SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 175
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आभिजात्य का फूल जैसे आप बैठे हों और अचानक एक आदमी छुरा लेकर आपके रहा हो, या काटे जाने की स्थिति बनाई जा रही हो, तो पास का कोई सिर पर खड़ा हो जाए, आप भयभीत हो जाएंगे। आपके रोएं-रोएं | भी पौधा प्रसन्न हुआ हो। वे सभी एक साथ दुखी हो जाते हैं। में भय का संचार हो जाएगा। तो अब वैज्ञानिक यंत्र उपलब्ध हैं, जो आदमी में ऐसा पाना मुश्किल है। अगर हिंदू मारा जा रहा हो, आपके पास लगे होंगे, वे तत्काल खबर दे देंगे कि आप भय से | तो मुसलमान खुश हो सकता है। मुसलमान मारा जा रहा हो, हिंदू कंप रहे हैं। आपके भीतर भय दौड़ रहा है। क्योंकि जब आपके | खुश हो सकता है। मित्र मारा जा रहा हो, तो दुख होता है; दुश्मन भीतर भय दौड़ता है, तो आपके शरीर की विद्युत, आपके शरीर की | मारा जा रहा हो, तो हम प्रसन्न भी हो सकते हैं। उस वैज्ञानिक के बिजली, एक खास ढंग से कंपित होने लगती है। वह कंपन पास प्रयोगों से यह पता चला है कि पौधों में ऐसा दुर्भाव नहीं है, ऐसी के विद्युत यंत्रों में पकड़ा जा सकता है। जब आप प्रेम से भरे होते ईर्ष्या और ऐसी शत्रुता-मित्रता का विभाजन नहीं है। हैं, तब भी आपके भीतर दूसरे तरह के कंपन होते हैं। जब आप यह पूरा जीवन ही आत्मा से व्याप्त है। हम पहचान पाते हों, न आनंद से भरे होते हैं, तो तीसरे तरह के कंपन होते हैं। पहचान पाते हों; हम समझ पाते हों, न समझ पाते हों; क्योंकि यह आश्चर्य की बात है, अचानक ही यह घटना घट गई। | हमारी समझ की बड़ी छोटी-सी सीमा है। आदमी की समझ आदमी अचानक ही, एक वैज्ञानिक को ऐसे ही खयाल आया कि आदमी | | के बाहर काम नहीं पड़ती। सच तो यह है कि एक आदमी की समझ तो कंप जाता है, क्या पशु भी इसी तरह, उनके भीतर भी कुछ इसी | | भी दूसरे आदमी के काम नहीं पड़ती। और एक आदमी की समझ तरह की स्थिति बनती होगी? तो उसने पशुओं पर प्रयोग किए। पशु | | भी दूसरे आदमी को समझने में असमर्थ हो जाती है। भी इसी तरह भयभीत होते हैं, प्रेम से भरते हैं, क्रोध से भरते हैं। ___ हम सब राबिन्सन क्रूसो हैं अलग-अलग। दूसरे तक भी पहुंचना उसे खयाल आया, क्या पौधे में भी यह संभव होगा? | मुश्किल होता है। आपको मैं खुश देखता हूं, तो भी मैं आपकी खुशी तो उसने अपने कमरे में लाकर एक गमला रखा पौधे का, छुरा | | नहीं समझ पाता कि आपके भीतर क्या हो रहा है। आपकी उठाकर आया पौधे के पास कि पौधे को अब काटे, तो पता चले मुस्कुराहट देखता हूं, आपके चेहरे पर आ गई झलक देखता हूं, कि पौधे को कटते वक्त भीतर क्या होता है। लेकिन वह चकित | | लेकिन आपके भीतर कौन-सा सुख घटित हो रहा है, कैसे सुख की हुआ, जब वह छुरा पास लाया, तभी उसके यंत्र ने बताया कि पौधे तरंग आपके भीतर बह रही है, उसका मैं कोई अनुभव नहीं कर के प्राण भीतर वैसे ही भय से कंप रहे हैं, जैसे आदमी के प्राण भय | पाता; अनुमान लगाता हूं। वह अनुमान झूठा भी हो सकता है। से कंपते हैं। छुरा मारा नहीं है अभी। अभी सिर्फ छुरा लेकर वह क्योंकि आप अभिनय कर रहे हों, यह भी हो सकता है। खड़ा है। तब तो स्वीकार करना पड़ेगा कि पौधे के पास भी हमारे हममें से अधिक लोग अभिनय कर रहे हैं। उससे बड़ी जटिलता जैसी ही संवेदनशीलता, हमारे ही जैसी आत्मा है। पैदा होती है। हर आदमी को अपने दुख का पता होता है और दूसरे . और भी आकस्मिक रूप से एक घटना घटी कि वह जिस पौधे आदमी की झूठी हंसियों का पता होता है, झूठी मुस्कुराहटों का। तो के ऊपर छुरा लेकर खड़ा था, उसके पास रखे दूसरे पौधे में भी भय | हर आदमी सोचता है, मुझसे ज्यादा दुखी कोई भी नहीं। सारे लोग का संचार हो गया। और तब तो उसने बहुत-से प्रयोग किए। और | कितने प्रसन्न मालूम हो रहे हैं! हर आदमी सोचता है, सारे लोग उसने पाया कि अगर आप एक पौधे को भी जाकर बगीचे में प्रसन्न हैं, सारी दुनिया खश मालम होती है, मैं ही एक दखी हं, मैं नुकसान पहुंचाते हैं, तो आपके चारों तरफ जितने पौधे आस-पास | ही एक परेशान हूं! यह परमात्मा मुझसे ही नाराज क्यों है! होते हैं, वे सब भी दुखी और पीड़ित हो जाते हैं; वह पौधा तो होता __ उसे पता नहीं कि वह भी जब दूसरों के सामने मुस्कुराता है, जब ही है। सुबह उससे कोई रास्ते पर पूछता है कि कैसे हो, तो वह कहता है, तब तो इसका यह अर्थ हुआ कि पौधे की संवेदनशीलता शायद बहुत अच्छा हूं, मजे में हूं, तब उसे पता भी नहीं कि भीतर उसके आदमी की संवेदनशीलता से भी ज्यादा शुद्ध है। क्योंकि आपके | न कोई मजा होता है, न बहुत अच्छे की कोई खबर होती है; लेकिन पास में कोई मारा जा रहा हो, तो जरूरी नहीं है कि आप दुखी हों; | उस दूसरे आदमी को वहम पैदा होगा कि बहुत मजे में है, बहुत खुश भी हो सकते हैं, सुखी भी हो सकते हैं। लेकिन उस वैज्ञानिक अच्छा है। यह औपचारिक वक्तव्य था। के प्रयोगों में ऐसा कभी उसने नहीं पाया कि एक पौधे को काटा जा। हमारे चेहरे औपचारिक हैं, फार्मल हैं, दूसरों को दिखाने के लिए 145
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy