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________________ * ज्ञान, भक्ति, कर्म * उसकी भाषा मेडिकल साइंस की होगी। पत्रकार जो कहेगा, उसकी | | लेकिन दो बने रहते हैं। प्रेम में भी एकता घटित होती है। दो बने खबर-पत्री की भाषा होगी। चित्रकार जो कहेगा, वह कहेगा, रुको! रहते हैं और भीतर कोई एक हो जाता है। दो धड़कनें होती हैं, जब तक मेरा चित्र न बन जाए, तब तक कुछ कहना मुश्किल है। | लेकिन धड़कनों का स्वर एक हो जाता है। दो प्राण होते हैं, लेकिन मेरा चित्र ही कहेगा। | दोनों के बीच एक धारा प्रवाहित होने लगती है। और इन चारों को, अगर हमें पता न हो कि ये एक ही आदमी | | प्रेम भी एक तरह की एकता को जानता है। और एक लिहाज से के करीब मौजूद थे, तो हम कभी कल्पना न कर पाएंगे कि वह एक प्रेम की जो एकता है, वह ज्यादा समृद्ध है ज्ञान की एकता से। ज्ञान ही आदमी था, जिसके चारों तरफ ये चारों मौजूद थे! की एकता उतनी समृद्ध नहीं है। क्योंकि उसमें निश्चित रूप से एक ठीक परमात्मा के चारों तरफ भी हम इसी तरह मौजूद हैं। और हो जाता है। वह गाणितिक एकता है; मैथेमेटिकल यूनिटी है। दो हम सबके उससे संबंधित होने के रास्ते अलग हैं। और एक का | मिलकर एक हो जाते हैं। ज्यादा जटिल नहीं है, सरल है। प्रेम की रास्ता दूसरे के लिए बिलकुल बेबूझ है। एकता ज्यादा जटिल है। दो दो रहते हैं और फिर भी एक का दूसरा रास्ता है, भक्त का। भक्त कहता है, जानने का क्या | | अनुभव करने लगते हैं। ज्यादा समृद्ध है। प्रयोजन? और जानकर भी क्या होगा? हम उसके प्रेम में डूब जाना। इसलिए ज्ञानियों से सखे वक्तव्य पैदा हए हैं। प्रेमियों ने बहत चाहते हैं। हम उसे जानना नहीं चाहते, हम उसमें लीन हो जाना | | रसपूर्ण वक्तव्य दिए हैं। प्रेमियों ने गाया है, नाचा है, रंगा है, चित्र चाहते हैं। हम जानना नहीं चाहते; जानने में दूरी है। हम तो उसके बनाए हैं, मूर्तियां बनाई हैं। हृदय में प्रवेश करना चाहते हैं और अपने हृदय में उसे प्रवेश देना । ऐसा समझें कि अगर सारा जगत ज्ञानी हो, तो सुखद नहीं होगा। चाहते हैं। क्योंकि जगत में जो रौनक है, वह जटिलता की है, कांप्लेक्सिटी - अगर भक्त से कोई कहेगा कि एक ही है, तो भक्त को समझ | की है। जगत में अगर सब बिलकुल सरल-सरल हो और में नहीं आएगा। क्योंकि प्रेम की घटना, अगर एक ही है, तो घटेगी सीधा-सीधा हो, तो जगत का सारा सौरभ खो जाए। भक्तों ने जगत कैसे? प्रेम की घटना के लिए कम से कम दो चाहिए। को सौरभ दिया है। इसलिए जिन धर्मों ने सिर्फ ज्ञान को ही प्रतिष्ठा मैंने आपसे कहा कि ज्ञान की घटना तभी घटेगी, जब दो मिट | | दी, वे रूखे हो गए हैं, मरणासन्न हो गए हैं। जाएं और एक बचे। जब एक बचे, तो ज्ञान की घटना घटेगी। ज्ञान | - नहीं यह कह रहा हूं कि जगत में भक्त ही भक्त हो जाएं। अगर की अनिवार्य शर्त है कि दो-पन मिट जाए और एक ही बचे। प्रेम | भक्त ही भक्त जगत में हों, तब भी एक कमी हो जाएगी। वह ज्ञानी की शर्त है कि अगर एक ही बचा, तो प्रेम कैसे घटित होगा? तो | भी एक रंग देता है अपनी मौजूदगी से। वह भी एक स्वर देता है प्रेम कहता है कि दो! और एक दिशा देता है। वह दिशा भी वंचित हो जाए, तो भी __ भक्तों ने गाया है कि नहीं तेरा मोक्ष चाहिए, नहीं तेरा निर्वाणः | नुकसान होता है। हमें तेरी वृंदावन की गली में अगर कुत्ता होने को भी मिल जाए, तो | | इस जगत में जितने रूप हैं, वे सभी इस जगत को समृद्धि देते हम तृप्त हैं! पर तेरी गली हो। और जन्मों से हमें छुटकारा नहीं हैं। इसलिए समृद्धतम धर्म वह है, जो सभी रूपों को आत्मसात कर चाहिए। एक ही प्रार्थना है कि जन्मों-जन्मों में जहां भी हम हों, तेरी लेता है। इस लिहाज से हिंदू धर्म बहत अदभत है। अदभुत इस स्मृति बनी रहे, उतना काफी है। लिहाज से है कि वह सभी मार्गों को आत्मसात कर लेता है। वह यह कोई और ही भाषा है। इन दोनों भाषाओं में विरोध है। विरोध ज्ञानी को ज्ञान का मार्ग दे देता है, भक्त को भक्ति का मार्ग देता है। होगा। लेकिन ये दोनों भाषाएं एक ही घटना की तरफ खबर देती | | दुनिया में कोई भी ऐसा धर्म नहीं है दूसरा। दूसरे सारे के सारे धर्म हैं। भक्त कहता है, दो तो होने ही चाहिए! किसी एक विशिष्टता को आधार बनाकर चलते हैं। __ अब यह जरा मजे की बात है कि प्रेम में भी एकता घटित होती | | जैसे जैन हैं। तो भक्ति उपाय नहीं है, ज्ञान ही उपाय है। इसलिए है, लेकिन वह एकता ज्ञान की एकता से भिन्न भाषा में प्रकट होती| जैन साधु के चेहरे पर एक रूखा-सूखापन छा जाएगा। अनिवार्य है। जैसे, ज्ञान में एकता घटित होती है, जब दो मिट जाते हैं। प्रेम है। जैन साधु नाचता हुआ मिले, तो बेचैनी होगी हमें। मीरा नाचे, में भी एकता घटित होती है, जब दो ऐसे हो जाते हैं, जैसे एक हों, तो हमें कोई बेचैनी नहीं होगी। चैतन्य नाचता हुआ गांव से गुजर 251
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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