________________
* क्षणभंगुरता का बोध
तो कृष्ण कहते हैं, क्षणभंगुर है यह।
तो मैं निराशावादी नहीं हूं। मैं सिर्फ इतना ही कह रहा हूं कि जीवन और इस क्षणभंगुर में हम कोशिश करते हैं बचाव की, ठहराव | से व्यर्थ लड़ने की कोशिश में मत पड़! उसमें तू टूट जाएगा। तब की। उस लड़ने में ही हम मिट जाते हैं और नष्ट हो जाते हैं। मैं यह भी कह रहा हूं कि यह शक्ति, जो तू जीवन से लड़कर नष्ट ___ज्ञान का अर्थ होता है, जीवन के नियम को जानकर जीना।। कर रहा है, यह शक्ति एक और दिशा में भी लगाई जा सकती है।
अज्ञान का अर्थ होता है, जीवन के नियम के विपरीत चेष्टा में लगे और जो तू पाना चाहता है, वह पाया जा सकता है। रहना। एक आदमी को पता ही नहीं है कि जमीन में गुरुत्वाकर्षण | एक ऐसा प्रेम भी है, जो शाश्वत है; लेकिन वह परमात्मा का है. वह छलांग लगा-लगाकर आकाश छने की कोशिश करते हैं. प्रेम है। वह पाया जा सकता है। आदमी-आदमी के प्रेम को शाश्वत गिर-गिरकर हाथ-पैर तोड़ लेते हैं। नियम का उन्हें पता नहीं है कि | करने की कोशिश मत कर! वह नहीं हो सकता। इसका कोई उपाय जमीन खींच रही है, और जितने जोर से तुम उछाल मारोगे, उतने | ही नहीं है। इसका कभी कोई उपाय नहीं हो सकेगा। लेकिन एक ही जोर से खींचे जाओगे। हाथ-पैर तोड़ लेंगे, तो शायद वह कहेंगे | प्रेम है, जो शाश्वत भी है। आदमी-आदमी के बीच के प्रेम की कि जीवन ने उनके साथ धोखा किया! जमीन को कितना कहा कि परेशानी में मत पड़! और अगर आदमी-आदमी के बीच भी प्रेम धरती माता है तू, और यह व्यवहार किया मां होकर!
करना है, तो आदमी के भीतर से भी परमात्मा को खोज। प्रेम नहीं, धरती माता का कोई लेना-देना नहीं है इसमें। आपको नियम | | उसको ही कर। आदमी को भी बीच का द्वार बना. जस्ट ए पैसेज. का पता नहीं है। नियम के विपरीत आदमी दुख पैदा कर लेता है। | | एक मार्ग। लेकिन उसके भीतर भी परमात्मा को देख।
तो कृष्ण कहते हैं कि क्षणभंगुर इस लोक में तू निरंतर मेरा ही | इसलिए हमने चाहा था कि पति में परमात्मा देखा जा सके। भजन कर। क्योंकि तभी तू उसे पा सकेगा, जो कभी नहीं खोता | क्योंकि अगर पति ही देखा जा सके, तो जिस प्रेम की आशा है, वह है। बाकी तू कुछ भी पा लेगा, तो खो जाएगा। चाहे यश, चाहे | | कभी संभव नहीं हो सकता। पश्चिम में प्रेम टूटेगा, विवाह भी कीर्ति, चाहे धन, चाहे राज्य-कुछ भी इस संसार में तू कुछ | | टूटेगा, परिवार भी बिखरेगा। बिखरना ही पड़ेगा। वह एक ही भी पा लेगा, तो तू ध्यान रखना कि पा भी नहीं पाएगा कि खोना | आधार पर बन सकता था और थिर हो सकता था, कि किसी दिन शुरू हो जाएगा।
पति में परमात्मा की झलक मिल जाए या पत्नी में कभी उस दिव्यता यहां हम जीत भी नहीं पाते हैं कि हार शुरू हो जाती है। पहुंच का बोध हो जाए। तो ही। जिस दिन किसी दिन पत्नी में मां दिखाई भी नहीं पाते हैं कि भटकना शुरू हो जाता है। मंजिल हाथ में आती पड़ जाए गहरे में कहीं, पति में प्रभु दिखाई पड़ जाए गहरे में कहीं, नहीं कि छीनने वाले मौजद हो जाते हैं। उसका कारण, जीवन | | उस दिन हम शाश्वत के नियम में प्रवेश कर गए। क्षणभंगुर है। .
ऐसा समझें, आज हमने जमीन के पार जाने के उपाय कर लिए, ___ इसमें कुछ निराशा नहीं है। पश्चिम के लोगों ने पूरब के संबंध | | अब हम चांद पर जा सकते हैं। अब तक नहीं जा सकते थे। न जा में निरंतर ऐसा सोचा है कि पूरब के लोग बिलकुल निराश हो गए| | सकने का कारण जमीन का ग्रेविटेशन था। दो सौ मील तक जमीन हैं। इन्होंने जीवन की आशा छोड़ दी है। तभी तो ये कहते हैं, कोई | | का गुरुत्वाकर्षण पकड़े हुए है। दो सौ मील के भीतर कोई भी चीज सुख नहीं है, दुख ही दुख है। कोई आशा नहीं, कोई अपेक्षा नहीं | | फेंको, जमीन उसे खींच लेगी। और या फिर उसको इतनी तीव्र गति है। कुछ नहीं होगा।
में रखना पड़ेगा, जैसे हवाई जहाज को रखना पड़ता है। इतनी तीव्र लेकिन पश्चिम के लोगों को ठीक खयाल नहीं है। पूरब के लोग गति में रखना पड़ेगा कि यहां की जमीन खींच पाए, इसके पहले निराशावादी नहीं हैं। लेकिन पूरब के लोग नासमझ भी नहीं हैं। वह यहां की जमीन से आगे हट जाए। वहां की जमीन खींच पाए,
अगर एक आदमी जमीन पर कूद-कूदकर हाथ-पैर तोड़ रहा है। उसके पहले आगे हट जाए। और मैं उससे कहूं कि पागल, तुझे पता नहीं कि जमीन का स्वभाव तो या उसे तीव्र गति में रखना पड़ेगा, तो जमीन उसे नहीं खींच खींच लेना है! तो खींचने के खिलाफ तू जो भी कर रहा है, पाएगी। क्योंकि जमीन के खींचने में समय लगेगा। मेरा हाथ यहां सोच-समझ के कर! अन्यथा हाथ-पैर टूट जाएंगे। और हाथ-पैर है, जमीन के खिंचाव का असर पड़ा, तब तक हाथ आगे हट गया। टूटें, तो जमीन को दोष मत देना, अपनी नासमझी को दोष देना। यह खिंचाव बेकार चला गया। तब तक उस पर असर पड़ा, आगे
355