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ॐ गीता दर्शन भाग-50
जाता है, उस बुद्धि की क्षमता तेरह साल की ही होती है। | नीचे। लेकिन तैरने में बहुत कुशल हो जाए, तो शायद डुबकी - बड़ी दुखद बात है। लेकिन सत्तर साल का आदमी यह मानने लगाने का उसे खयाल ही न आए।
को राजी नहीं होगा। वह कहेगा कि मैं जानता हूं। क्योंकि उसके कभी-कभी ऐसा भी हो जाता है कि जो तैरना नहीं जानता, पास विस्तार ज्यादा है। वह ज्यादा तथ्य गिना सकता है, ज्यादा | | उसकी मजबूरी में भी डुबकी लग जाती है। लेकिन तैरने वाले की अनुभव गिना सकता है। उसके पास स्मृति बड़ी है; सत्तर साल | डुबकी तो लगना मुश्किल है, जब तक कि वह स्वयं न लगाए। उसकी स्मृति में टंक गए।
कभी-कभी भूल से भी न तैरने वाले की डुबकी लग जाती है। लेकिन विस्तार से कोई ज्ञान को उपलब्ध नहीं होता। वरन ___ इसलिए एक और दूसरी मजे की घटना आपसे कहता हूं कि विस्तार से यह भी हो सकता है कि ज्ञान की संभावना क्षीण हो जाए। | इतिहास में पंडितों को परमज्ञान हुआ हो, इसके उल्लेख न के बराबर इसलिए यह जानकर आप हैरान होंगे कि इस जगत में आज तक | हैं। कभी-कभी अज्ञानी भी परमज्ञान को उपलब्ध हो जाते हैं, लेकिन जितनी भी महाज्ञान की घटनाएं घटी हैं, उनमें किसी बूढ़े को घटी | | पंडित नहीं हो पाते! कबीर हैं, बेपढ़े-लिखे हैं। मोहम्मद हैं, हो, इसकी अब तक इतिहास में कोई खबर नहीं है। | बेपढ़े-लिखे हैं। जीसस हैं, बेपढ़े-लिखे हैं। नानक हैं, बेपढ़े-लिखे
यह बहुत हैरानी की बात है। बुद्ध हों, कि महावीर हों, कि | | हैं। ये बेपढ़े-लिखे लोग भी कभी डुबकी लगा जाते हैं। जीसस हों, कि शंकराचार्य हों, कि नागार्जुन, कि वसुबंधु, कि कबीर ने डुबकी लगा ली और काशी के पंडित, जो बहुत जानते लाओत्से, कोई भी गहरे बुढ़ापे में परमज्ञान को उपलब्ध नहीं हुआ | | थे, और वहीं कबीर के आस-पास थे, और कबीर को एक गंवार है। ये सारी घटनाएं पैंतीस साल के करीब घटती हैं, पैंतीस साल | जुलाहा समझते थे, वे डुबकी नहीं लगा पाए। वे डुबकी नहीं लगा के पहले आमतौर से या पैंतीस साल के करीब। पैंतीस साल के | पाए। वे इतना जानते थे कि शायद यह भूल ही गए कि अभी बाद आदमी बूढ़ा होना शुरू हो जाता है। पीक, पैंतीस साल है। | असली गहराई तो जानी ही नहीं है, यह सब विस्तार है-शब्दों अगर सत्तर साल उम्र है; तो पैंतीस साल पर आदमी शिखर पर होता | का, शास्त्रों का, सिद्धांतों का। अर्जुन के मन में भी वही खयाल है है, फिर उतार शुरू हो जाता है।
कि शायद तृप्ति मिल जाए, अगर और थोड़ा ज्यादा जान लूं। अब तक, उतरती जिंदगी में बहुत कम लोग ज्ञान को उपलब्ध | ___ ध्यान रहे, जब आप कोई चीज ज्यादा जानते हैं, तो आप तो वही हुए हैं। यह हैरानी की बात है। होना उलटा चाहिए। अगर विस्तार | | रहते हैं, आपका संग्रह भर बढ़ जाता है। और जब कोई चीज आप से ज्ञान बढ़ता हो, तो बुद्ध को, महावीर को, शंकर को, विवेकानंद | | गहरी जानते हैं, तो संग्रह नहीं बढ़ता, आप बदल जाते हैं। गहरा को, इन सबको ज्ञान होना चाहिए कोई पचास-साठ साल के बाद।। | जानने के लिए स्वयं गहरा होना पड़ता है। ज्यादा जानने के लिए लेकिन अब तक ऐसा हुआ नहीं। अब तक जो भी महाज्ञान की | | किसी को गहरा होने की जरूरत नहीं। घटनाएं घटी हैं, वे मध्य या मध्य के पहले घटी हैं।
जैसे धन तिजोड़ी में बढ़ता चला जाता है, एक के दस हजार इसका अर्थ है। कभी-कभी विस्तार बहुत बढ़ जाए, तो इतना | | रुपए हो जाते हैं, दस हजार के दस लाख हो जाते हैं। लेकिन इससे छा जाता है धुएं की तरह मन पर कि फिर गहराई में उतरना मुश्किल | आप यह मत समझना कि जिसकी तिजोड़ी में धन बढ़ रहा है, वह हो जाता है। आदमी इतना जान लेता है कि जानने में कहीं भी एक | | आदमी धनी हो रहा है। अक्सर तो ऐसा होता है कि जितना ज्यादा तरफ एकाग्र होने की उसे सुविधा नहीं रह जाती। उसका मन | | धन, उतना गरीब आदमी वहां मिलेगा। जितना ज्यादा धन हो जाता इतने-इतने, इतने-इतने तथ्यों में बंट जाता है और इतनी-इतनी | | है, उतना भीतर आदमी गरीब हो जाता है। और अक्सर धनी आदमी जगह भटकने लगता है कि उसे एक जगह रुककर प्रवेश करना | | एक ही काम करते हैं, अपने धन पर पहरा देने का। काम मुश्किल हो जाता है। विस्तार बाधा भी बन सकता है। | करते-करते समाप्त हो जाते हैं। उनकी जिंदगी एक पहरेदार से
दो बातें, विस्तार ज्ञान नहीं है, परिचय है, और परिचय ऊपरी ज्यादा नहीं रह जाती। बात है। और दूसरी बात, बहुत विस्तार हो, तो बाधा भी बन सकती। | धनी आदमी कंजूस हो जाता है, क्योंकि गरीब हो जाता है। और है। तैरने में कोई आदमी बहुत कुशल हो जाए, तो पैसिफिक | | कभी-कभी गरीब भी इतना कंजूस नहीं होता। और जो कंजूस नहीं महासागर के ऊपर भी तैर सकता है, जहां पांच मील गहराई है | । है, वह अमीर है। और जो कंजूस है, वह गरीब है।