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तूने उस एक को जाना, जिसे जानकर सब जान लिया जाता है | जानने वाले को जान लेना ब्रह्मविद्या है / भारत के मनीषी केवल ब्रह्मविद्या में उत्सुक रहे | अन्य विद्याओं का विकास रुक गया / विद्याएं विकसित होती हैं मनीषियों द्वारा / पूरब की अति-पश्चिम की अति / पूर्ण संस्कृति नहीं बन पाई / सत्य की खोज में तर्क का सदुपयोग / तर्क निष्पक्ष कसौटी बनाना / यूनान में तर्क का व्यवसायः सोफिस्टों द्वारा / तर्क-गुरु जीनो और शिष्य अरिस्तोफेनीज की कश्मकश / मन के पार जाने के लिए तर्क सीढ़ी बने।
मैं शाश्वत समय हूं... 195
सब कुछ बदल रहा है / हेराक्लतु : एक ही नदी में दो बार उतरना संभव नहीं है | जीवन की नदी सतत बही जा रही है / सूरज प्रतिपल बदल रहा है / दीवाल भी थिर नहीं है-उसके परमाणु तीव्र गति में हैं / भाषा की गलती : वृक्ष है, नदी है; बच्चा है / सही होगा कहना ः वृक्ष हो रहा है। नदी रही है; बच्चा हो रहा है / वस्तुएं प्रक्रियाएं हैं / सब चीजें समय के भीतर घट रही हैं / समय शाश्वत है / वस्तु के तीन आयाम-लंबाई, चौड़ाई, गहराई / समय चौथा आयाम है / आइंस्टीन का नया शब्द–स्पेसियोटाइम / शाश्वत समय में प्रवेश है—ध्यान, सामायिक / समय अक्षय है / काल प्रवाह में अविरोध बहना / धारा के विपरीत तैरता है अहंकार / मुल्ला की पत्नी: धारा के विपरीत बहना / जीवन का समग्र स्वीकार धार्मिकता है | सूखे पत्ते का हवा में उड़ना लाओत्से की संबोधि / न जन्म हमारे हाथ में है—न मृत्यु / आत्महत्या महा पाप है / अंगुलिमाल-बुद्ध-संवाद / कर्ता होने की 'भ्रांति / जब मुल्ला के हाथ-पैर ठंडे होने लगे / कृष्ण की अहिंसा बुद्ध और महावीर की अहिंसा से ज्यादा गहरी है / गीता की परम अहिंसक दृष्टि / जीवन भी उसके हाथ-मृत्यु भी उसके हाथ / जब एक मछली ने मुल्ला की जान बचाई | कृष्ण ने कहा स्त्रियों में मैं कीर्ति और श्री हूं / आधुनिक स्त्री-वासना का विषय मात्र / वासना को अनजाने आमंत्रित करने की चेष्टाएं / कीर्ति है-निर्वासना का सौंदर्य / मातृत्व की गरिमा / डबल बाइंड-आकर्षित करना और दूर हटाना–साथ-साथ / इस सदी में सर्वाधिक ह्रास-स्त्रैण गुणों का / पुरुष को ब्रह्मचर्य-स्त्री को कीर्ति फलित होने के बाद भी मासिक धर्म जारी / स्वेच्छापूर्वक वीर्य का ऊर्वीकरण / कीर्ति की साधना अलग है / महावीर की साधना पुरुषों के लिए / स्त्री की साधना-~-मातृत्व की / कुरूप शरीर से भी सौंदर्य और आभा विकीर्णित होना / कीर्तिविहीन स्त्री का सौंदर्य केवल चमड़ी तक गहरा / छिछला सौंदर्य क्षण-भंगुर प्रेम-संबंध / स्त्रैण मातृत्व के पार श्री का जन्म / स्त्रैण परमात्मा की धारणा / जर्मन अपने देश को फादरलैंड कहते हैं / पुरुष गुणों के अतिशय विकास की परिणति-युद्ध / स्त्रैण-गुण-विहीन समाज-बहुत दीन / मौन की गरिमा से दिव्य वाक् का जन्म / शब्द आक्रामक हैं / वाचस्पति की नवविवाहित पत्नी-बारह वर्ष मौन प्रतीक्षा / स्त्री का प्रेम-पूरे शरीर में फैला हुआ / पिता-पुत्र का संबंध-बौद्धिक / मां-पुत्र का संबंध-समग्र और आत्मीय / प्रभु-स्मरण हो–व्यक्ति के पूरे अस्तित्व से / पुरुष की ऊर्जा में ही अधीरता है | स्त्री का गहन धैर्य / स्त्री ज्यादा सहनशील है / क्षमा-स्त्री का स्वभाव है / जितना ज्यादा प्रेम और धैर्य-उतनी ही ज्यादा क्षमा / पुरुष-केंद्रित सभ्यता-विश्व-संकट के कगार पर / स्त्रियों की प्रतिक्रिया-गलत दिशाओं से / स्त्री कुरूप हो जाएगी-नंबर दो का पुरुष बन कर / स्त्री को स्वतंत्रता के नाम पर आत्मघाती प्रयास / कृष्ण ने कहाः ऋतुओं में मैं वसंत हूं / परमात्मा है-गीत में, संगीत में, नृत्य में, उत्सव में।
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परम गोपनीय-मौन ... 213
जीवन का मायिक रूप जुए में प्रकट / वासना के लिए भविष्य जरूरी / वासनाओं के खंडहर / दुष्पूर वासनाएं-ययाति की कथा / हजार साल जी कर भी ययाति की वासनाएं ज्यों की त्यों / जब तक दूसरा-तब तक जुआ / ध्यान की एकांतता में है जुए का अतिक्रमण / मरते समय सिकंदर के हाथ