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________________ ॐ शस्त्रधारियों में राम 0 कहते हैं कि मछलियों को सागर का पता नहीं चलता। नहीं | हैं, संगत मालूम होते हैं। वहां गणित ठीक बैठता है। महावीर के चलता होगा। क्योंकि सागर में ही पैदा होती हैं, सागर में ही बड़ी हाथ में तीर का न होना, तलवार का न होना संगत मालूम होता है। होती हैं, सागर में ही समाप्त हो जाती हैं। उन्हें पता नहीं चलता गणित वहां भी ठीक है। महावीर हैं या बुद्ध हैं, उनके हाथ में कुछ होगा, क्योंकि जो इतना निकट है और सदा निकट है, उसका पता भी नहीं है, कोई शस्त्र नहीं है। रावण के हाथ में शस्त्र हैं, सारा चलना बंद हो जाता है। शरीर शस्त्रों से ढंका है, यह भी ठीक है। वायु सदा निकट है, चारों तरफ घेरे हुए है। वही हमारा सागर | राम कुछ अनूठे हैं। ये आदमी बुद्ध जैसे और इनके हाथ में शस्त्र है, जिसमें हम जीते हैं, लेकिन दिखाई नहीं पड़ता। परमात्मा भी | रावण जैसे, यह बड़ा विरोधाभासी है। और कृष्ण को यही प्रतीक ठीक ऐसा ही है, चारों तरफ घेरे हुए है। उसके बिना भी हम मिलता है कि शस्त्रधारियों में मैं राम हूं! बहुत शस्त्रधारी हुए हैं। क्षणभर नहीं जी सकते। वायु के बिना तो हम जी भी सकते हैं, शस्त्रधारियों की कोई कमी नहीं है। राम को क्यों चुना होगा? उसके बिना हम क्षणभर नहीं जी सकते। वह हमसे वायु से भी जानकर चुना है, बहुत विचार से चुना है, बहुत हिसाब से चुना है। ज्यादा निकट है। वह हमारे प्राणों का प्राण है। लेकिन उसका भी शस्त्र खतरनाक है रावण के हाथ में। इसे थोड़ा समझेंगे। थोड़ी हमें कोई पता नहीं चलता। बारीक है और बात थोड़ी कठिन मालूम पड़ेगी। कृष्ण कहते हैं, पवित्र करने वालों में मैं वायु हूं। और शस्त्र खतरनाक है रावण के हाथ में, क्योंकि रावण के भीतर शस्त्रधारियों में राम हूं। सिवाय हिंसा के और कुछ भी नहीं है। और हिंसा के हाथ में शस्त्र यह बहुत प्यारा प्रतीक है। का होना, जैसे कोई आग में पेट्रोल डालता हो। यह हम समझ राम के हाथ में शस्त्र बहुत कंट्राडिक्टरी है। राम जैसे आदमी के जाएंगे। यह हमारी समझ में आ जाएगा। इस दुनिया की पीड़ा ही हाथ में शस्त्र होने नहीं चाहिए। राम का चित्र आप थोड़ा खयाल | यही है कि गलत लोगों के हाथ में ताकत है। गलत आदमी उत्सुक करें। राम के शरीर का थोड़ा खयाल करें। राम की आंखों का थोड़ा भी होता है शक्ति पाने के लिए बहुत। खयाल करें। राम के व्यक्तित्व का थोड़ा खयाल करें। शस्त्रों से , पावर करप्ट्स एंड करप्ट्स एब्सोल्यूटली। कोई संबंध नहीं जुड़ता। शक्ति लोगों को व्यभिचारी बना देती है और पूर्ण रूप से व्यभिचारी राम, शस्त्रों के साथ, बड़ी उलटी बात मालूम पड़ती है। न तो बना देती है। बेकन की यह बात ठीक है। लेकिन बेकन ने इसका राम के मन में हिंसा है, न राम के मन में प्रतिस्पर्धा है, न राम के जो कारण दिया है, वह ठीक नहीं है। बेकन सोचता है कि जिनके मन में ईर्ष्या है। न राम किसी को दुख पहुंचाना चाहते हैं, न किसी | हाथ में भी शक्ति आ जाती है, शक्ति के कारण वे करप्ट हो जाते को पीड़ा देना चाहते हैं। फिर उनके हाथ में शस्त्र हैं। उनके हाथ में हैं। यह बात गलत है। वे करप्ट हो जाते हैं, यह तथ्य है; लेकिन एक कमल का फूल होता, तो समझ में आता। उनके हाथ में शस्त्र, शक्ति के कारण करप्ट हो जाते हैं, यह गलत है। क्योंकि हमने राम बिलकुल समझ में नहीं आते। के हाथ में भी शक्ति देखी है और करप्शन नहीं देखा, व्यभिचार जब भी मैं राम का चित्र देखता हूं, और उनके कंधे में लटका | नहीं देखा; शक्ति का कोई व्यभिचार नहीं देखा। हुआ धनुष देखता हूं और उनके कंधे पर बंधे हुए तीर देखता हूं, तो | तब बात कुछ और है। तथ्य तो ठीक है कि हम देखते हैं कि राम के शरीर से उनका कोई भी संबंध नहीं मालूम पड़ता। राम का | | जिनके हाथ में शक्ति आती है, वे व्यभिचारी हो जाते हैं। लेकिन शरीर एक कवि का, एक काव्य का, एक काव्य की प्रतिमा मालूम | | इसका कारण शक्ति नहीं है। इसका बुनियादी कारण यह है कि होती है। राम की आंखें प्रेम की आंखें मालूम होती हैं। राम पैर भी | व्यभिचारी ही शक्ति के प्रति आकर्षित होते हैं। लेकिन कमजोर रखते हैं, तो ऐसा रखते हैं कि किसी को चोट न लग जाए। राम का आदमी अपने व्यभिचार को प्रकट नहीं कर पाता, जब शक्ति हाथ सारा व्यक्तित्व फूल जैसा है। और कंधे पर बंधे हुए ये तीर, और | में आती है, तब वह प्रकट कर पाता है। शक्ति के कारण व्यभिचार हाथ में लिए हुए ये धनुष-बाण, ये कुछ समझ में नहीं आते! इनका पैदा नहीं होता, प्रकट होता है। कोई मेल नहीं है, इनकी कोई संगति नहीं है। ___ आप कमजोर हैं, आपके भीतर हिंसा है; दूसरा आदमी मजबूत राक्षस के हाथ में, रावण के हाथ में शस्त्र सार्थक मालूम होते है, आप हिंसा नहीं कर पाते। फिर एक बंदूक आपके हाथ में दे दी बेकन | 181
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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