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- गीता दर्शन भाग-500
विस्तरेणात्मनो योगं विभूतिं च जनार्दन ।
लेकिन ये वचन भी बहुत प्रीतिकर हैं, अमृतमयी हैं। और कोई भूयः कथय तृप्तिर्हि शृण्वतो नास्ति मेऽमृतम् । । १८ ।। | इनको सुनने के लिए भी रुका रह सकता है। तब तृप्ति तो कभी न श्रीभगवानुवाच
| होगी, बल्कि ये वचन भी एक नशे का काम कर सकते हैं। हन्त ते कथयिष्यामि दिव्या ह्यात्मविभूतयः । | बुद्ध के पास आनंद चालीस वर्षों तक था। चालीस वर्ष लंबा प्राधान्यतः कुरुश्रेष्ठ नास्त्यन्तो विस्तरस्य मे।। १९ ।। | समय है। और बुद्ध के निकटतम शिष्यों में से था। और इन चालीस
अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः।। | वर्षों में बुद्ध ने जो भी बोला, एक शब्द भी बोला, तो आनंद ने वे अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च ।। २०।।। | सारे शब्द सुने थे, पर उसकी भी तृप्ति नहीं होती। और जब बुद्ध और हे जनार्दन, अपनी योगशक्ति को और परम ऐश्वर्य रूप | की मृत्यु करीब आई, तो आनंद छाती पीटकर रोने लगा। और बुद्ध विभूति को फिर भी विस्तारपूर्वक कहिए, क्योंकि आपके | ने कहा कि रोने का क्या प्रयोजन है? जो मैंने कहा है, अगर तू उसे
अमृतमय वचनों को सुनते हुए मेरी तृप्ति नहीं होती है। | समझ गया, तो मत्य होती ही नहीं है। जो मैंने कहा है. अगर तने इस प्रकार अर्जुन के पूछने पर श्रीकृष्ण भगवान बोले, हे | उसे पाया, तो रोने का कोई भी कारण नहीं है; ये आंसू बंद कर।
कुरुश्रेष्ठ, अब मैं तेरे लिए अपनी दिव्य विभूतियों को लेकिन आनंद को बुद्ध की बातें सुनाई भी नहीं पड़ीं। वह गहन प्रधानता से कहूंगा, क्योंकि मेरे विस्तार का अंत नहीं है। | दुख में है। वह छाती पीटकर रो रहा है। और वह कह रहा है कि हे अर्जुन, मैं सब भूतों के हृदय में स्थित सबका आत्मा हूं | आपकी मृत्यु करीब आती, तो मेरे तो प्राण टूटते हैं। आपके तथा संपूर्ण भूतों का आदि, मध्य और अंत भी मैं ही हूं। | अमृतमय वचन फिर कब सुनने को मिलेंगे? अब कब, कितने
जन्मों के बाद आप जैसे व्यक्ति का दर्शन होगा? अब कब और
कहां? कितनी यात्रा के बाद आपकी शीतल छाया में बैठने को 27 र्जुन ने कृष्ण से पुनः कहा, और हे जनार्दन, अपनी | | मिलेगा? मेरी तो अभी तृप्ति नहीं हुई है, और आप जाने और विदा
योगशक्ति को और परम ऐश्वर्य रूप विभूति को फिर | | लेने को तैयार हो गए हैं!
भी विस्तारपूर्वक कहिए, क्योंकि आपके अमृतमय | | तो बुद्ध ने आनंद को कहा है कि तेरी तृप्ति, चालीस वर्ष से वचनों को सुनते हुए मेरी तृप्ति नहीं होती है।
| निरंतर तू मुझे सुनता है, अगर तू चालीस जन्मों तक भी सुनता रहे, कृष्ण के वचन हों, या बद्ध के, या क्राइस्ट के, सनते हए कभी तो भी नहीं होगी। क्योंकि तप्ति तो होगी चलने से. यात्रा करने से. भी किसी की उनसे तृप्ति नहीं होती है। ऊपर से देखने पर लगेगा | | पहुंचने से। मैं मंजिल की बात कर रहा हूं, वह बात प्रीतिकर लगती कि वचन इतने प्रीतिकर हैं, इतने अमृतमयी हैं, इतने मधुर हैं, कि | है। भविष्य दिखाई पड़ता है उसमें। स्वयं की संभावनाएं कभी कितना ही सुनो उन्हें, तृप्ति नहीं होती है। यह बहुत ऊपरी अर्थ वास्तविक हो सकती हैं, इसकी अनुभूति होती है, प्रतीति होती है, हुआ। गहरे में देखने पर, ये वचन ऐसे हैं कि सुनकर इनसे कभी | | आभास मिलता है। लेकिन वह आभास तृप्ति नहीं दे सकता। तृप्ति नहीं हो सकती; वरन अतृप्ति और बढ़ेगी। तृप्ति होना तो दूर, | ___ हम कितनी ही जल की चर्चा सुनें, और चाहे वह चर्चा कृष्ण या और अतृप्ति बढ़ेगी, और बेचैनी बढ़ेगी, और प्यास बढ़ेगी। बुद्ध ही क्यों न करते हों, तो भी प्यास नहीं मिट सकती है। बल्कि क्योंकि ये वचन जिस बात की खबर देते हैं, जैसे-जैसे उसकी खबर जल की चर्चा से प्यास और बढ़ जाएगी और सोई होगी, तो जग बढ़ने लगती है, वैसे-वैसे प्यास भी बढ़ने लगती है उसे पाने की। | जाएगी; और छिपी होगी, तो प्रकट हो जाएगी। और जल की चर्चा
और वह जो जलाशय है, इन वचनों में केवल उसकी छाया है। और उसकी महिमा, हमारे प्राणों को एक अभीप्सा दे देगी, आग वह जो तृप्ति का स्रोत है, इन वचनों में केवल उसकी ओर इशारा | जलने लगेगी भीतर। है। अगर कोई वचनों से ही तृप्त होना चाहे, तो कभी तृप्त न हो | तो एक तो ऊपरी अर्थ है। जैसा आमतौर से कोई गीता को सकेगा। चलना पड़ेगा उस ओर, जिस ओर ये वचन इशारा करते पढ़ेगा, तो वही दिखाई पड़ेगा। वह अर्थ है कि वचन इतने मधुर हैं हैं, इंगित करते हैं। जहां ये ले जाना चाहते हैं, वहां कोई पहुंचे तो कि सुनकर तृप्ति नहीं होती, अर्जुन और भी सुनना चाहता है। तृप्ति होगी।
लेकिन कितना ही सुनता रहे, यह तृप्ति कभी होगी नहीं।