SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॐ गीता दर्शन भाग-500 मूल्य है। इसका अर्थ यह हुआ कि जब आपको बुराई भी दिखाई नहीं है। भले में सीधा खड़ा हो, बुरे में उलटा खड़ा हो। और उलटा पड़े, तब भी आप परमात्मा को विस्मरण मत करना। और गहरी से और सीधा भी परिभाषा की बात है। किसको हम उलटा कहें? गहरी बुराई में भी अगर आप परमात्मा को देखते रहें, तो आपके | किसको हम सीधा कहें? यह भी हम पर निर्भर करता है कि हम लिए बुराई रूपांतरित हो जाएगी। अगर आप गहन से गहन अंधेरे कैसे खड़े हैं। अगर आप शीर्षासन लगाकर खड़े हों, तो सारी में भी प्रकाश को स्मरण रख सकें, तो अंधेरा तिरोहित हो जाएगा. दुनिया आपको उलटी मालूम पड़े। यह आप पर निर्भर करता है। विपरीत विलीन हो जाएंगे। वह भी सापेक्ष है। लेकिन हमारी तकलीफ है। हम बुरे से, जिसको हम बुरा समझते लेकिन हिंदू चिंतना इस बात की गहरी से गहरी पकड़ रखती है हैं, उससे घिरे हुए लोग हैं। फिर जब हम.बुरे से परेशान हो जाते | कि अस्तित्व एक है। और हम किसी चीज को नहीं कहते कि वह हैं, तो उसको छोड़कर उसके विपरीत हम भले होने की कोशिश में | | परमात्मा नहीं है। किसी भी बात को हम परमात्मा से नहीं काटते लगते हैं। हमारी भलाई हमारी बुराई के विपरीत यात्रा होती है। | कि वह परमात्मा नहीं है। हम परमात्मा के अतिरिक्त और किसी इसलिए हमें लगता है कि बुरे और भले उलटे हैं, एक-दूसरे के | | को भी स्वीकार नहीं करते। हमारा परमात्मा सभी को आच्छादित विपरीत हैं। लेकिन जो दोनों के पार खड़े होकर देखता है, उसे पता कर लेता है, बाहर और भीतर से घेर लेता है। चलता है, वे एक ही चीज के दो छोर हैं। उस एक के लिए कृष्ण कहते हैं, हे अर्जुन, मैं सब भूतों के हृदय हमारी जिंदगी तो विपरीत की तरफ चलती रहती है। आज हम | | में स्थित सबका आत्मा हूं, तथा संपूर्ण भूतों का आदि, मध्य और बाएं जाते हैं; घबड़ा जाते हैं बाएं जाने से, तो दाएं जाने लगते हैं। अंत भी मैं ही हूं। शायद हम सोचते हैं कि दाएं जाना बाएं के विपरीत है। लेकिन दायां __ शेष हम कल बात करेंगे। और बायां एक ही आकाश के आयाम हैं। उत्तर जाते हैं, घबड़ा जाते लेकिन कोई उठे नहीं। पांच मिनट कीर्तन का प्रसाद लें और फिर हैं, दक्षिण जाने लगते हैं; तो सोचते हैं, दक्षिण उत्तर के विपरीत है। | जाएं। लेकिन उत्तर और दक्षिण दोनों एक ही आकाश के छोर हैं। मुल्ला नसरुद्दीन मर रहा है, आखिरी क्षण है। उसके मित्र उससे पूछते हैं कि नसरुद्दीन तुम किस भांति दफनाए जाना पसंद करोगे? हमें कुछ कह दो, तो हम उस अनुसार तैयारी करें! तो नसरुद्दीन ने कहा कि मुझे तुम शीर्षासन करता हुआ दफना देना; सिर नीचे, पैर ऊपर; अपसाइड डाउन! मित्र बड़े हैरान हुए। उन्होंने कहा, क्या कह रहे हो? ऐसा हमने कभी किसी का दफनाया जाना सुना नहीं! नसरुद्दीन ने कहा कि पैर नीचे सिर ऊपर इस जमीन पर काफी रहकर देख लिया, कुछ पाया नहीं; अब उलटा प्रयोग करके देखें। सो फॉर दि नेक्स्ट वर्ल्ड, आई वांट टु बी अपसाइड डाउन; वह जो दूसरा लोक है, वहां हम सिर के बल होना चाहते हैं। एक तो यह अनुभव कर लिया, यह बेकार पाया। अब इससे उलटा कर लें। लेकिन क्या आपने खयाल किया है कि चाहे आप सिर के बल खड़े हों और चाहे पैर के बल, आप ही खड़े होते हैं, जो एक है। चाहे सिर के बल खड़े हो जाएं, चाहे पैर के बल खड़े हो जाएं; शरीर उलटा हो जाता है, आप जरा भी उलटे नहीं होते; सेंटर अपनी जगह वैसा का वैसा ही रहता है। बुरे में भी परमात्मा भला उलटा खड़ा हो, इससे ज्यादा कोई फर्क
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy