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गीता-दर्शन अध्याय 11
विराट से साक्षात की तैयारी ... 247
- श्रम से परमात्मा नहीं मिलता / श्रम से हम ग्रहणशील बनते हैं / प्रसाद मिलता है अनुग्रह से, अनुकंपा से / आग्रह और दावा अहंकार है / योग्यता का दावा-अपात्रता है / पात्र विनम्र होता है | अयोग्यता का बोध / अर्जुन पात्र था / अपात्र है-उलटा घड़ा / अर्जुन मित्र में भी परमात्मा देख पाता है / आकाश में बैठे किसी परमात्मा को सिर झुकाना आसान है / अध्यात्म प्रेम से भी ज्यादा गोपनीय है / प्रेम सार्वजनिक नहीं है / गुरु और शिष्य का आत्मिक मिलन / प्रेमियों को भौतिक अर्थों में एकांत चाहिए / अध्यात्म के लिए बाजार में भी अकेलापन संभव / कृष्ण-अर्जुन-संवाद-युद्ध के मैदान पर घटित / गुरु तो भीतर शून्य हैं / शिष्य भी शून्य हो जाए तो आध्यात्मिक मिलन घटित / भ्रांत धारणाओं का टूट जाना सत्य का आ जाना नहीं है | पंडित के पास ज्ञान है-अनुभव नहीं / अर्जुन ईमानदार है / सबसे बड़ा धोखा-उधार ज्ञान को अनुभव मान लेना / अज्ञानी की आस्तिकता या नास्तिकता-दोनों बेईमानियां हैं / धर्म अनुभव है / शब्दों से संप्रदाय बनते हैं / हिंदू, ईसाई, मुसलमान-शब्दों पर रुक गए लोग / अर्जुन की अब तक की जिज्ञासाएं बौद्धिक थीं / अनुभव की अभीप्सा / अब मैं आपके विराट को प्रत्यक्ष देखना चाहता हूं / चर्म-चक्षुओं से निराकार को नहीं देखा जा • सकता / देखने की क्षमता का एक नए ही आयाम में प्रवाह / दिव्य-चक्षु का खुलना / परमात्मा अनंत गड्डू है / विराट शून्य में मिट जाने का दुस्साहस /
बुद्ध के शून्य से भयभीत लोग / असंभव की चाह-मिटने का साहस / विराट की अभीप्सा से शून्य मनुष्य पशु ही है / जीवन को दांव पर लगाना / शिष्य योग्य हो-तो ही गुरु उत्तर देते हैं / अर्जुन ने कहा : योग्य समझें तो ही विराट का दर्शन कराएं / तैयारी पूरी न हो, तो विराट के साक्षात से व्यक्ति के विक्षिप्त हो जाने की संभावना / सूफी साधकों-मस्तों की कठिनाई / आध्यात्मिक अराजकता से वापसी / विराट का संपर्क अस्त-व्यस्त न करे / नीत्शे की विक्षिप्तता-सदगुरु का अभाव / बिना गुरु के अनंत में झांकने की हिम्मत / अपरिपक्व नीत्शे / अधैर्य, रुग्ण चित्त का लक्षण है / ध्यान के लिए अनंत धैर्य चाहिए / गहरी जड़ें: विशाल वृक्ष / अर्जुन तैयार हो गया है / पहली तैयारीः संदेह गंवाए / सवालों से भरा चित्त उत्तर ग्रहण न कर पाएगा / पूछना समाप्त हो, तो देखने की क्षमता आए / प्रश्न अर्थात कुछ सुनाओ / श्रवण उधार है-और साक्षात नगद / जीवन की सामान्य उलझनों से ऊपर उठना जरूरी / दूसरी तैयारी: मुमुक्षा जगी/अथातो ब्रह्म जिज्ञासा / गुरु प्रसन्न होते हैं, जब शिष्य प्रत्यक्ष अनुभव के लिए प्यास से भर जाता है | शंकर ने कहाः संसार स्वप्न है, ताकि सत्य की खोज शुरू हो सके / शंकर का कथन, एक उपाय है / रोजमर्रा संसार से मुक्त हो कर आंख ऊपर उठे / विराट सत्य के अनुभव की तुलना में हमारा संसार स्वप्न जैसा / सूरज की तुलना में दीया / सब शब्द सापेक्ष हैं / क्षुद्र से चेतना हटने पर विराट का स्मरण / समस्त साधनाएं-क्षुद्र को भूलने के उपाय / संसार का विस्मरण-ब्रह्म की जिज्ञासा / दोनों आंखों से बाहर बहती चेतना को भीतर खींचने की साधना / चेतना का बहिर्गमन है-धारा / अंतर्गमन है-राधा / राधा एक यौगिक प्रक्रिया है | हमारे भीतर छिपा साक्षी ही कृष्ण है / अंतर-रास / दो मार्ग–योग और भक्ति / अंतस-रास को उपलब्ध व्यक्ति को समर्पण / समर्पित होते ही अर्जुन कृष्ण की ऊर्जा के साथ बहने लगा।
दिव्य-चक्षु की पूर्व-भूमिका ... 263
जीवन क्या है? / अंधा प्रकाश को कैसे जाने / नास्तिक का इनकार / स्वयं का अंधापन स्वीकार करने में अहंकार को चोट / जितना अहंकारी युग, उतना ज्यादा नास्तिक / पिछले तीन सौ वर्षों की उपलब्धियों से मनुष्य का अहंकार सघन हुआ है / वैज्ञानिक यंत्रों से इंद्रियों की क्षमता खूब बढ़ी है / विज्ञान