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*गीता दर्शन भाग-44
रात उठा, आधी रात, और उसने कहा, मैं जा रहा हूं। आज्ञा है? जहां दान दान नहीं रह जाता; जहां नीति-अनीति की सब सीमाएं आशीर्वाद है? कबीर ने कहा कि प्रभ तेरी सब भांति सहायता करें। अतिक्रमित हो जाती हैं। जहां सब, जिसे हम धर्म कहते हैं, वह कमाल केवल कबीर की परीक्षा ले रहा है कि बात कहां तक जाती कचरे की भांति नीचे गिर जाता है और व्यक्ति उस परम चैतन्य के है! हद्द इसकी कहां है! कमाल ने कहा, लेकिन अकेला शायद साथ इतना एकरस, एकभूत हो जाता है कि जो करवा रहा है, वही। सामान ज्यादा चुरा लूं, तो लाने में दिक्कत हो। क्या आप भी साथ जो कर रहा है, वही। जिस पर हो रहा है, वही। भेद जहां नहीं, वहां चलने को तैयार हैं? कबीर ने कहा, अब तो नींद टूट ही गई। चलो, नीति कहां? भेद जहां नहीं, वहां दान, धर्म, पुण्य कहां! चला चलता हूं।
भेद जहां नहीं, वही कृष्ण अर्जुन को कह रहे हैं कि अगर तू तब कमाल की बेचैनी बहुत बढ़ने लगी। यह क्या हो रहा है! | तत्वविद हो जाए, तो कौन मारता है और कौन मरता है! पागलों की कबीर! और चोरी को जा रहा है! पर कमाल ही था, उसका बेटा बातें हैं। न कोई मरता, और न कोई मारता है। और ये जो सामने ही था, उसने कहा, इतनी जल्दी छुटकारा ठीक नहीं। बात पूरे | तेरे खड़े हैं, इनमें भी वही है, जो कभी मरता नहीं। और तू जो लड़ने लाजिकल एंड, तर्क के अंत तक ले जानी जरूरी है, तभी शायद | खड़ा है, तुझमें भी वही है, जो कभी मरता नहीं। और जो ये देहें पहचान हो पाए कि यह मजाक है या गंभीरता है।
खड़ी हैं, ये देहें तो मर ही जाती हैं। जाकर उसने सेंध लगाई। कबीर पास खड़ा रहा। सेंध लगाते ___ कृष्ण का यह जो संदेश है, बहुत एमारल है, बहुत अतिनैतिक वक्त उसका हाथ कंपता था। कभी चोरी की नहीं। कभी चोरी का है। इसलिए जिन लोगों ने—ड्यूसन ने, या शापेनहार ने जब पहली सोचा नहीं। लेकिन कबीर ने उससे कहा, तेरा हाथ क्यों कंपता है? दफा गीता पढ़ी, तो बहुत घबड़ा गए। घबड़ा गए, क्योंकि इसका चोरी ही कर रहे हैं न, कुछ बुरा तो नहीं कर रहे! कबीर के बेटे ने मतलब क्या हुआ? इतनी अतिनैतिक बात, तो हमारी नीति का क्या अपने सिर पर हाथ ठोंक लिया। उसने कहा, हद्द हो गई। चोरी ही होगा? हमारी नीतिमत्ता का क्या होगा? हमारी मारैलिटी का क्या कर रहे हैं, कछ बरा तो नहीं कर रहे हैं। अब बरा और क्या होता होगा? अगर दान भी व्यर्थ हो जाता है. तप भी व्यर्थ हो जाता है. है? कबीर ने कहा, यह हाथ का कंपना बहुत बुरा है। जब चोरी कर यज्ञ भी व्यर्थ हो जाता है, वेद भी व्यर्थ हो जाते हैं, तो सभी कुछ रहे हैं, तो पूरी कुशलता से करनी चाहिए।
व्यर्थ हो जाता है, जिसे हमने आधार समझा है। . . योग कर्म की कुशलता है; हाथ न कंपे।
निश्चित ही, जो परम आधार की तरफ चलता है, उसके लिए फिर कमाल भीतर गया, और एक बोरा गेहूं खींचकर बाहर . हमारे समाज के द्वारा दिए गए सभी आधार व्यर्थ हो जाते हैं। लेकिन लाया। कबीर ने उसे खींचने में सहायता दी। और जब कमाल उसे | वह अनैतिक नहीं हो जाता; वह अतिनैतिक हो जाता है। वह अपने कंधे पर रखने लगा, उठाने लगा, तो कबीर ने कहा, रुक। | इम्मारल नहीं होता, एमारल हो जाता है या सुपर मारल हो जाता है। घर के लोगों को बता आया कि नहीं? घर के लोगों को जाकर कम शायद वही परम नैतिकता है, सुप्रीम मारैलिटी है। समस्त नीति के से कम कह दे कि हम एक बोरा चुराकर लिए जा रहे हैं! कमाल ने | पार हो जाना ही शायद परम नीति है। और समस्त धर्मों के ऊपर कहा, यह चोरी हो रही है या क्या हो रहा है!
उठ जाना ही शायद परम धर्म है। और जब कमाल ने कबीर से पूछा कि इस सबका मतलब क्या कृष्ण ने यह उल्लंघन की बात कही है कि इन सबका उल्लंघन है? तो कबीर ने कहा कि जब से हम न रहे, वही रह गया, तो अब करके, वह सनातन पद को, परम पद को प्राप्त होता है। वह फिर किसकी चोरी, और कौन करे! और कौन दान दे और कौन ले? ब्रह्म जैसा हो जाता है। वह ब्रह्म ही हो जाता है। उसी का माल है। वही वहां सोते सोच रहा है कि मेरा है। मैं भी आज इतना ही। उसी का। वही मेरे भीतर कह रहा है कि ले चलो। वही सुबह कीर्तन लेकिन अभी उठेंगे नहीं। एक पांच मिनट और। पांच मिनट करने आएगा। उससे कैसे कहूं कि बिना भोजन किए जाओ? सभी | अपनी जगह ही आप बैठे रहेंगे। हमारे संन्यासी कीर्तन करेंगे। उसका है।
अंतिम दिन का उनका प्रसाद लेकर जाएं। अपनी जगह पर ही इस तल पर उठ जाने की भी संभावना है तत्वविद की। तत्वविद कीर्तन में सम्मिलित हों। निश्चित ही इस तल पर उठ जाता है, जहां चोरी चोरी नहीं रह जाती;
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