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* श्रद्धा का अंकुरण *
यह बस अप्राकृतिक है। देखने में, देखने वाला प्रविष्ट हो जाएगा। | जब आप खिड़की को देखेंगे, तो चांद पृष्ठभूमि में छूट जाएगा। जैसा स्वरूप है जगत का, उसका ही यह हिस्सा है। और अब | और अगर आप ध्यानपूर्वक खिड़की को देखेंगे, तो चांद विलीन हो वैज्ञानिक भी स्वीकार करते हैं कि हमने जो विज्ञान विकसित किया | जाएगा; आकाश के बादल खो जाएंगे; बाहर के वृक्ष नहीं हो है, वह भी तथ्य कम है, व्याख्या ज्यादा है। जो हम देखते हैं, उसे | जाएंगे। खिड़की का चौखटा आपको दिखाई पड़ने लगेगा। हम शुद्ध नहीं देखते; वह हमसे सम्मिश्रित हो जाता है।
पश्चिम के मनसविद इसे गेस्टाल्ट कहते हैं। वे कहते हैं कि जब ___ मनुष्य का कोई भी ज्ञान मनुष्य से मिश्रित हुए बिना नहीं बच | | भी हम कुछ देखते हैं, तो हम जिस बात पर ध्यान देते हैं, वही हमें सकता है। अगर यह ठीक है, अगर यह सत्य है, तो फिर हम | | दिखाई पड़ता है; और जिस पर हम ध्यान नहीं देते, वह हमें दिखाई नास्तिक के साथ भी विरोध करने का कोई कारण नहीं पाते। अगर नहीं पड़ता। ध्यान ही हमारा अनभव है। वह कहता है, जगत में ईश्वर नहीं है, तो वह केवल इतना ही कहता | | तो जब मैं एक व्यक्ति को दुश्मन की तरह देखता हूं, तो मुझे है कि मेरी जो दृष्टि है, उससे जगत में ईश्वर दिखाई नहीं पड़ता है। कुछ और दिखाई पड़ता है, क्योंकि मेरा ध्यान किन्हीं और चीजों की तब आस्तिक से भी कोई कठिनाई नहीं है किसी को। अगर वह तलाश करता है; और जब मैं मित्र की तरह देखता हूं, तब उसी कहता है, मुझे जगत में ईश्वर दिखाई पड़ता है, तो वह असल में | व्यक्ति में मुझे कुछ और दिखाई पड़ता है, मेरा ध्यान कुछ और भाषा गलत उपयोग कर रहा है। उसे इतना ही कहना चाहिए कि | | तलाश करता है। वह जो व्यक्ति बाहर है, उसे तो मैं जानता नहीं।
जैसी मेरी दृष्टि है, उसमें मुझे जगत में ईश्वर दिखाई पड़ता है। | | जब भी मैं उस व्यक्ति के संबंध में कुछ भी निष्कर्ष निकालता हूं, __ कृष्ण ने इस सूत्र की शुरुआत की है, अर्जुन को उन्होंने कहा है, तब वह मेरी ही व्याख्या है। हे अर्जुन! तुझ दोष-दृष्टि रहित भक्त के लिए इस परम गोपनीय | | जगत को जो दोष-दृष्टि से देखेगा, जगत में उसे कुछ भी श्रेष्ठ ज्ञान के रहस्य को अब मैं कहूंगा।
| दिखाई नहीं पड़ेगा; सत्य की कोई प्रतीति होती नहीं मालूम पड़ेगी; ... दोष-दृष्टि रहित! भक्त की वह व्याख्या है। जब आप किसी सौंदर्य का कोई अनुभव नहीं; काव्य की कोई प्रतीति नहीं; कोई व्यक्ति को दुश्मन की तरह देखते हैं, तब आप उसमें जो खोजते हैं, | | पुलक नहीं; नृत्य का उसे कोई भी आभास नहीं होगा। जगत एक वह दोष के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं होता। ऐसा नहीं कि उसमें | | उत्सव है, यह उसकी प्रतीति नहीं बनेगी। जगत उसे एक उदास दोष ही दोष हैं; क्योंकि कल वही आपका मित्र था और आपको | | व्यवस्था मालूम पड़ेगी। आंसू उसे दिखाई पड़ सकते हैं, मुस्कुराहटें दोष दिखाई नहीं पड़े थे। और कल आपने उसे प्रेम की आंख से | उसकी आंख से खो जाएंगी, ओझल हो जाएंगी। उसे कांटे दिखाई देखा था, और उसमें आपको जो श्रेष्ठ है, उसका दर्शन हुआ था। | पड़ सकते हैं; फूल ? फूल बस तिरोहित हो जाएंगे। और इन सबका
और आज घृणा की आंख से उसी व्यक्ति में जो निकृष्ट है, वह जो जोड़ होगा, वही नास्तिक का जगत है। दिखाई पड़ता है। कल आपको उस व्यक्ति में उज्ज्वल शिखर __दोष-दृष्टि से जगत को देखा जाए, तो नास्तिक के दर्शन का दिखाई पड़े थे, आज उसी व्यक्ति में अंधेरी खाई दिखाई पड़ती है।
| जन्म होता है। लेकिन भक्त जगत को और तरह से देखता है। कल आपने उसकी ऊंचाई को चुना था, आज आप उसकी नीचाई | | कृष्ण कहते हैं कि अब मैं तुझ दोष-दृष्टि रहित भक्त के लिए. को चुन रहे हैं। और आप जो चुनना चाहते हैं, वही आपको दिखाई। रहस्य की बात कहूंगा। पड़ना शुरू हो जाता है।
वह रहस्य की बात कही ही तब जा सकती है, जब दोष-दृष्टि इसे ऐसा समझें कि मैं अगर अपने मकान की खिड़की के पास मौजूद न हो। अन्यथा उसे कहा नहीं जा सकता, क्योंकि कहना खड़ा हूं। बाहर आकाश में चांद निकला है। मैं चांद को देखू, तो | | व्यर्थ है। क्योंकि कहा भी जाए, तो सुना नहीं जा सकता। अगर खिड़की मुझे दिखाई नहीं पड़ेगी; खिड़की भूल जाएगी। चांद दिखाई | | अर्जुन अभी दोष देखने की मनोदशा में हो, तो कृष्ण रहस्य की पड़ेगा; आकाश में घूमते हुए बादल दिखाई पड़ेंगे; खिड़की विस्मृत | परम गोपनीय बात को कहने में समर्थ नहीं हो सकते। अर्जुन सुन हो जाएगी, खिड़की मौजूद ही नहीं होगी। मेरी दृष्टि से, मेरे दर्शन ही न पाएगा। से खिड़की का विलोप हो जाएगा। लेकिन आप चाहें तो अपनी जीसस ने बार-बार बाइबिल में कहा है, जिनके पास आंखें हों, दृष्टि बदल ले सकते हैं; भूल जाएं चांद को, देखें खिड़की को। वे देखें; और जिनके पास कान हों, वे सुन लें; मैं कहे जा रहा हूं,
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