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________________ ॐ शास्त्र इशारे हैं 8 समझना कि उनकी बौद्धिक उम्र ज्यादा नहीं है, बच्चों के बराबर है। सुकरात से जब यह बात सुनी, तो खुशी तो एक तरफ समाप्त जवान को शक होने लगता है। बच्चा बिलकुल दृढ़ होता है; वह | | हो गई, दर्द ऊपर आ गया; और वे बड़े खुश हुए। बड़े खुश हुए जो भी जानता है, पक्का जानता है। उसे शक ही नहीं होता अपने | कि हम खुद ही जानते थे पहले से ही कि देवी से कुछ भूल हो गई पर। उसे अपने अज्ञान का पता ही नहीं होता। है। सुकरात और परम ज्ञानी! जरूर कोई गलती हो गई है। अपने . बच्चे अज्ञानी होते हैं, लेकिन अज्ञान का उन्हें पता नहीं होता। ही गांव का आदमी, भलीभांति हम जानते हैं, यह क्या जानता है! उनका अज्ञान ही उनके लिए ज्ञान होता है। इसलिए बच्चे इतने कम | वापस देवी के पास वे गए और उन्होंने कहा कि क्षमा करें. तनाव से भरे हुए मालूम पड़ते हैं। कोई बेचैनी नहीं मालूम पड़ती। आपसे कुछ भूल हो गई। क्योंकि हम सुकरात से ही स्वयं पूछकर वे अपने अज्ञान में थिर हैं। अपने अज्ञान में बड़ी मौज में हैं। कोई आ रहे हैं। और सुकरात ने खुद ही कहा है कि मुझसे बड़ा अज्ञानी उन्हें परेशानी नहीं है कुछ जानने की; वे सभी कुछ जानते हैं। इस जमीन पर कोई भी नहीं है। इसलिए आप अपने वक्तव्य को जवान होते-होते आदमी को दिखाई पड़ना शुरू होता है कि मेरे बदल लें! जानने की सीमाएं हैं। और उसे यह भी दिखाई पड़ना शुरू होता है। | देवी ने कहा कि इसीलिए तो सुकरात को मैंने ज्ञानी कहा है, कि बचपन की जो धारणाएं थीं, उनके नीचे की जमीन हट गई। उसे | क्योंकि जिसको अपने परम अज्ञानी होने का ज्ञान हो जाता है, उससे यह भी पता चलना शुरू होता है कि जो निश्चित था, वह बड़ा ज्ञानी जगत में कोई भी नहीं होता है। यही है कारण सुकरात अनिश्चित हो गया। जिसे मैंने पक्का समझा था, वह भी पक्का नहीं को महाज्ञानी कहने का। है। जवान बेचैन होने लगता है। उसे कुछ बातें पता चलती हैं कि बच्चे अज्ञानी होते हैं; उन्हें पता नहीं है। परम ज्ञानी भी बच्चों जैसा मैं जानता हूं, और बहुत बातें पता चलती हैं कि मैं नहीं जानता हूं। | अज्ञानी हो जाता है, लेकिन उसे पता होता है। वही निर्दोषता फिर बूढ़ा आदमी अगेर ठीक से विकसित हो, तो उसे पता चलता है | उसके जीवन में आ जाती है, जैसे उसे कुछ पता नहीं, वही इनोसेंस। कि मैं कुछ भी नहीं जानता हूं। लेकिन हम सबकी भूल यही है खयाल में कि थोड़ा और ज्यादा सुकरात के संबंध में यूनान की एक देवी ने घोषणा कर दी थी जान लेंगे, तो शायद ज्ञान हो जाए। जिंदगीभर हम इसी तरह संग्रह कि सुकरात परम ज्ञानी है; उससे बड़ा ज्ञानी पृथ्वी पर दूसरा नहीं करते हैं। ज्ञान को हम संग्रह समझते हैं। इसलिए बूढ़ा आदमी रात के गांव के लोगों ने यह खबर सुनी, वे सुकरात के पास सोचता है कि मैं ज्यादा जानता हूं, क्योंकि उसके पास निश्चित ही गए और उन्होंने कहा कि धन्य हैं भाग्य हमारे कि हमारे गांव में ज्यादा संग्रह होता है। तुम्हारा जन्म हुआ, क्योंकि देवी ने घोषणा की है कि तुम पृथ्वी पर पिछले महायुद्ध में अमेरिका में लोगों को मिलिटरी में भर्ती करते इस समय परम ज्ञानी हो। वक्त लाखों लोगों की मानसिक उम्र जांची गई, तो अमेरिका के सुकरात ने कहा कि देवी को जाकर कहना कि उसने थोड़ी देर मनोवैज्ञानिक चकित रह गए। शक तो बहुत बार होता है कि लोगों कर दी। जब मैं मूढ़ था और नासमझ था, तो मैं भी ऐसा ही सोचता की मानसिक उम्र कम होनी चाहिए, लेकिन इतनी कम होगी, यह था। अगर उसने तब घोषणा की होती, तो मुझे बड़ा आनंद आता। कभी नहीं सोचा था। लाखों लोगों की मानसिक उम्र जांचने से पता लेकिन अब तो मैं जानता हूं कि मैं कुछ भी नहीं जानता हूं। अब चला कि आमतौर से आदमी की औसत मानसिक उम्र, मेंटल एज एक ही ज्ञान मेरे पास बचा है कि मैं बिलकुल अज्ञानी हूं। मेरे पास तेरह साल से ज्यादा नहीं होती। कुछ भी नहीं है। तो जाकर देवी से कहना कि थोड़ी देर कर दी। यह शरीर की उम्र तो बढ़ती चली जाती है। सत्तर साल का आदमी हो सुनकर मुझे कुछ आनंद नहीं आता। जाता है, लेकिन मानसिक उम्र तेरह साल पर औसत रूप से रुक गांव के लोग परेशान हुए। एक तरफ तो उन्हें खुशी भी हुई थी | जाती है। जितनी तेरह साल के बच्चे के पास बुद्धिमत्ता होती है, उतनी कि एथेंस का नागरिक, उनके गांव का सुकरात, परम ज्ञानी घोषित ही सत्तर साल के आदमी के पास होती है। संग्रह अलग होता है, हुआ। लेकिन भीतर पीड़ा भी हुई थी कि हम अज्ञानी ही रह गए और | लेकिन बुद्धि ज्यादा नहीं होती। संग्रह ज्यादा होता है, क्योंकि सत्तर हमारे ही गांव का यह सुकरात, यह परम ज्ञानी हो गया! एक तरफ | | साल का अनुभव है। लेकिन जो बुद्धि संग्रह करती है, वह उतनी ही ऊपर से खुशी भी हुई थी, भीतर दर्द भी हुआ था। होती है, जितनी तेरह साल की। जिस बुद्धि में यह संग्रह बढ़ता चला 99
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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