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________________ ॐ सगुण प्रतीक-सृजनात्मकता, प्रकाश, संगीत और बोध के 8 संगीत से क्या संबंध? विपरीत मालूम पड़ते हैं ऊपर से देखने में। समुराई कहते हैं कि जब दुश्मन हमला करे, तो समय इतना कम कहां तलवार और कहां बांसुरी! | है कि उसकी तलवार आपकी गर्दन को काट जाएगी, अगर उसके लेकिन जो गहन अध्ययन करते हैं जीवन का, वे कहते हैं कि | | हमले का खयाल-हमला नहीं, हमले का खयाल ही-अगर योद्धा भी जब युद्ध की सघनता में पूरा डूबता है, तो वैसा ही डूब आपका मन पकड़ ले और आपकी तलवार पहले ही आपके गले जाता है, जैसा कोई संगीतज्ञ अपने संगीत में डूबता हो और जैसे | की रक्षा को उठ जाए, तो ही आप बच सकेंगे। कोई नर्तक अपने नृत्य में डूबता हो। जब कोई योद्धा तलवार चला समुराई शास्त्र कहता है कि विचार से जो लड़ने जाएगा, वह रहा होता है, तो तलवार के साथ इतना एक हो गया होता है कि | हारेगा। ध्यान से जो लड़ने जाएगा, वह दूसरे के विचार उसके ध्यान तलवार ही होती है, योद्धा नहीं होता। युद्ध का अपना एक संगीत | में प्रतिफलित होने लगते हैं। शांत मन दूसरे के विचारों को है, और युद्ध का अपना एक काव्य है, और युद्ध की अपनी एक प्रतिफलन देने लगता है। इसके पहले कि दूसरे के विचार में आए लयबद्धता है। कि मैं हमला करूं गर्दन पर, रक्षा की व्यवस्था हो जाएगी। इसलिए ___ जापान में तो समुराई होते हैं। वे ठीक जैसा भारत ने क्षत्रियों का | | दो समुराई जब लड़ते हैं, तो तय नहीं हो पाता, जीत-हार तय नहीं एक गहन प्रयोग किया था, उससे भी गहन प्रयोग जापान ने | हो पाती। असंभव है। समुराइयों का किया है। समुराई जापान के क्षत्रियों का नाम है। इस अर्जुन को भी समझ में आ सकता है यह, क्योंकि अर्जुन के समुराई को तलवार चलाना भी सिखाया जाता है, नृत्य भी सिखाया | शरीर को अगर हम समझें, तो वह किसी नर्तक से कम नहीं उसके जाता है, ध्यान भी सिखाया जाता है। और जब तक नृत्य, ध्यान | | पास शरीर था। नर्तक जैसा ही लोचपूर्ण, फ्लेक्सिबल शरीर चाहिए और तलवार तीनों में कुशल न हो जाए समुराई, तब तक ठीक युद्ध के लिए भी। अर्जुन समझ सकता है; गीत को भी समझ योद्धा नहीं माना जाता। सकता है; संगीत को भी समझ सकता है; नृत्य को भी समझ क्योंकि नृत्य का अर्थ ही यही है कि शरीर का एक-एक अंग सकता है। एक युद्ध के नृत्य को वह जानता भी है। एक युद्ध के जीवित हो गया। भौर शरीर सिर्फ सिर से नहीं चलता है अब, शरीर संगीत को भी वह जानता है। उसमें जरा भी लय टूट जाए, तो उसे का रो-रोआं सचेतन हो गया। एक नर्तक तो हो भी सकता है पता है। जीवन के एक गहरे काव्य का उसे अनुभव है। कि शरीर के किसी अंग में जड़ हो, लेकिन युद्ध के मैदान पर जहां यह जरा कठिन मालूम पड़ेगा। लेकिन योद्धा जिस जीवन को तलवार हाथ में होगी और जीवन संकट में होगा, शरीर का एक भी अनुभव कर पाता है, उसे घर बैठे लोग कभी अनुभव नहीं कर अंग जड़ नहीं होना चाहिए। शरीर के सभी अंग चेतन होने चाहिए; | | पाते। शायद जीवन अपनी पूरी प्रगाढ़ता में युद्ध के मैदान में ही रोआं-रोआं सजग होना चाहिए; और शरीर एक तरलता बन जानी प्रकट होता है। जहां मौत चारों तरफ मौजूद हो जाती है, वहां आप चाहिए कि तलवार के साथ शरीर बह सके। पूरी इंटेंसिटी में जीवित होते हैं। जब मौत प्रतिपल आपको चारों समुराई को ध्यान भी सिखाते हैं। क्योंकि जापान में वे कहते हैं | | तरफ से घेर लेती है, और किसी भी क्षण मृत्यु हो सकती है, उस कि जो ध्यान में नहीं उतर सकता, वह बड़ा योद्धा नहीं हो सकता। | दिन आपके जीवन की ज्योति पूरी भभककर जलती है। शायद युद्ध क्योंकि अगर थोड़े से विचार मन में चल रहे हैं, तो तलवार और | | का आनंद भी वही है। विचारों के बीच में आने से योद्धा परा का परा उतर नहीं पाएगा। | लेकिन हवाई जहाज से बम गिराने से उसका कोई संबंध नहीं विचार शांत हो जाने चाहिए, ताकि योद्धा पूरा का पूरा उतर जाए। है। हवाई जहाज से बम गिराना, युद्ध का संगीत भी नष्ट हो जाता ___एक अनहोनी घटना घटती रही है जापान में। कभी अगर दो बड़े | | है। युद्ध की सारी कुरूपता तो मौजूद रह जाती है, और युद्ध का समुराई योद्धा युद्ध में उतर जाएं, तो हार-जीत तय नहीं हो पाती। | सारा सौंदर्य खो जाता है। आदमी-आदमी का सामने-आमने जो क्योंकि दोनों ही इतने ध्यानपूर्वक युद्ध में उतरते हैं। और ध्यान की | युद्ध था, उसकी एक शान थी, उसमें एक गरिमा थी। बंदूक भी जब गहराई बढ़ती है, तो तलवार को चलाना नहीं पड़ता, तलवार | आदमी-आदमी को दूर कर देती है, युद्ध की गरिमा खो जाती है। चलना शुरू हो जाती है और हमला होने के पहले तलवार रक्षा के लेकिन दो हाथों में तलवार हों, और आमने-सामने दो जीवन लड़ते लिए तैयार हो जाती है। हों; दोनों शांत हों; और दोनों नृत्य से भरे हों; तो उस क्षण में वे 119
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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