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* नीति और धर्म *
सकता हूं कि क्रोध मेरे लिए इतना खतरा हो जाए कि या तो मैं क्रोध अनैतिक होते ही आप समाज के संघर्ष में पड़ जाते हैं-कानून, करूं या मैं जी सकूँ। और जीना हो, तो मुझे क्रोध को दबाना पड़े। अदालत, पुलिस। अनैतिक होते ही आप समाज से संघर्ष में पड़
इसलिए अक्सर ऐसा होता है कि छोटे-मोटे क्रोधी कभी क्रोध जाते हैं। अनैतिक होकर जीना बहुत मुश्किल है। धार्मिक होकर को नहीं दबाते। इतना महंगा नहीं है उनका क्रोध। उतने क्रोध के | जीना भी बहुत मुश्किल है; क्योंकि धार्मिक होते ही आप स्वतंत्र रहते भी जिंदगी चल सकती है। लेकिन बड़े क्रोधी को तो क्रोध | जीवन शुरू कर देते हैं। अनैतिकता से इसलिए कठिनाई आती है दबाना ही पड़ता है; क्योंकि जिंदगी असंभव हो जाएगी; जीना ही | कि जब आप दूसरों के हितों को नुकसान पहुंचाते हैं, तो आप मुश्किल हो जाएगा। वह आग इतनी ज्यादा है कि जला डालेगी कठिनाई में पड़ेंगे। धार्मिक होने से इसलिए कठिनाई आती है कि सब। कोई संबंध संभव नहीं रह जाएंगे।
आप दूसरों को मानना ही बंद कर देते हैं। आप ऐसे जीने लगते हैं, तो बड़े क्रोधी को क्रोध को दबाना पड़ता है। दबाने में भी क्रोध जैसे पृथ्वी पर अकेले हैं, जैसे पृथ्वी पर कोई भी नहीं है। आपका की जरूरत पड़ती है। क्योंकि दबाना क्रोध का एक कृत्य है; चाहे समस्त नियम आपके भीतर से निकलने लगता है। तब भी कठिनाई दूसरे को दबाना हो, चाहे स्वयं को दबाना हो। तो यह हो सकता होती है। है। यह होता है। यह कठिन नहीं है। यह बहुत ही सहज घटता है ध्यान रहे, अनैतिक होना कठिन है; धार्मिक होना कठिन है। कि बाहर जो आचरण में दिखाई पड़ता है, वह भीतर नहीं होता है। | नैतिक होना कनवीनिएंट है; नैतिक होना बड़ा सुविधापूर्ण है, पार्ट हम आचरण में धोखा दे सकते हैं।
आफ रिस्पेक्टिबिलिटी है। वह जो हमारा चारों तरफ सम्मानपूर्ण लेकिन आचरण से जो धोखा दिया जाता है, वह लोगों की समाज है, उसमें नैतिक होकर जीना सबसे ज्यादा सुविधापूर्ण है। आंखों को हो सकता है, लेकिन वह धोखा स्वयं को नहीं दिया जा इसलिए जितना चालाक आदमी होगा, उतना नैतिक होकर जीना सकता। नीति का संबंध है दूसरे को धोखा न देने से, धर्म का संबंध शुरू करेगा। है स्वयं को धोखा न देने से। नीति का संबंध है समाज की आंखों नैतिकता अक्सर चालाकी का हिस्सा होती है। धर्म भोलेपन का में शुभ होने से; धर्म का संबंध है परमात्मा के सामने शुभ होने से।। परिणाम है, निर्दोषता का; नैतिकता चालाकी का, हिसाब का,
नैतिक होना आसान है। सच तो यह है कि अनैतिक होने में इतनी कैलकलेशन का: अनैतिकता नासमझी का परिणाम है. अज्ञान का। कठिनाइयां होती हैं कि आदमी को नैतिक होना ही पड़ता है। लेकिन समझ लें। अनैतिकता नासमझी का परिणाम है, अज्ञान का; धार्मिक होना बड़ा कठिन है; क्योंकि धार्मिक न होने से कोई भी | नैतिकता होशियारी का, चालाकी का, गणित का; धर्म निर्दोष अड़चन नहीं होती, कोई भी कठिनाई नहीं होती। बल्कि सच तो यह साहस का। है कि धार्मिक होने से ही कठिनाई शुरू होती है और अड़चन शुरू लेकिन समाज जोर देता है कि जो नैतिक नहीं है, वह धार्मिक नहीं होती है।
| हो सकेगा। इसलिए अगर परमात्मा तक जाना है, तो नैतिक बनो! धार्मिक होकर जीना बड़े दुस्साहस का काम है। धार्मिक होकर समाज का जोर ठीक है। समाज इस जोर को दिए बिना जी नहीं जीने का अर्थ है कि अब मेरे जीवन का नियम मेरे भीतर से सकता। समाज को जीना हो, तो उसे नैतिकता की पूरी की पूरी निकलेगा; अब इस जगत का कोई भी नियम मेरे लिए महत्वपूर्ण | व्यवस्था कायम करनी ही पड़ेगी। वह नेसेसरी ईविल है, जरूरी नहीं है; अब मैं ही अपना नियम हूं। और अब चाहे कुछ भी | | बुराई है। जब तक कि सारी पृथ्वी धार्मिक न हो जाए, तब तक परिणाम हो, चाहे कितना ही दुख हो, और चाहे नर्क में भी पड़ना | नैतिकता की कोई न कोई व्यवस्था करनी ही पड़ेगी; क्योंकि पड़े, लेकिन अब मेरा नियम ही मेरा जीवन है।
अनैतिक होकर जीना इतना असंभव है। तो नैतिकता की व्यवस्था धार्मिक होकर जीना अति कठिन है। धार्मिक होकर जीने का करनी पड़ेगी। परिणाम तो भुगतना पड़ता है। किसी जीसस को सूली लगती है, अगर दस चोर भी चोरी में कोई संगठन कर लेते हैं, तो भी अपने किसी सुकरात को जहर पीना पड़ता है। यह बिलकुल अनिवार्य है। | भीतर एक नैतिकता की व्यवस्था उन्हें निर्मित करनी पड़ती है। दस धार्मिक होकर जीना बहुत कठिन है।
चोरों को भी! समाज के साथ वे अनैतिक होते हैं, लेकिन अपने ध्यान रहे, अनैतिक होकर भी जीना बहुत कठिन है; क्योंकि | | भीतर, उनके गिरोह के भीतर अतिनैतिक होते हैं। और यह मजे की
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