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________________ गीता दर्शन भाग- 50 चोट लग जाएगी। कोई ऐसे ही मौज ले रहा है, और आपको चोट पास नहीं है, उससे मुक्त कैसे होइएगा? जो है ही नहीं, उससे आप लग जाएगी। कोई दो लोग बात कर रहे हैं एक-दूसरे के कान में, | | बंधे ही रहेंगे, उससे आप घिरे ही रहेंगे। जो नहीं है, वह आपको और आपका अहंकार पकड़ लेगा कि आप ही के संबंध में बात की आकर्षित करता ही रहेगा। जो है, उससे ही छुटकारा हो सकता है। जा रही है। | अगर दुनिया में धन की इतनी प्रतिष्ठा है, तो उसका कारण धन नहीं __ अहंकार, जिनके पास जितना घाव गहरा है, उनको इस जगत में है, उसका कारण गरीबी है। ऐसा लगता है, सब कुछ उन्हीं के आस-पास हो रहा है! सब कुछ। । इसे थोड़ा ठीक से समझ लें। कोई हंस रहा है, तो उनकी वजह से। कोई रो रहा है, तो उनकी वजह अगर दुनिया में धन का इतना आकर्षण है, तो उसका कारण धन से। जीवन चल रहा है, तो उनकी वजह से। मृत्यु आ रही है, तो बिलकुल नहीं है; जैसा कि साधु-संत लोगों को समझाते हैं कि धन उनकी वजह से। अगर वे न होंगे, तो यह सारी सृष्टि खो जाएगी! | | में बड़ा आकर्षण है। धन में बिलकुल आकर्षण नहीं है। धन बहुत __ अर्जुन भी इसी वहम में है कि उसके ही केंद्र पर यह सब कुछ | कम है, इसलिए आकर्षण है। गरीबी बहुत ज्यादा है, इसलिए हो रहा है। सब उसके आधार पर हो रहा है। वह नहीं होगा, नहीं आकर्षण है। जिस दिन जमीन पर धन ऐसा हो जाए, जैसे करेगा, या करेगा, इस पर सब कुछ निर्भर है। कृष्ण उसे एक ही हवा-पानी है, उस दिन धन में कोई आकर्षण नहीं रह जाएग बात समझा रहे हैं कि कुछ भी तुझ पर निर्भर नहीं है। सब मुझ पर | | बल्कि उलटी घटना भी घटती है। जिस गांव में कोई कार नहीं है, निर्भर है। और जब कृष्ण कहते हैं, सब मुझ पर निर्भर है, तो उनका | उसमें आप कार में निकल जाएं, तो कार में आकर्षण होता है। और अर्थ है, विराट पर निर्भर है। जिस गांव में सबके पास कार है, उसमें आप पैदल निकल जाएं, और यक्ष तथा राक्षसों में धन का स्वामी कुबेर हूं। तो पैदल में आकर्षण हो जाता है। यह बात और भी कठिन है। यह कठिन इसलिए है कि हम यह गरीबी के कारण धन में आकर्षण है। दीनता के कारण धन में भी सोच लें कि वे शंकर हैं, मृत्यु के, विनाश के देवता हैं; स्वयं | | आकर्षण है। धन हो तो धन में आकर्षण रह नहीं जाता। इसलिए मृत्यु हैं, यह भी मान लें। लेकिन आज के समाजवादी युग में यह | इस दुनिया ने जो बड़े से बड़े निर्धन लोग देखे हैं, वे बड़े से बड़े वचन ऐसा लगेगा कि जरूर गीता में कुछ अमेरिकी गुप्तचर विभाग धनी घरों में पैदा हुए हैं। ने डाल दिया है। कुबेर! ___ महावीर या बुद्ध या नेमिनाथ या पार्श्वनाथ, जैनों के चौबीस कृष्ण कहते हैं, यक्ष तथा राक्षसों का धन का स्वामी कुबेर भी तीर्थंकर राजाओं के पुत्र हैं! हिंदुओं के सब अवतार राजाओं के पुत्र मैं हूँ! हैं! बौद्धों के चौबीस बुद्ध राजाओं के पुत्र हैं! और ये सब, इनमें हमारा मन होगा, इसको गीता से अलग कर डालना चाहिए। से कोई भी नहीं ऐसा है जो धन के पक्ष में हो। यह बड़े मजे की बात और कुछ भी रहो! कम से कम धनपति होने की तो बात मत कहो! है। महावीर सड़क पर भीख मांगते हैं! बद्ध भिक्षापात्र लिए घूमते और वह भी कुबेर! हैं! बुद्ध ने तो अपने संन्यासियों को ही भिक्षु का नाम दिया। भिक्षु कुबेर के लिए कहा जाता है, उसके पास अक्षय खजाना है, | | शब्द इतना आदत हो गया-भिखारी। यह बद्ध को भिक्षा मांगते अनंत खजाना है। कोई सीमा नहीं; असीम खजाना है। कुबेर का | | देखकर आपको कुछ समझ में आता है कि बात क्या है? अर्थ हुआ कि इस अस्तित्व में जो सबसे ज्यादा धनी है। जिसके पास धन है, वह धन से मुक्त हो जाता है। और अगर तो कृष्ण की यह बात जरूर कैपिटलिस्टिक, पूंजीवादी मालूम किसी के पास धन भी है और वह मुक्त नहीं हो रहा है, तो उसका पड़ती है। इसलिए समझना थोड़ा कठिन होगा। लेकिन हम समझें, | मतलब इतना ही हुआ कि उसके पास बुद्धि बिलकुल नहीं है। धन तो बहुत महत्वपूर्ण है। | हो और मुक्ति न आए, तो समझना कि बुद्धि बिलकुल नहीं है। गरीब आदमी कभी भी धन से मुक्त नहीं हो पाता। हो भी नहीं और अगर धन न हो और मुक्ति आ जाए, तो समझना कि बहुत सकता। क्योंकि जो आपके पास नहीं है, उससे आप मुक्त नहीं हो बुद्धि है। सकते। जो आपके पास है, उससे ही आप मुक्त हो सकते हैं। गरीब तो बहुत बुद्धिमान हो, तो ही धन से मुक्त हो सकता है; जरूरी नहीं है कि हो जाएं, लेकिन चाहें तो हो सकते हैं। जो आपके बहुत, अतिशय बुद्धिमान हो, तो ही मुक्त हो सकता है। क्योंकि 1361
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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