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* गीता दर्शन भाग-4*
कि डर तो यह है कि सांझ जिसे कहा है, उसे वह सुबह तक कभी का भूल चुका होगा। लेकिन फिर भी एक कोशिश...।
सांझ जो मैंने कहा है अभी, कल सुबह हम प्रयोग में कर सकें, तो शायद कहीं कोई रेखा हमारे भीतर छूट जाए। कहीं कोई प्रयोग से फूल खिल जाए। और चाहे अर्जुन समझा हो गीता या न समझा हो, अगर वह फूल खिल जाए, तो जिसके भीतर वह फूल खिल जाता है, वह तो समझ ही जाता है।
आज के लिए इतना ही।