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________________ ॐ कृष्ण की भगवत्ता और डांवाडोल अर्जुन क्या है अर्थ देवल ऋषि का, देव ऋषियों का? कृष्ण के सामने क्या | यह रहा गुरु! है अर्थ? ऐसे जैसे सूरज सामने खड़ा हो और कोई दीए को लेकर | लेकिन हम चक्करों में घूमते हैं। चक्कर बड़े-छोटे, अपने-अपने गवाहियां देता हो कि निश्चित, मैं दीए में देखकर कहता हूं कि तुम | पसंद के हम बनाते हैं और उनमें घूमते हैं। मंदिर में परिक्रमा होती सूरज हो। ये गवाहियां ऐसी हैं। .. | है। बीच में मूर्ति होती है, चारों तरफ परिक्रमा होती है। हम परिक्रमा लेकिन अर्जुन को खयाल नहीं है। वह सोच रहा है, बड़े-बड़े में ही घूमते रहते हैं जन्मों-जन्मों। उस बीच की मूर्ति से हमारा कोई नाम ला रहा है वह, बड़े वजनी। वजनी वे हैं अर्जुन के लिए, कृष्ण संबंध ही नहीं हो पाता। बीच की मूर्ति सदा ही मौजूद है। के सामने वे दीए की तरह व्यर्थ हैं। सूरज के सामने जैसे दीया खो ये कृष्ण अर्जुन के सामने ही मौजूद हों, ऐसा नहीं है। वे हर जाए; कोई अर्थ नहीं है। उनका मूल्य ही इतना है कि अंधेरा जब हो अर्जुन के सामने मौजूद हैं। और अर्जुन जो कर रहा है, वही हर गहन, तब वे रोशनी देते हैं। और जब सूरज ही सामने हो, तो उनका | अर्जुन करता है; इनडायरेक्ट प्रूफ्स खोजता है। कोई भी उपयोग नहीं है। ईसाई विचारक एनसेल्म ने ईश्वर के लिए चार प्रमाण जुटाए हैं, लेकिन अर्जुन उनकी गवाहियां ला रहा है, कृष्ण को बहुत अदभुत | | कि वह है, ये चार प्रमाण हैं। एनसेल्म बेचारा आस्तिक नहीं है। लगा होगा! आज तक कृष्ण और बुद्ध को कैसा लगा है, उन्होंने कोई यद्यपि ईसाइयत मानती है कि एनसेल्म के जो तर्क हैं, बड़े कीमती वक्तव्य दिए नहीं हैं। लेकिन कृष्ण को बहुत हैरानी का लगा होगा | | हैं और आस्तिकता पश्चिम में उन पर ही टिकी है। लेकिन मैं कहता कि मैं सामने खड़ा हूं और अर्जुन कह रहा है कि महर्षि व्यास भी | | हूं, वह आस्तिक नहीं है। क्योंकि उसने जो तर्क दिए हैं, वे बचकाने कहते हैं कि आप भगवान हो। मैं भी मानता हूं; और भी मानते हैं। | हैं। और उन तर्कों से अगर ईश्वर सिद्ध होता है, तो वे सब तर्क जैसे कि उसके मानने पर निर्भर हो कृष्ण का भगवान होना! | काटे जा सकते हैं। हम सबको यह खयाल है कि अगर हम न मानें और हमारी वोट वे सब तर्क काटे जा सकते हैं। ऐसा कोई भी तर्क नहीं है दुनिया न मिले, तो भगवान गए! हमारे ऊपर निर्भर हैं। हम मानते हैं, तो में, जो काटा न जा सके। अतळ तर्क होता ही नहीं। और जो भी भगवान हैं। हम नहीं मानते, तो दो कौड़ी की बात; समाप्त हो गई। तर्क एक तरफ गवाही देता है, वही तर्क दूसरी तरफ भी गवाही दे __ आपके मानने पर कोई निर्भर बात नहीं है। किसी के मानने पर | सकता है। तर्क पक्षधर नहीं होते; तर्क वेश्याओं की तरह होते हैं; कोई निर्भर बात नहीं है। भगवत्ता एक सत्य है। और उस सत्य को | | प्रोफेशनल! तर्क तो किसी के भी साथ खड़ा हो जाता है! तर्क की जो इस भांति घूम-फिरकर चलेगा, वह सीधा न जाकर व्यर्थ ही. | कोई अपनी श्रद्धा नहीं होती। जहां जरूरत पड़े, जो खींच ले, तर्क चक्कर काट रहा है। केंद्र के आस-पास परिधि पर घूम रहा है, | उस तरफ खिंच जाता है। भटक रहा है, परिभ्रमण कर रहा है; केंद्र को चूक रहा है। __इसलिए अगर कोई सोचता हो तर्क से, जैसे एनसेल्म ने तर्क __ यह अर्जुन सामने नहीं देख रहा, कौन खड़ा है। यह घूम रहा है। दिए हैं ईश्वर के होने के, वे सब तर्क काट दिए गए हैं। कोई भी यह चारों तरफ चक्कर लगाकर कह रहा है कि ठीक है; परिक्रमा काट सकता है। एक स्कूल का बच्चा भी, जो थोड़ा तर्क जानता है, कर रहा हूं। और लोग भी कहते हैं! मत इकट्ठे कर रहा है। लेकिन | उनको काटकर रख देगा। तर्क से ईश्वर का कोई संबंध नहीं है, सामने जो खड़ा है, उससे चूक रहा है। गवाही से ईश्वर का कोई संबंध नहीं है। हम सबकी भी अवस्था यही है। परमात्मा सदा ही सामने है- बुद्ध के पास एक आदमी आया है और वह बुद्ध से कहता है सदा ही। क्योंकि जो भी सामने है, वही है। लेकिन हम पूछते हैं, | | कि जीवन के बाद, मृत्यु के बाद भी जीवन बचता है? अगर आप परमात्मा कहां है? हम पूछते हैं, किस शास्त्र को खोलें कि परमात्मा | गवाही दे दें, तो मैं मान लूं। बुद्ध ने कहा, अगर मैं गवाही दे दूं, तो का पता चले? किस गुरु से पूछे कि उसकी खबर दे? और वह | | फिर तुझे और भी गवाहियों की जरूरत पड़ेगी, जो कहें कि बुद्ध सामने मौजूद है। और हम बिना गुरु से पूछे उसको नहीं देख सकते! | झूठा आदमी नहीं है। फिर तुझे उन गवाहियों का भी पता लगाना और हम स्त्र पढ़े उसकी तरफ आंख हीं उठा सकते। | पडेगा कि वे झठ तो नहीं बोल रहे हैं: कोई सांठ-गांठ तो नहीं है जो सामने नहीं देख सकता उसकी मौजूदगी, वह शास्त्र में कैसे बुद्ध से भीतरी; कोई लेन-देन तो नहीं है! देखेगा? जो उसे नहीं देख सकता, वह गुरु को कैसे पहचानेगा कि एक अंग्रेज विचारक भारत आया था, कुछ योगियों, साधुओं के 75
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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