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________________ ॐ शास्त्र इशारे हैं 8 वे परमात्मा से जोड़ेंगे; और एक बुरा अस्तित्व होगा, जिसे | एक हाथ को सिगड़ी पर रखकर जरा तपा लें और फिर दोनों हाथों परमात्मा से अलग कर देंगे। को एक ही बाल्टी के भरे हुए पानी में डाल दें। तब आप बड़ी इसलिए कुछ धर्मों को शैतान भी निर्मित करना पड़ा है। शैतान | | मुश्किल में पड़ जाएंगे; उसी मुश्किल में, जिसमें ऋषि पड़ गए, जब का अर्थ है, जो-जो बुरा-बुरा है इस जगत में, वह शैतान के जिम्मे | | उनको अनुभव हुआ अस्तित्व का। तब आपसे अगर मैं पूछू कि छोड़ दिया। जो भला-भला है, वह परमात्मा के जिम्मे ले लिया। | बाल्टी का पानी ठंडा है या गरम? तो आप मुश्किल में पड़ जाएंगे। ऐसा विचार कमजोर है। और ऐसा परमात्मा भी, ऐसे विचार का एक हाथ कहेगा ठंडा और एक हाथ कहेगा गरम। क्योंकि सब परमात्मा भी अधूरा होगा। क्योंकि बुराई के होने के लिए भी | | अनुभव सापेक्ष हैं, रिलेटिव हैं। अगर आपने एक हाथ ठंडा कर परमात्मा का सहारा चाहिए। बुराई भी हो सकती है, तो परमात्मा के | | लिया है, तो पानी उस हाथ को गरम मालूम पड़ेगा। जो हाथ आपने सहारे ही हो सकती है। अस्तित्व मात्र उसी का है। और अगर हम | | गरम कर लिया है, उस हाथ को वही पानी ठंडा मालूम पड़ेगा। दोनों एक बार ऐसा स्वीकार कर लें कि बुराई का अपना अस्तित्व है, तो | | हाथ आपके ही हैं। आप क्या वक्तव्य देंगे कि पानी ठंडा है या फिर बुराई को कभी समाप्त नहीं किया जा सकता। क्योंकि उसका गरम? तो आप कहेंगे, एक हाथ कहता है ठंडा और एक हाथ अपना निजी अस्तित्व है। उसे परमात्मा नष्ट नहीं कर सकता। | | कहता है गरम। और अगर एक ही चीज के संबंध में दो हाथ दो और अगर हम ऐसा समझ लें कि परमात्मा में और शैतान में | खबर देते हैं, तो इसका मतलब हुआ कि ठंडक और गर्मी दो चीजें कोई संघर्ष चल रहा है, तो फिर कोई तय नहीं कर सकता कि अंतिम | नहीं हैं, एक ही चीज है। विजय किसकी होगी। और जहां तक रोज का सवाल है, तो यही | बुराई और भलाई भी दो चीजें नहीं हैं, एक ही चीज है। जिसको दिखाई पड़ता है कि निन्यानबे मौकों पर शैतान जीतता है। एकाध | | हम बुरा आदमी कहते हैं, उसका मतलब है, कम से कम भला। मौके पर परमात्मा भूल-चूक से जीत जाता हो, बात अलग है। | और जिसको हम भले से भला आदमी कहते हैं, वह भी कम से लेकिन निन्यानबे मौके पर शैतान जीतता हुआ मालूम पड़ता है! | | कम बुरा है। इसलिए आप बुरे से बुरे आदमी में भलाई खोज सकते अगर हम इतिहास का अनुभव लें, तो हमें यही मानना पड़ेगा कि हैं, और भले से भले आदमी में बुराई खोज सकते हैं। अंत में दिखता है. शैतान ही जीतेगा. परमात्मा जीत नहीं सकता। ऐसा भला आदमी आप नहीं खोज सकते. जिसमें बराई न हो। अगर हम शैतान को एक अलग अस्तित्व मान लें, तो यह संघर्ष | | और ऐसा बुरा आदमी नहीं खोज सकते, जिसमें भलाई न हो। शाश्वत हो जाएगा। | इसका अर्थ क्या हुआ? इसका अर्थ हुआ कि बुराई और भलाई एक लेकिन हिंदू चिंतन शैतान जैसी किसी अलग व्यवस्था को | | ही चीज के दो विस्तार हैं, एक ही चीज का तारतम्य है। दोनों एक स्वीकार नहीं करता। लेकिन फिर जटिल हो जाता है और सूक्ष्म हो | | का ही, और उस एक का नाम हमने परमात्मा दिया है। जाता है, क्योंकि बात फिर आसान नहीं रह जाती। यह बिलकुल ___ इसलिए कृष्ण कहते हैं, प्रारंभ भी मैं ही हूं, मध्य भी मैं ही हूँ, आसान है, काले को काला और गोरे को गोरा कर देना। अंधेरे को अंत भी मैं ही हूं। संसार भी मैं ही हूं, मोक्ष भी मैं ही हूं, शरीर भी अलग, प्रकाश को अलग कर देना, बहुत आसान है; सीधा-साफ मैं ही हूं, आत्मा भी मैं ही हूं। इस जगत में जो भी है, वह मैं हूं। है। लेकिन हिंदू चिंतन कहता है, सभी कुछ परमात्मा है। यह जरा | इसे हम ऐसा समझें, तो आसान हो जाएगा। मुश्किल है। हिंदू चिंतन के लिए अस्तित्व और परमात्मा पर्यायवाची हैं, लेकिन यही वैज्ञानिक है। अगर हम वैज्ञानिक से पूछे, तो वह | | सिनानिम हैं। इसलिए जब हम कहते हैं, ईश्वर है, तो गहन विचार कहेगा, अंधेरा प्रकाश का ही एक रूप है। अंधेरे का मतलब है,। | की दृष्टि से पुनरुक्ति हो जाती है। जब हम कहते हैं, गॉड इज़, ईश्वर कम से कम प्रकाश। प्रकाश भी अंधेरे का एक रूप है। प्रकाश का | है, तो पुनरुक्ति हो जाती है। क्योंकि है का मतलब हिंदू विचार में अर्थ है, कम से कम अंधेरा। शायद प्रकाश और अंधेरे में समझने | | ईश्वर है। जो भी है, वह ईश्वर है। होना ही ईश्वर है। अगर इसको में कठिनाई होती है। विज्ञान कहता है, गर्मी और ठंडक एक ही चीज | हम ऐसा तोड़ें, जब हम कहते हैं, ईश्वर है, तो इसका अर्थ हुआ, है के दो नाम हैं, दो चीजें नहीं हैं। है। या इसका अर्थ हुआ, ईश्वर ईश्वर। यह पुनरुक्ति है। कभी ऐसा करें कि एक हाथ को बर्फ पर रखकर ठंडा कर लें और | __ अस्तित्व ही परमात्मा है। साधक के लिए इसका बहुत गहरा 109
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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