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________________ * वासना और उपासना * वृक्ष कहते से वृक्ष की तस्वीर घूम जाती है। वृक्ष कहते से वृक्ष | | जाएगी। अगर किसी ने गाली दी, और पहले राम का स्मरण आया, का एहसास हो जाता है। दरवाजा कहते से दरवाजे की प्रतीति हो | | तो फिर गाली का उत्तर गाली से देना मुश्किल हो जाएगा। कैसे? जाती है। घोड़ा कहते से घोड़ा खड़ा हो जाता है। लेकिन परमात्मा | राम बीच में आ गया, अब गाली देना असंभव हो जाएगी। मौत भी कहते से कुछ भी तो निर्मित नहीं होता! आ जाए, पहले राम का स्मरण आए। फिर मौत में भी दंश न रह परमात्मा हमारा अनुभव ही नहीं है, इसलिए शब्द खाली है! | जाएगा। कुछ भी हो, राम पहले खड़ा हो जाए। घोड़ा हमारा अनुभव है, इसलिए शब्द आते से अनुभव भी सामने इसको ही मैं उपासना कह रहा हूं। चौबीस घंटे-उठते. बैठते. आ जाता है। परमात्मा हमारा अनुभव नहीं है, इसलिए परमात्मा | सोते-राम का, प्रभु का, परमात्मा की उपस्थिति का अनुभव होता शब्द खाली है। सुन लेते हैं; बार-बार सुनने से ऐसा वहम भी पैदा | रहे। धीरे-धीरे यह सघन हो जाता है। यह इतना सघन हो जाता है हो जाता है कि अर्थ हमें मालूम है। | कि सब चीजें पिघलकर बह जाती हैं, यही सघनता रह जाती है। अर्थ अनुभव में होता है, शब्दकोश में नहीं। शब्दकोश में लिखा | धीरे-धीरे सब चीजें ओझल हो जाती हैं, परमात्मा की चारों तरफ हुआ है अर्थ, लेकिन अर्थ अनुभव में होता है। और जब तक उपस्थिति हो जाती है। अनुभव न हो, तब तक हम कितनी ही बार सुनें परमात्मा, | | फिर आप चलते हैं, तो परमात्मा आपके साथ चलता है। आप परमात्मा, परमात्मा, कुछ होगा नहीं। अर्थ कहां से प्रकट होगा? | | उठते हैं, तो परमात्मा आपके साथ उठता है। आप हिलते हैं, तो इसलिए परमात्मा को छोड़ें, उपासना पर ध्यान दें। उपासना से| परमात्मा आपके साथ हिलता है। आप सोते हैं, तो उसमें सोते हैं। अर्थ निकलेगा। उपासना असली चीज है। जैसे अंधे आदमी से हम | आप जागते हैं, तो उसमें जागते हैं। फिर चारों तरफ वही है। कहें कि तू प्रकाश की फिक्र छोड़, तू आंख का इलाज करवा। | श्वास-श्वास में वही है। हृदय की धड़कन में वही है। प्रकाश की फिक्र ही छोड़ दे। जिस दिन आंख ठीक हो जाएगी, उस | यह उपासना है। और मांग कुछ भी नहीं है। उससे चाहना कुछ दिन प्रकाश प्रकट हो जाएगा। ऐसे मैं आपसे कहूं कि आप फिक्र | | भी नहीं है। और मजा यह है, जो उससे कुछ भी नहीं चाहता, उसे छोड़ दें परमात्मा की, फिक्र कर लें उपासना की। उपासना आंख | सब कुछ मिल जाता है। और जो उससे सब कुछ चाहता रहता है, है। आंख जिस दिन खुल जाएगी, उस दिन परमात्मा प्रकट हो उसे कुछ भी नहीं मिलता है। जाएगा। वह यहीं मौजूद है। वासना से भरा हुआ व्यक्ति दरिद्र ही मरता है; उपासना से भरा उपासना का अर्थ क्या है? उपासना का अर्थ है, हम उसकी हुआ व्यक्ति सम्राट हो जाता है, इसी क्षण। वासना भिक्षा-पात्र है; उपस्थिति को प्रतिपल स्मरण करते रहें, अनुभव करते रहें। कुछ भी मांगते रहो, मांगते रहो, वह कभी भरता नहीं। उपासना भिक्षा-पात्र घटित हो, वही हमें याद आए। कुछ भी घटित हो, पहली खबर हमें को तोड़कर फेंक देना है। उपासना इस बात की खबर है कि वह उसकी ही मिले। कुछ भी हो जाए चारों तरफ, नंबर दो पर दूसरी हमारा ही है, उससे मांगना क्या है! वह मुझमें ही है, उससे मांगना याद आए, पहली याद उसकी आए। रास्ते पर एक सुंदर चेहरा क्या है! और जो भी उसने दिया है, वह सब कुछ है, अब और दिखाई पड़े, तो सुंदर चेहरा नंबर दो हो, पहले उसकी खबर आए। उसमें जोड़ना क्या है! एक फूल खिलता हुआ दिखाई पड़े, फूल नंबर दो हो, पहले उसकी उपासना का अर्थ है, स्वयं के भीतर छिपी हुई परम संपदा का खबर आए। कोई गाली दे, गाली देने वाला बाद में दिखाई पड़े. | अनुभव। और वासना का अर्थ है, स्वयं के भीतर एक भिक्षा-पात्र पहले उसकी खबर आए। | की स्मृति कि मैं एक भिखारी का पात्र हूं, मांगता रहूं, मांगता रहूं! आपकी जिंदगी बदलनी शुरू हो जाएगी, उसकी खबर को स्वामी राम अमेरिका गए; वे अपने को बादशाह कहते थे। प्राथमिक बना लें। इसको ही मैं स्मरण कहता हूं। उसकी खबर को | | उन्होंने किताब लिखी है, बादशाह राम के छः हुक्मनामे-बादशाह प्राथमिक बना लें। रास्ते पर पागल की तरह अगर राम-राम, | राम की छः आज्ञाएं। अमेरिका में पहली दफा तो जिन लोगों ने उन्हें राम-राम कहते हुए गुजरते रहें, तो कुछ भी न होगा। बहुत लोग | | देखा, वे थोड़े हैरान हुए कि दिमाग कुछ ढीला मालूम पड़ता है! गुजर रहे हैं। राम-राम कहने का सवाल नहीं, स्मरण का है। । | फकीर हैं. लंगोटी लगाए हए हैं. और अपने को बादशाह कहते हैं। जो भी हो, पहले राम, फिर दूसरी बात। सारी जिंदगी बदल और राम तो बोलते नहीं थे बिना बादशाह के! वे तो कहते थे, राम 1297
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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