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________________ भूमिका विश्व-चेतना की उत्क्रांति मानव-जाति के इतिहास में फ्रायड का बहुत बड़ा योगदान है। उसने अपने अध्ययन, निरीक्षण और प्रयोगों द्वारा मनुष्य के मन की, भीतर अंधकार में छिपी हुई परतों तक पहुंचने का सफल प्रयास किया। यद्यपि ध्यान देने जैसी बात तो यह है कि उसने जो परतें उघाड़ीं, उसने जो विश्लेषण किया मनुष्य के मन का, वह बहुतांश मनुष्य के रुग्ण मन को उजागर करता है। फ्रायड ने अपने जीवनकाल में यह सिद्ध किया कि मनुष्य भीतर से रुग्ण है, चाहे बाहर से कितना ही स्वस्थ नजर आता हो। तथा फ्रायड और उसके विचारों को लेकर चलने वालों ने मनष्य की रुग्णता का मनोविज्ञान प्रस्तत किया। और वहीं वे रुक गए। ___ फ्रायड के प्रयासों से यह तो स्पष्ट हुआ कि मनुष्य मन से रुग्ण है, परंतु वह स्वस्थ कैसे हो, इसका कोई सुराग फ्रायड नहीं दे पाया। यदि उपरोक्त तथ्य को समझ लें, तो श्रीमद्भगवद्गीता की महत्ता और प्रासंगिकता को समझना सरल होगा। अर्जुन मनुष्य-जाति का ही प्रतिनिधि है। उसके मन की विचलता, उसका विषाद, उसके अहंकारी और दिखाऊ वक्तव्य, सब उसकी मानसिक अ-स्वस्थता को ही प्रकट करते हैं। उलझा हुआ मन है अर्जुन का, जैसा कि हम सब का होता है। पीड़ा, संताप, शंका-कुशंका से भरे मन को बड़े-बड़े दार्शनिक विचारों द्वारा या संस्कृति और सभ्यता के नाम पर उन्हें ढंकने की आदत है अर्जुन को, जैसी हमारी भी होती है। परंतु कृष्ण की पैनी दृष्टि उसके तमाम आवरण फेंककर अर्जुन को अपनी असलियत देखने को बाध्य करती है। ___ यह तो हुआ कृष्ण की करुणा का एक अंग। परंतु यहीं वे नहीं रुकते, वे उस अ-स्वस्थ मन को स्वस्थ करने की प्रक्रिया भी अर्जुन को करुणावश समझाते हैं। कर्म-योग, भक्ति-योग, ध्यान-योग-ये सब भीतर की स्वस्थता अर्जित करने के मार्ग हैं। कृष्ण की मनोविज्ञान की दृष्टि अद्भुत एवं विशेष रूप से हितकारी है। इसीलिए ओशो ने उन्हें 'मनोविज्ञान का पिता' घोषित किया है। ___ अर्जुन और कृष्ण और हमारे बीच पांच हजार वर्ष का फासला है। आज का मन अर्जुन के मन से कहीं अधिक विकसित, कहीं अधिक जटिल है। आज की सामाजिक, राजनीतिक परिस्थिति अर्जुन के समय से कहीं अधिक भिन्न है और उलझी हुई है। आज का जगत अर्जुन के जगत से कहीं अधिक संपन्न, विज्ञान की ऊंचाइयां छूने वाला, तर्कशील और बुद्धिमान है। अतः यद्यपि कृष्ण के समझाने से अर्जुन की शंकाओं का समाधान हो जाता है, और वह समाधान बहुत अंशों तक आज भी उपयोगी हो सकता है। परंतु वह समाधान और उनके भी आगे के समाधान कृष्ण की चेतना का कोई व्यक्ति, या कि कृष्ण की चेतना से भिन्न चेतना का व्यक्ति ही प्रस्तुत कर सकता है-और ओशो वही हैं। गीता के कष्ण और गीता-दर्शन के ओशो दोनों एक ही हैं. और भिन्न भी। मनुष्य-चेतना के विकास की श्रृंखला में ओशो की अद्वितीय देन है। आज के मनुष्य का मन–चाहे वह पूर्व का हो, चाहे पश्चिम का—उसकी गुत्थियां, उसकी पीड़ाएं, उसके प्रश्न, उसकी घुटन, इन सबका जैसा विश्लेषण ओशो ने किया है, वह अभूतपूर्व है। उन्होंने न केवल आज के रुग्ण मानस को उसकी जड़ों में जाकर पकड़ा है, वरन् उसका निवारण करने के हेतु ध्यान, संन्यास और संघ यानि कम्यून का विधायक मार्ग भी दिखाया है। उन्होंने एक-एक कदम हमारे साथ चलकर पूरी करुणा और सहानुभूति से हमारी सीमाएं, हमारी मजबूरियां जानकर हमें इतना साहस दिया है कि हम निडर होकर, होशपूर्वक चेतना की उत्क्रांति में सहभागी हो सकें। और यह कार्य उन्होंने वर्तमान विश्व-स्थिति के, वर्तमान समाज-व्यवस्था के, वर्तमान परिस्थितियों के संदर्भ में किया है। यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है। मानवीय चेतना में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने के लिए ओशो के अमृत गीता-प्रवचन मूलभूत रूप से सहायक हैं। ओशो ने कृष्ण की गीता में निहित रुग्ण-मानस और स्वस्थ-मानस की द्वंद्वात्मक स्थिति (डायलेक्टिक्स) को समझने के लिए न केवल हमें दृष्टि दी है, वरन्
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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