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________________ 3 गीता दर्शन भाग- 58 रावण की असली पराजय यही है कि रावण राम को अपने जैसा | मुझे नहीं बदल सकता है, यह उनका प्रयोजन है। मैं कुछ भी करूं, नहीं बना पाया। असली पराजय यही है। राम राम ही बने रहे। मेरा करना मेरी आत्मा को नहीं बदल सकता है. यह उनका उनके व्यक्तित्व में जरा-सी एक कली भी नहीं सूखी। उनका फूल अभिप्राय है। फूल जैसा ही खिला रहा। उनकी तलवार, उनके हाथ के शस्त्र, ध्यान रखें, हम जो भी करते हैं, उसका जोड़ ही हमारी आत्मा उनके भीतर की मनुष्यता में जरा-सा भी फर्क न ला पाए। वही | है। राम जो भी करते हैं, उसका जोड़ उनकी आत्मा नहीं है। राम जो रावण की हार है; वहीं रावण पराजित हो गया है। अगर राम भी | भी करते हैं, वह एक तल पर है और उनकी आत्मा बिलकुल दूसरे रावण जैसे हो जाएं, तो जीत भी लें, तो कोई फर्क नहीं पड़ता। तल पर है। राम के कृत्यों से हम राम की आत्मा का पता नहीं लगा कोई फर्क नहीं पड़ता। सकते। राम की आत्मा का पता हो, तो हम राम के कृत्यों को समझ हमने दूसरे महायुद्ध में देखा। दूसरे महायुद्ध में हमने देखा कि सकते हैं। हिटलर से जो लोग लड़े थे, वे युद्ध के दौरान ठीक हिटलर जैसे, कृत्यों से हमारी आत्मा का पता चल जाता है। और हमारे पास बल्कि उससे भी एक कदम आगे चले गए। हिटलर तो झिझकता | दूसरी कोई आत्मा नहीं है। आपने जो-जो किया है, वह अगर रहा अणु शस्त्रों का निर्माण करने, बनाने और उनका उपयोग करने | | अलग कर लिया जाए, तो आप बिलकुल शून्य हो जाएंगे। राम ने में। लेकिन अमेरिका कर सका। जो भी किया है, उसे अलग कर लिया जाए, राम में कोई कमी नहीं और इसलिए सोचा था कि हिटलर की हार के बाद, फासिज्म | | पड़ेगी। राम का करना, हम समझें ठीक से, तो बिलकुल बाहरी की हार के बाद दुनिया में बड़ी शांति आ जाएगी। वह बिलकुल नहीं | | घटना है। भीतर कुछ भी नहीं घटता है। भीतर कुछ भी नहीं घटता आई। दुनिया में युद्ध का सिलसिला वैसा ही जारी रहा। और जो है। इसलिए एक अनूठी घटना राम के जीवन में है, जिसे समझना कल के मित्र थे, जो युद्ध में हिटलर को हराने को दोस्त की तरह लोगों को मुश्किल पड़ा है। लड़े थे, वे हिटलर के हारते ही दुश्मन की तरह खड़े हो गए। राम सीता के चोरी जाने से रावण से लड़ने गए। स्वभावतः, हमें हिटलर हारा जरूर, लेकिन सारी दुनिया को हिटलर की छाया | लगेगा कि सीता से भारी आसक्ति रही होगी! अन्यथा राम को और से भर गया। उसकी हार वास्तविक नहीं है। हिटलर हारा जरूर, | | सीताएं भी मिल सकती थीं। राम को क्या कमी हो सकती थी सुंदर लेकिन सारी दुनिया को फासिस्ट कर गया। एक-एक आदमी के स्त्रियों की, वे उपलब्ध हो सकती थीं। राम को भारी आसक्ति रही प्राण में फासिज्म का जहर डाल गया। इसलिए हिटलर किसी भी होगी. लगाव रहा होगा. तब तो इतने बड़े यद्ध में इतनी झंझट में दिन रिवाइव हो सकता है, उसमें कोई अड़चन नहीं है। एक-एक | उतरे। और जब तक सीता को वापस न ले आए, तब तक हमें प्राण में उसका बीज है। वह कहीं से भी प्रकट हो सकता है। हिटलर लगता होगा, कि दिन-रात सो न सके होंगे; बेचैन रहे होंगे; की हार हो नहीं सकी। क्योंकि जो लोग उससे लड़े, वे लोग भी | परेशान रहे होंगे। व्यक्तित्व की दृष्टि से उससे भिन्न नहीं थे। लेकिन फिर दूसरी घटना बहुत मुश्किल में डाल देती है। एक रावण हारा, क्योंकि जिसके हाथों हारा, वह आदमी रावण के धोबी की जरा-सी चर्चा, वह भी किसी के द्वारा सुनी गई! एक धोबी तल का न था। इसलिए रावण प्रसन्न है कि राम के हाथ से उसकी का अपनी पत्नी से यह कह देना कि मैं कोई राम नहीं हूं कि तू महीनों मृत्यु घटित हुई। यह अनूठी बात है। रावण प्रसन्न है कि राम के | और सालों घर से नदारद रहे और मैं तुझे वापस घर में रख लूं! हाथों उसकी मृत्यु हुई। रावण प्रसन्न है कि अब मुक्ति में क्या बाधा | उसकी पत्नी एक रात घर से नदारद रह गई होगी। तो मैं कोई राम रही होगी! अगर खुद राम मुझे मारने को आए हों, इस शरीर से मुझे | | नहीं हूं! यह खबर राम को लगना और सीता का जंगल में छुड़वा विदा करते हों, तो मेरे मोक्ष में बाधा ही क्या है! देना। राम से शत्रुता नहीं है; विरोध है, संघर्ष है। लेकिन राम की | यह जरा असंगत मालूम पड़ता हैं। यह आदमी सीता के लिए ऊंचाई का रावण को बोध है। राम की भिन्नता का भी पता है। | इतना बड़ा युद्ध लेने गया। इस आदमी ने अपने प्राण सीता के लिए कृष्ण कहते हैं, मैं शस्त्रधारियों में राम हूं। | युद्ध में लगा दिए। यह आदमी लड़ा, वर्षों शक्ति और श्रम व्यय मैं शस्त्र भी ले सकता हूं, लेकिन उससे मैं नहीं बदलता। शस्त्र किया, और एक धोबी के कहने से इस आदमी ने सीता को जंगल 184
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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