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*गीता दर्शन भाग-4*
लेकिन अर्जुन से कृष्ण कहते हैं, तू युद्ध कर। अर्जुन की | नहीं होता है। तकलीफ, अर्जुन की चिंता यही है कि वह कहता है कि यह युद्ध | सवाल है स्मरण की कला का, दि आर्ट आफ रिमेंबरिंग। उसे
और धर्म दो अलग चीजें हैं। अगर मुझे युद्ध करना है, तो मैं | | हम कैसे याद करें? और उसकी याद करते-करते ही हम बदल जाते अधार्मिक हो जाऊंगा। और अगर मुझे धार्मिक होना है, तो मुझे | | हैं। सच तो यह है, एक बार भी कोई हृदयपूर्वक प्रभु का स्मरण युद्ध छोड़कर भाग जाना चाहिए। यह अर्जुन की ही चिंता नहीं, हम | | करे, तो फिर वही आदमी नहीं रह जाता, जिसने स्मरण किया था। सभी की चिंता है।
यह हो नहीं सकता। अगर स्मरण किया गया है. तो स्मरण इतनी आज ही कोई मित्र मेरे पास थे। वे कहते थे, आप कहते हैं | | बड़ी घटना है कि उस व्यक्ति का आमूल जीवन बदल जाता है। हां, संन्यास। यदि मुझे संन्यास लेना है, तो मुझे घर छोड़कर जाना ही | स्मरण नहीं किया गया है, तब बात और है। पड़ेगा। और अगर मुझे घर में रहना है, तो संन्यास मुझे नहीं लेना युद्ध करते हुए प्रभु का स्मरण कर। इस प्रकार मेरे में अर्पण किए चाहिए।
हुए मन-बुद्धि से युक्त हुआ निस्संदेह मेरे को ही प्राप्त होगा। क्यों? घर और संन्यास में ऐसा क्या विरोध है ? अगर युद्ध और और तू भय मत कर। और तू डर मत। युद्ध से भाग मत। परमात्मा के स्मरण में विरोध नहीं, तो घर और संन्यास में क्या | मन-बुद्धि से युक्त होकर मेरा स्मरण कर, तो तू निश्चय ही मुझे विरोध हो सकता है? उनसे मैंने कहा कि संन्यास भी लो और घर | प्राप्त होगा। मन-बुद्धि से युक्त हुआ, इस बात को ठीक से समझ में भी रहो। उन्होंने कहा, आप कैसी उलटी बातें कहते हैं! लेना चाहिए।
अर्जुन के मन में भी ऐसा ही हुआ होगा कि कैसी उलटी बातें निरंतर ऐसा होता है। हृदय कुछ कहता है, बुद्धि कुछ कहती है, कहते हैं! अगर संन्यास लेना है, घर छोड़ दो। यह समझ में आता और दोनों में कभी योग नहीं हो पाता। दोनों में कभी योग नहीं हो है। घर में रहना है, संन्यास की बात छोड़ दो। यह भी समझ में पाता। बुद्धि कहती है, यह ठीक है; हृदय कहता है, कुछ और ठीक आता है। यह गणित बहत साफ है।
है। और निरंतर भीतर एक कलह, एक काफ्लिक्ट निरंतर चलती लेकिन साफ गणित अक्सर ही जिंदगी के गणित नहीं होते। रहती है। जिंदगी बहुत बेबूझ है। और जिंदगी के मामले में जो बहुत सफाई | हृदय कहता है, डूब जाओ भजन में। बुद्धि कहती है, पागल हुए. करने की कोशिश करता है, उसके हाथ में मुर्दा चीजें हाथ लगती हो? हृदय कहता है, कब तक रुके रहोगे पदार्थों के साथ; खोजो हैं, जिंदगी हाथ नहीं लगती। काटते ही चीजें मर जाती हैं, बांटते ही प्रभु को! बुद्धि कहती है, अभी समय बहुत है; अभी समय कहां चीजें मर जाती हैं। अगर संश्लिष्ट, सिंथेटिक जीवन को समझना हुआ; अभी तो जीवन बहुत पड़ा है। पहले थोड़ा संसार का तो और हो, तो जीवन बड़ा बेबूझ है। वहां युद्ध करते हुए अगर कोई ध्यान | | अनुभव ले लो। और परमात्मा को तो फिर कभी भी पाया जा सकता कर सके, तो ही जीवन की गहन धारा में प्रवेश करता है। | है। वह प्रतीक्षा करता ही रहेगा। वह कोई चुक जाने वाला नहीं है।
जीवन में चुनाव नहीं है। ध्यान के साथ युद्ध हो सकता है। | और इस जन्म में नहीं, तो अगले जन्म में हो जाएगा। लेकिन यह स्मरण के साथ युद्ध हो सकता है। और सच तो यह है, जब स्मरण | | संसार का तो भोग ठीक से कर ही लो। के साथ युद्ध होता है, तो युद्ध युद्ध नहीं रह जाता है। वही कृष्ण | बुद्धि और हृदय के बीच दरार है। और कोई व्यक्ति अगर इस अर्जुन से कह रहे हैं। तू स्मरण कर और युद्ध कर, क्योंकि स्मरण | | दरार के साथ स्मरण करेगा, तो वह स्मरण पूरा नहीं हो पाएगा। के साथ ही युद्ध युद्ध नहीं रह जाता। और अगर तू युद्ध से भी भाग | | कुछ लोग बुद्धि से ही स्मरण करते हैं। जो लोग बुद्धि से स्मरण गया और स्मरण की कला न जानी, तो तेरा संन्यास भी संन्यास नहीं | | करते हैं, उनका स्मरण एक तरह का इनवेस्टमेंट होता है। वे सोचते हो सकेगा।
| हैं कि अगर प्रभु को स्मरण न किया, तो कहीं नर्क न जाना पड़े। वे __ अगर स्मरण की कला ज्ञात हो, तो कसाई का काम करने वाला | | सोचते हैं कि अगर प्रभु को स्मरण किया, तो स्वर्ग मिल जाएगा। भी मंदिर के पुजारी से बहुत पहले प्रभु के मंदिर में प्रवेश कर जा वे सोचते हैं कि प्रभु को स्मरण किया, तो जीवन में सफलता सकता है। और अगर स्मरण की कला ज्ञात न हो, तो जीवनभर मिलेगी; दुख कम आएगा, सुख ज्यादा होगा। वे सोचते हैं, अगर मंदिर के पूजागृह में बैठकर भी, सिर पटकने पर भी कोई परिणाम | कुछ भी न हुआ, तो भी स्मरण करने में हर्ज क्या है! अगर कहीं
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