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________________ गीता दर्शन भाग-5 आया नहीं कि हम घबड़ाते हैं । सुख कहते हैं उस स्थिति को, जो आ जाए, हम उसे बुलाते हैं, निमंत्रण देते हैं, और फिर बुलाकर फंस जाते हैं और घबड़ाते हैं। और आनंद हम कहते हैं उस स्थिति को, जहां न सुख होता है और न दुख, और ऊबने का कोई उपाय नहीं होता । सुख पुराना पड़ जाता है, इसलिए ऊब जाते हैं! आनंद कभी पुराना नहीं पड़ता; रोज ताजा ही बना रहता है। इसलिए उससे बने का कोई उपाय नहीं है। अगर आपको जीवन में कहीं से कोई रंध्र मिल जाए, जहां से ऊब पैदा न होती हो, तो आप समझना कि आप ठीक रास्ते पर हैं, उसी पर बढ़े चले जाएं। और जिस चीज से भी ऊब पैदा होती हो, आप समझ लेना कि वह संसार का हिस्सा है, चाहे वह कुछ भी हो। अर्जुन सोचता है कि इन अमृतमय वचनों को और और सुनूं, तो शायद तृप्ति हो जाए। यह तृप्ति होने वाली नहीं है। क्योंकि ये वचन उस आनंद की तरफ इशारा हैं, जिसको सुनकर नहीं समझा जा सकता, पाकर और जीकर ही समझा जा सकता है। लेकिन कृष्ण ने कहा- अर्जुन के इस प्रकार पूछने पर कृष्ण ने कहा, हे कुरुश्रेष्ठ, अब मैं तेरे लिए अपनी दिव्य विभूतियों को प्रधानता से कहूंगा। मेरी विभूतियां हैं अनंत। उनमें जो प्रधान हैं, उनको मैं तुझसे कहूंगा। क्योंकि मेरे विस्तार का अंत नहीं है। अगर तू सोचता हो कि मैं पूरे विस्तार की बात करूं, तो यह चर्चा चलती ही रहेगी, यह कभी समाप्त नहीं हो सकती। अभी पश्चिम में भूगोलविद, ज्यॉग्राफी के विद्वानों में एक प्रश्न चलता था। और वह प्रश्न यह था कि अगर हम हिंदुस्तान का नक्शा बनाएं, तो उसे हिंदुस्तान का नक्शा कहना चाहिए कि नहीं? क्योंकि वह हिंदुस्तान जैसा तो होता ही नहीं! नक्शा हिंदुस्तान जैसा कहां होता है? अगर बंबई का नक्शा बनाएं, तो बंबई जैसा कहां होता है? इसको बंबई का नक्शा क्यों कहना चाहिए? अगर बंबई का नक्शा कहते हैं, तो उसे बंबई जैसा होना चाहिए। लेकिन तब बंबई के बराबर बड़ा, इतना ही बड़ा नक्शा बनाना पड़े। और अगर इतना ही बड़ा नक्शा बनाना है, तो उसका प्रयोजन ही खो गया। नक्शा तो जेब में आना चाहिए, तभी उसका प्रयोजन इतने बड़े नक्शे को लेकर घूमेगा कौन? अगर इतने बड़े नक्शे लेकर घूम सकते हैं, तो बंबई को ही लेकर घूम लेंगे । नक्शे की क्या जरूरत है? हिंदुस्तान का नक्शा अगर हिंदुस्तान के बराबर, एक्जेक्ट वैसा ही बनाना पड़े, तब हम उसको नक्शा कहें...। भाषा के लिहाज से तो तभी कहना चाहिए, जब हिंदुस्तान के नक्श को पूरा उतार दे, | उसके पूरे चेहरे को उतार दे, रत्तीभर कहीं कोई फर्क न हो; पैरेलल, | समानांतर, दूसरा हिंदुस्तान बनाना पड़े, तब नक्शा बने। लेकिन तब बेमानी हो गया। नक्शे का उपयोग यह है कि पूरा हिंदुस्तान बिना जाने, एक कागज के छोटे-से टुकड़े पर भी हम जान लें कि कहां क्या है । पर उसे नक्शा कहें या न कहें? उसे नक्शा कहना भाषा की दृष्टि से ठीक नहीं है। लेकिन वही नक्शा है, क्योंकि उपयोग उसी का हो सकता है। और नक्शे का उपयोग इतना है कि वह वास्तविक की तरफ इशारा करे। अर्जुन कृष्ण से पूछ रहा है कि तुम अपनी महिमा को, अपने ऐश्वर्य को, उसके समग्र विस्तार में कहो । 'अगर कृष्ण उसका समग्र विस्तार करने जाएं, तो वह उतना ही लंबा होगा, जितना यह अस्तित्व है। और अगर इतने लंबे अस्तित्व के मौजूद रहते हुए अर्जुन उसको नहीं समझ पा रहा है, तो कृष्ण के | विस्तार को कैसे समझ पाएगा ! और अगर इतने ही विस्तार को समझना है, तो यह अस्तित्व काफी है, इसको समझ लेना चाहिए। अनंत होगी वह कथा तो, उसका फिर कोई अंत नहीं हो सकता । अगर कृष्ण शुरू से ही शुरू करें और अंत पर ही अंत करें, तो न कोई शुरू होगा और न कोई अंत होगा । और यह कथा इतनी लंबी होगी कि बेमानी हो जाएगी। तो कृष्ण इसलिए कहते हैं, प्रधानता से कुछ बातें मैं तुझसे | कहूंगा। चुनकर कुछ बातें मैं तुझसे कहूंगा, जो कि इशारा बन जाएं और तुझे थोड़ी झलक दे सकें। नक्शा तेरे काम आ जाए, इतना मैं तुझसे कहूंगा। जिसके आधार पर तू वास्तविक को पाने पर निकल जाए। लेकिन कुछ लोग गलती कर सकते हैं, नक्शे को ही वास्तविक समझ सकते हैं। और हममें से बहुतों ने यह गलती की है। हम | नक्शे को ही वास्तविक समझ लेते हैं। शब्द ही हमारे लिए यथार्थ हो जाते हैं। अगर अभी यहां कोई जोर से चिल्ला दे, आग ! फायर ! तो अनेक लोग भागने की हालत में हो जाएंगे, बिना इस बात की फिक्र किए कि आग है भी या नहीं। आग शब्द तो सिर्फ नक्शा है, लेकिन हमें उत्तेजित कर दे सकता है उतना ही, जितना कि आग हो, तो हम उत्तेजित हो जाएं। और धीरे-धीरे हमारी हालत ऐसी हो जाती है कि एक बार आग भी जल रही हो और कोई आग न चिल्लाए, तो हम शायद उत्तेजित न हों। 104
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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