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ॐ गीता दर्शन भाग-500
संबंध में चमत्कार की बातों का पता लगाने। एक योगी के संबंध | दो अस्तित्वों के बीच, दो दुनियाओं के बीच, दो लोकों के बीच, में सुना कि उसकी उम्र नौ सौ वर्ष है। तो वह बहुत चकित हुआ। | दो अलग-अलग आयाम जो समानांतर दौड़ रहे हैं, उनके बीच मिरेकल था, चमत्कार था। नौ सौ वर्ष! बात झूठ होनी चाहिए। | चर्चा है। इसलिए दुनिया में गीता जैसी दूसरी किताब नहीं है,
गया, वहां बड़ी भीड़-भाड़ थी। बड़े भक्त थे। बड़ा उत्सव चल क्योंकि इतना सीधा डायलाग, ऐसा सीधा संवाद नहीं है। रहा था। उसकी हिम्मत न पड़ी। एक आदमी के पास बैठकर उसने | रामायण है, वह राम के जीवन की लंबी कथा है। बाइबिल है, थोड़ा मित्राचार, थोड़ी दोस्ती बढ़ाई। फिर जब बातचीत शुरू हो | | वह जीसस के अनेक-अनेक अवसरों पर अनेक-अनेक गई, तो उसने पूछा कि क्या मैं आपसे पूछ सकता हूं कि आप इनके | अलग-अलग लोगों को दिए गए वक्तव्य हैं। कुरान है, वह ईश्वर शिष्य हैं? उसने कहा, हां। क्या मैं पूछ सकता हूं कि इनकी उम्र का संदेश है मनुष्य-जाति के प्रति, मोहम्मद के द्वारा निवेदित। कितनी है? मैंने सुना, नौ सौ वर्ष है! उस शिष्य ने कहा, मैं कुछ लेकिन कोई भी डायलाग नहीं है सीधा। ज्यादा नहीं कह सकता। मैं सिर्फ पांच सौ वर्ष से इन्हें जानता हूं। गीता सीधा डायलाग है। मैं-तू की हैसियत से दो दुनियाएं सामने
तब उसने अपना सिर पीट लिया कि अब मुसीबत खड़ी हुई। खड़ी हैं। एक तरफ सारी मनुष्यता का डांवाडोल मन अर्जुन में खड़ा अब मैं किससे पता लगाऊं कि इनकी उम्र कितनी है! और इसका | है और एक तरफ सारी भगवत्ता अपने सारे निचोड़ में कृष्ण में खड़ी अंत कहां होगा?
है। और इन दोनों के बीच सीधी मुठभेड़ है, सीधा एनकाउंटर है। जब भी हम कोई इनडायरेक्ट विटनेस, परोक्ष गवाही की तलाश यह बहुत अनूठी घटना है। इसलिए गीता एक अनूठा अर्थ ले ली में जाते हैं, तब हम भ्रांति में जा रहे हैं।
है। वह फिर साधारण धार्मिक किताब नहीं है। उसको हम और __ अच्छा होता अर्जुन सीधा कृष्ण की आंखों में आंखें डालकर किसी किताब के साथ तौल भी नहीं सकते। वह अनूठी है। खड़ा हो जाता। छोड़ता व्यास को, छोड़ता देवल को, छोड़ता लेकिन अगर हम उसके इस गहरे आयाम में प्रवेश करें और ऋषि-मुनियों को, सीधा कृष्ण की आंख में आंख डालकर खड़ा हो | | अर्जुन की पर्त-पर्त तोड़ते चले जाएं, तो ही हमें खयाल में आएगा। जाता। तो अर्जुन जितना जान लेता, उतना इन गवाहियों से, कितनी | तो अर्जुन के साथ कई बार मैं नाहक ज्यादा कठोर हो जाऊंगा, ही ये गवाहियां हों, कभी भी नहीं जाना जा सकता। | सिर्फ इसलिए ताकि मनुष्य की पर्त-पर्त का खयाल आ जाए। और
लेकिन सामने देखने की हिम्मत शायद उसकी नहीं है। शायद वह | | अर्जुन पूरा उघड़ जाए, तो ही कृष्ण को हम पूरा उघाड़ सकते हैं। डरता है कि कहीं सामने देखकर सच में ही पता न चल जाए कि कृष्ण | और जिस अर्थ में अर्जुन का द्वंद्व स्पष्ट हो, उसी अर्थ में कृष्ण का भगवान हैं। वह भी भय है। वह भी भय है। क्योंकि कल हम यह संदेश और संवाद भी स्पष्ट हो सकता है। भी कह सकते हैं कि व्यास को गलती हुई होगी। जिम्मेवारी हमारी | आज इतना ही। क्या? व्यास ने कहा था, इसलिए हमने मान लिया था। लेकिन अगर लेकिन पांच मिनट रुकें। और कल कीर्तन जब हो रहा था, आप हमें ही दिखाई पड़ जाए, तो फिर जिम्मेवारी सीधी हो जाती है। फिर | उठ-उठकर पास आ गए। उससे तकलीफ होती है। अपनी जगह मैं ही जिम्मेवार हो जाता हूं। वह भी भय है; वह भी डर है। ही पांच मिनट बैठे रहें। इतनी तो कम से कम आत्मा प्रकट करें कि
ये सारे डर हैं। और हर आदमी के डर हैं। यहां अर्जुन को मैं पांच मिनट बैठे रह सकते हैं। वहीं बैठे रहें। कीर्तन जब समाप्त हो, मानकर चल रहा है कि वह जैसे आदमी के भीतर का. सबके तभी उठे। भीतर का, सार-संक्षिप्त है। है भी। और कृष्ण को मानकर चल रहा हूं कि जैसे वे आज तक इस जगत में जितनी भगवत्ता के लक्षण प्रकट हुए हैं, उन सबका सार-संक्षिप्त हैं। कृष्ण जैसे इस जगत में जो भी भगवान होने जैसा हुआ है, उस सबका निचोड़ हैं। और अर्जुन जैसे इस जगत में जितने भी डांवाडोल आदमी हुए हैं, उन सबका निचोड़ है।
इसलिए गीता जो है, वह दो व्यक्तियों के बीच ही चर्चा नहीं है;
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