रोता मिले, तो ही अनुभव को कहना / विराट-दर्शन के बाद सब कुछ बुद्धि-अतीत।