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ॐ गीता दर्शन भाग-588
मृत्यु को हम अंत नहीं मानते। मृत्यु को हम केवल एक गहन मृत्यु। अगर हम इस पूरे जीवन को जन्म समझें, तो फिर एक मृत्यु। विश्राम मानते हैं। इसे ऐसा समझें, जैसा दिनभर आप मेहनत करते अगर हम इस पूरे जगत को जीवन समझें, तो फिर एक प्रलय। मृत्यु हैं और रात सो जाते हैं। भारतीय मन सदा से मानता रहा है कि निद्रा अनिवार्य है जीवन के साथ। मृत्यु विश्राम है, जीवन थकान है। भी एक अल्पकालीन मृत्यु है। दिनभर जागते हैं, थकते हैं, रात सो | जीवन तनाव है, जीवन श्रम है। मृत्यु विश्राम है, विराम है, पुनः जाते हैं। सुबह पुनः ताजे हो जाते हैं, पुनरुज्जीवित हो जाते हैं। फिर जीवन-शक्तियों को पा लेना है। यात्रा पर निकल जाते हैं। जो आदमी सो न सके, वह आदमी जिंदा यह सारा विराट विश्व भी थक जाता है! आप ही नहीं थक जाते, नहीं रह सकेगा। जो आदमी सो न सके, वह विक्षिप्त हो जाएगा, यह सारा विराट विश्व भी थक जाता है। आप ही बूढ़े, नहीं होते; जल्दी ही थकेगा और टूट जाएगा। रोज-रोज रात मर जाना जरूरी | पहाड़ भी बूढ़े हो जाते हैं, पृथ्वियां भी बूढ़ी हो जाती हैं, सूरज भी है, ताकि सुबह नया जीवन उपलब्ध हो जाए।
बूढ़े हो जाते हैं। आप ही नहीं मरते, पृथ्वियां भी मरती हैं, सूरज भी इसलिए रात जो जितनी गहराई से मर सकता है, उतनी ही सुबह | मरते हैं, पहाड़ भी मरते हैं। इस जगत में जो भी है, वह मृत्यु और गहराई से जागेगा और जीवित होगा। रात जिसकी नींद मौत के जीवन दोनों में डोलता रहता है। जितने करीब पहुंच जाएगी, सुबह उसका जीवन उतना ही जीवन के तो कृष्ण ने कहा कि रुद्रों में मैं शंकर हूं-मृत्यु का, प्रलय का। करीब पहुंच जाएगा। अगर रात भी आप सपने ही देखते रहते हैं | लेकिन जीवन के विपरीत नहीं है मृत्यु। यही कृष्ण समझाना चाहते
और अधरे जगे रहते हैं. तो सबह भी आप अधरे ही उठेंगे। सबह हैं अर्जन को कि त जीवन और मत्य को अलग-अलग करके आपका उठना मरा-मरा होगा। रात जो मरने की कला नहीं जानता, | देखता है। तू सोचता है, जीवन सदा ही हितकारी है और मृत्यु सदा सुबह वह जीने की कला भी नहीं सीख पाएगा।
ही अहितकारी है। ऐसा विभाजन भ्रांत है। ऐसा विभाजन भ्रांत है। अगर आप आदिवासियों के पास जाएं, तो आप चकित हो। मृत्यु विश्राम है। जाएंगे कि लाखों आदिवासी कहते हैं कि उन्होंने कोई सपना नहीं जीवन तरंग का उठना है आकाश की तरफ; मृत्यु तरंग का देखा। हम तो सोच भी नहीं सकते कि कोई आदमी ऐसा भी होगा, | वापस सागर में खो जाना है। त मत्य से इतना भयभीत न हो और जो रात सपना नहीं देखता! और आदिवासी जो पुराने समाज हैं, | | तू मृत्यु के संबंध में इतनी चिंता मत कर। वह भी मैं ही हूं। और तू जिनका आधनिक सभ्यता से संबंध नहीं हआ. उनमें जब को | यह भी मत सोच कि तेरे द्वारा यह मृत्य हो रही है। न तेरे द्वारा यह
आदमी सपना देखता है, तो एक रेअर, एक विशेष घटना घटती | | जीवन हुआ है, न तेरे द्वारा यह मृत्यु हो सकती है। है। सारा गांव इकट्ठा होकर उस आदमी से पूछना शुरू करता है। | ध्यान रखें, न तो हमारे द्वारा जीवन हुआ है, न हमारे द्वारा मृत्यु एक अनूठी घटना है सपना। सपने का मतलब है कि इस आदमी | | हो सकती है। लेकिन हम मान लेते हैं। अगर आप एक बच्चे को की सोने की गहराई टूट गई, अब यह सोने में बिलकुल मृत्यु के | | जन्म देते हैं, तो आप सोचते हैं, आपने जन्म दिया है। करीब नहीं पहुंच पाता।
__ आप केवल एक पैसेज थे, एक मार्ग थे, जिससे बच्चा जन्मा रोज एक मृत्यु घटती है। अगर हम इसे और करीब लाएं, तो | | है। आप सिर्फ एक द्वार थे, एक राह थे, जिससे बच्चा आया है। और समझ में आ सकेगा। जब आप श्वास भीतर लेते हैं, तब वह | | आपने क्या जन्म दिया है? जो आदमी पिता बन जाता है, उसने जीवन की होती है; और जब आप श्वास बाहर फेंकते हैं, तब वह | कभी सोचा है कि उसने किया क्या है पिता होने के लिए? मृत्यु की होती है। एक-एक श्वास के साथ भी मृत्यु का संबंध जुड़ा ___ अगर हम तथ्य पर उतरें, तो पता चलेगा कि वह आदमी सिर्फ हुआ है। जब श्वास बाहर जाती है, तब आप मृत्यु के क्षण में होते | | एक मार्ग था। प्रकृति ने उसका मार्ग की तरह उपयोग किया है। हैं; और जब श्वास भीतर आती है, तब आप जीवन के क्षण में होते | | जीवन उसके द्वारा आया है, वह लाया नहीं है जीवन को। और सच हैं। एक-एक श्वास में भी जन्म और मृत्यु का पैर जुड़ा हुआ है। | तो यह है कि जीवन जब उसके द्वारा आता है, तो वह इतना परवश इसलिए बाहर श्वास जाती है, उस वक्त आपकी जीवन-ऊर्जा क्षीण | | होता है। इसीलिए कामवासना इतनी प्रगाढ़ है कि आप उस पर काबू होती है। जब भीतर श्वास आती है, तब आप जीवंत होते हैं। । नहीं पा सकते। क्योंकि जब जीवन धक्के देता है भीतर से, तो आप
एक-एक श्वास में जन्म और मृत्यु। दिन में जन्म और रात में बिलकुल विवश हो जाते हैं। कामवासना में आप होते कहां हैं!
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