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स्वस्थ-मानस के पक्ष में उस पर कैसे अग्रसर हो सकें उसकी रूप-रेखा भी दी है। कहना चाहिए, ओशो ने हमें हम स्वस्थ से स्वस्थतर कैसे होते चलें, उसके अंतर-संकेत दिए हैं इन प्रवचनों में। ___ भविष्य के निर्माता हैं ओशो। श्रीमद्भगवद्गीता पर दिए गए उनके ये अमृत-प्रवचन उसी निर्माण कार्य की एक नींव हैं। हम जहां हैं, जैसे हैं, विकास की जिस सीढ़ी पर हैं, वहां से कृष्ण को सीधे जानना-समझना बहुत कठिन है। ओशो ने कृष्ण को जाना है। गीता ओशो के जीवन से निःसृत होती है। अतः कृष्ण को और कृष्ण की गीता को देखने-समझने में ओशो अद्भुत रूप से सहायक होते हैं।
आज यदि अर्जन प्रश्न-कर्ता होता. तो कष्ण शायद वही दष्टि उसे देते जो ओशो ने गीता-दर्शन में दी है। गीता-दर्शन की पंखडियां प्रस्तुत हैं। इसी प्रार्थनापूर्ण हृदय से कि ये ओशो के वचन अपनी व्यक्तिगत चेतना के विकास और विश्व-चेतना की उत्क्रांति के महायज्ञ में दीप-स्तंभ बन सकें मैं यहां ओशो के प्रति अपने अहोभावपूर्वक प्रणाम व्यक्त करता हूं।
स्वामी सत्य वेदांत
(डा.वसंत जोशी) एम.ए., पी एच.डी., महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, बड़ौदा
पी एच.डी.मिशिगन विश्वविद्यालय, यू.एस.ए.
कुलपति, ओशो मल्टिवर्सिटी, पूना