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3 सगुण प्रतीक-सृजनात्मकता, प्रकाश, संगीत और बोध के 8
यह पैर सच में ही तोड़ दिया जाएगा। इपिटैक्टस ने कहा, आप लोग निकल रहे हों, ऐसे मन में विचार निकल रहे हैं। या फिल्म मजाक कर भी नहीं सकते हैं; मैं मजाक कर सकता हूं, क्योंकि मैं के पर्दे पर जैसे चित्र निकल रहे हों, ऐसे मन के पर्दे पर विचार पैर से अलग हूं। मैं मजाक कर सकता हूं। पैर तोड़ें।
निकल रहे हैं। आंख बंद करके मैं इन चलते हुए विचारों को भी ___ वह पैर तोड़ दिया गया। इपिटैक्टस ने कहा कि और कुछ परीक्षा देख सकता हूं। तो मैं विचारों के प्रति भी चेतन हो गया। मैं विचारों लेनी है? पैर टूट गया, और मैं साबित हूं। मैं उतना का ही उतना से भी अलग-हो गया। हूं। मैं लंगड़ा नहीं हुआ; शरीर लंगड़ा हो गया।
मैं अपने मन को भी देख सकता हूं। कभी आपने खयाल किया, लेकिन जो आत्मवादी भी अपने को कहते हैं, उनके भी, उनके | जब आप क्रोध से भरे होते हैं, आंख बंद करके देखें, तो आपको भी जीवन में हम झांकें, तो पता चलेगा, शरीर ही है। शरीर ही सब पता लगेगा, आपका मन क्रोध से भरा है। कभी आप प्रेम से भरे होते
हैं, आंख बंद करके मेडिटेट करें, ध्यान करें, तो आपको पता यह जो पहली कोटि है, शरीर सब कुछ, उनके लिए कृष्ण का चलेगा, मन प्रेम से भरा है। कभी लोभ से, कभी कामवासना से, यह वचन उचित है। अर्जुन को ऐसा ही लग रहा है कि शरीर ही कभी भय से। तो आंख बंद करके अनुभव करें, तो पता चलेगा, मन सब कुछ है। इसलिए वह कह रहा है कि कैसे मैं इन प्रियजनों को | | किससे भरा है। मन इस समय भय हो गया, क्रोध हो गया, लोभ हो काटूं? कैसे अपनों को मारूं? कैसे यह हत्या करूं? यह मुझसे | गया, काम हो गया। किसको पता चलता है? कौन चेतन होता है ? नहीं होगा। इतने लोगों को मैं मारने का पाप क्यों लं? | कौन जानता है इसको? जो जानता है, वह अलग हो गया।
शरीर को ही वह जीवन मान रहा है। क्योंकि उसकी तलवार चेतना का अर्थ है, जिसके द्वारा आप जानते हैं, पहचानते हैं। केवल शरीर को ही काट सकती है और किसी को भी नहीं। पर उसे | जिसके द्वारा आप बोध से भरते हैं। और जिसके प्रति आप कभी उस सत्य का कोई भी पता नहीं है कि भीतर एक और भी अस्तित्व चेतन नहीं हो सकते। आप सब चीजों के प्रति चेतन हो सकते हैं, है, जिसको तलवार छेद नहीं सकती और आग जला नहीं सकती। लेकिन अपनी चेतना के प्रति चेतन नहीं हो सकते। आप सब चीजों पर उसका उसे कोई पता नहीं है।
के प्रति चेतन हो सकते हैं, सिर्फ अपनी चेतना के प्रति चेतन नहीं ___ इसलिए कृष्ण उससे कहते हैं कि इंद्रियों में मैं मन हूं। इंद्रियां हो सकते। क्योंकि जो चेतन होगा, वही आपकी चेतना है। तो आप
शरीर हैं, भीतर प्रवेश करें तो मन है। लेकिन कृष्ण को भी लगा | अपनी चेतना को आब्जेक्ट नहीं बना सकते। वह सब्जेक्ट है, वह होगा कि अर्जुन को कहीं यह पकड़ न जाए, तो दूसरे ही सूत्र में वे | जानने वाला है। वह कभी जाने जानी वाली चीज नहीं हो सकती। कहते हैं, और समस्त भूतों में मैं चेतना हूं, कांशसनेस हूं। तो चेतना का यह विचार, योग की गहनतम धारणाओं में से एक
चेतना शब्द को हम थोड़ा समझ लें। चेतना का अर्थ होता है, | है। योग को अगर हम एक शब्द में कहना चाहें, तो वह उसको मैं आपको देख रहा हूं। तो मैं आपके प्रति चेतन हूं। और जिसके जानने की कोशिश है, जिसके द्वारा सब जाना जाता है, और जो प्रति भी मैं चेतन हो जाता हूं, उससे मैं अलग हो जाता हूं। जिसके | किसी के द्वारा भी नहीं जाना जाता। जिसके द्वारा हम जगत में सब प्रति भी मैं चेतन हो जाता हूं, उससे मैं अलग हो जाता हूं। | जान सकते हैं, सिर्फ उसी को छोड़कर। उसको नहीं जान सकते। ___ मैं अपने इस हाथ को देख रहा हूं! मैं अपने इस हाथ के प्रति | क्योंकि उसको कौन जानेगा! जानने के लिए दूरी चाहिए, फासला
चेतन हूं। बाहर से ही नहीं, भीतर से भी मैं अपने इस हाथ को देख चाहिए, जानने वाला अलग चाहिए। ज्ञाता अलग चाहिए, ज्ञेय रहा हूं। इसकी हड्डी, इसकी मांस-पेशियां, इसके प्रति मैं चेतन हूं। अलग चाहिए। मैं इस हाथ से भी अलग हो गया। क्योंकि चेतन मैं उसी के प्रति हो हम सब चीजों को ज्ञेय बना सकते हैं इस जगत में। आपको मैं सकता हूं, जिससे मैं अलग हूं। भेद जरूरी है, फासला जरूरी है, | ज्ञेय बना सकता हूं। अपने शरीर को ज्ञेय बना सकता हूं। अपने चेतन होने के लिए।
| विचार को, अपने मन को, सबको ज्ञेय बना सकता है। सिर्फ मेरी फिर आंख बंद करके मैं अपने विचारों के प्रति भी चेतन हो चेतना, मेरा होश, मेरी अवेयरनेस, वह भर ज्ञेय नहीं बनती। वह सकता हूं। मैं देखता हूं कि विचार चल रहे हैं। जैसे आकाश में हमेशा पीछे हटती चली जाती है। इट कैन नाट बी रिड्यूस्ड टु एन बादल चल रहे हों, ऐसे मन में विचार चल रहे हैं। या रास्ते पर जैसे | | आब्जेक्ट, उसको हम कोई वस्तु नहीं बना सकते। वह हमेशा...।
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