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________________ * योगयुक्त मरण के सूत्र * खड्ग की धार पर चलने जैसा है। बड़ा मुश्किल है। लाखों चलते | करुणा के सामने हम कितने ही पाप करें, सब क्षमा है। हैं, एकाध पहुंच पाता है। बड़ा कठिन है। लेकिन कृष्ण कहते हैं, यह उमर खय्याम हम सब पर मजाक कर रहा है। हम सब ऐसे ऐसे चित्तवान व्यक्ति को, जो सतत मेरे स्मरण में डूबा हुआ, भाव ही हैं। जिसका हृदय में आ गया, प्राण जिसका भृकुटी में और इंद्रियां नहीं, वह सुलभ होगा तभी, जब हम उसकी ओर उन्मुख हों। वह जिसकी संयम को उपलब्ध हुईं और जिसके भीतर अनाहत के नाद दुर्लभ रहेगा तब तक, जब तक हम विमुख हैं। विमुखता ही उसकी की गूंज शुरू हो गई, ऐसे व्यक्ति को मैं अति सुलभ हूं। मुझसे दुर्लभता, और हमारी उन्मुखता ही उसकी सुलभता बन जाती है। ज्यादा सुलभ और ऐसे व्यक्ति को कोई और चीज नहीं है। आज इतना ही। परमात्मा दुर्लभ है, अगर आप उलझे हुए हैं। परमात्मा बहुत पर अभी कोई उठेगा नहीं। पांच-सात मिनट उन्मुख होने की सुलभ है, अगर आप सुलझे हुए हैं। सब निर्भर करता है आप पर, | कोशिश कर लें। कौन जाने इन्हीं पांच-सात क्षणों में कुछ घटित हो परमात्मा पर नहीं। जटिलता है आपकी, तो परमात्मा बहुत दुर्लभ | |जाए। कोई जाएगा नहीं; कोई उठेगा नहीं। कीर्तन भी बैठकर ही है। और आप पीठ किए खड़े हैं सूरज की तरफ, तो सूरज का कोई संन्यासी करेंगे। आप भी सम्मिलित हों। कसूर नहीं है। और आप कितने ही चलते रहें पीठ किए, आप कभी भी सूरज का दर्शन न कर पाएंगे। क्योंकि जो आंखें पीठ किए हैं, वे कितनी ही चलें, कितनी ही चलें, सूरज के दर्शन का कोई सवाल नहीं। और एक कदम वापस लौटें, लौटकर देखें, और एक कदम भी फिर चलने की जरूरत नहीं; सूरज आंख के सामने है। परमात्मा ऐसा ही सुलभ और दुर्लभ है। अगर पीठ किए रहें उसकी तरफ, तो अति दुर्लभ है। कितना ही दौड़ें जन्मों-जन्मों, नहीं मिलेगा। और लौटें, ऊर्जा को लौट आने दें भीतर, संयमित हों, ध्यान को उपलब्ध हों, समाधि को पाएं...। समाधि, ध्यान, कुछ और नहीं, जस्ट ए टर्निंग, लौटना, एन अबाउट टर्न, चित्त का लौट आना स्वयं पर; और आप इसी वक्त उपलब्ध हो जाते हैं। इसी क्षण भी उपलब्ध हो सकते हैं। बहुत सुलभ है। सब आप पर निर्भर है, इट डिपेंड्स आन यू। लेकिन हम बड़े होशियार हैं। हम मंदिर के सामने जाकर कहते हैं। कि मैं बहुत पापी हूं, मुझ से क्या होगा! तू ही कुछ करवा लेना! और अपने पाप में लौटकर बड़ी कुशलता से लग जाते हैं। अगर हम | परमात्मा को परम दयालु भी कहते हैं, तो इसलिए नहीं कि हम मानते हैं, वह परम दयालु है। सिर्फ इसीलिए कि इसमें हमें सुविधा है। उमर खय्याम ने मजाक में कहा है-मौलवी ने रोका है उसे कि शराब पीना बंद कर खय्याम—तो खय्याम कहता है कि हम तो पीते ही रहेंगे, क्योंकि हमें उस रहमान की रहमत पर भरोसा है; उस परम कारुणिक पर हमें पूरा भरोसा है। तू आस्तिक है? तू आस्तिक कैसा! नास्तिक है। मौलवी से खय्याम कहता है अपनी शराब की प्याली हाथ में लिए. त नास्तिक है। हमें तो उसका भरोसा है। उसकी करुणा अपार है। और हम क्या खाक पाप किए। महान
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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