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________________ गीता दर्शन भाग-4* धूमो रात्रिस्तथा कृष्णः षण्मासा दक्षिणायनम् । | संभावनाएं हैं। एक संभावना है कि पुरुष के शरीर की काम ऊर्जा तत्र चान्द्रमसं ज्योतियोंगी प्राप्य निवर्तते । । २५।। स्त्री के शरीर की ओर, बाहर की तरफ बहे। या स्त्री की काम ऊर्जा शुक्लकृष्णे गती ह्येते जगतः शाश्वते मते। पुरुष शरीर की ओर, बाहर की ओर बहे। यह बहिर्गमन है। एकया यात्यनावृत्तिमन्ययावर्तते पुनः । । २६ ।। फिर दो स्थितियां और हैं। काम ऊर्जा काम-केंद्र पर इकट्ठी हो तथा जिस मार्ग में धूम है और रात्रि है, तथा कृष्णपक्ष है और ऊर्ध्वगामी हो, ऊपर की तरफ बहे, सहस्रार तक पहुंच जाए। और दक्षिणायण के छः माह हैं, उस मार्ग में मरकर गया | उस संबंध में हमने कल बात की। एक और संभावना है कि काम हुआ योगी, चंद्रमा की ज्योति को प्राप्त होकर स्वर्ग में अपने ऊर्जा ऊपर की ओर भी न बहे. बाहर की ओर भी न बहे. तो स्वयं शुभ कर्मों का फल भोगकर पीछे आता है। के शरीर में ही नीचे के केंद्रों की ओर बहे। इस स्वयं के ही शरीर क्योंकि जगत के ये दो प्रकार के शुक्ल और कृष्ण अर्थात में काम-केंद्र से नीचे की ओर ऊर्जा का जो बहना है, वही देवयान और पितृयान मार्ग सनातन माने गए हैं। इनमें एक दक्षिणायण है। अर्चिमार्ग के द्वारा गया हुआ पीछे न आने वाली परम गति निश्चित ही, ऐसा पुरुष स्त्री से मुक्त मालूम पड़ेगा। ठीक वैसा को प्राप्त होता है। और दूसरा धूममार्ग द्वारा गया हुआ पीछे | ही मुक्त मालूम पड़ेगा जैसा ऊर्ध्वगमन की ओर बहती हुई चेतना __आता है अर्थात जन्म-मृत्यु को प्राप्त होता है। मालूम पड़ेगी। लेकिन दोनों में एक बुनियादी फर्क होगा। और वह फर्क यह होगा कि बाहर का गमन तो दोनों का बंद होगा, लेकिन जिसने दमन किया है अपने भीतर, उसकी ऊर्जा नीचे की ओर ना व्यक्ति प्रभु की साधना में लीन उत्तरायण के मार्ग से बहेगी और जिसने अपने भीतर ऊर्ध्वगमन की यात्रा पर प्रयोग किए II मृत्यु को उपलब्ध होता है, उसकी पुनःवापसी नहीं | । हैं, उसकी ऊर्जा ऊपर की ओर बहेगी। होती है। इस संबंध में कल हमने बात की। काम-केंद्र से नीचे भी ठीक वैसे ही छः सेंटर हैं, जैसे छः सेंटर लेकिन दक्षिणायण के मार्ग पर जी रहा व्यक्ति भी साधना में | | काम-केंद्र के ऊपर हैं। इन छः पर अगर ऊर्जा बहे, तो भी कुछ संलग्न हो सकता है, साधना की कुछ अनुभूतियां और गहराइयां | अनुभूतियां उपलब्ध हो सकती हैं। हठयोग की अधिक क्रियाएं. भी उपलब्ध कर सकता है, लेकिन वैसे व्यक्ति की मृत्यु ज्यादा से | | काम ऊर्जा को बाहर से रोक लेती हैं, लेकिन ऊपर की तरफ ज्यादा स्वर्ग तक ले जाने वाली होती है, मोक्ष तक नहीं। और स्वर्ग प्रवाहित नहीं कर पातीं। शरीर में ही अंतप्रवाह शुरू हो जाता है नीचे में उसके कर्मफल के क्षय हो जाने पर वह पुनः वापस पृथ्वी पर लौट की ओर, पैरों की तरफ। आता है। इस संबंध में पहले कुछ प्राथमिक बातें समझ लेनी । ऐसा साधक भी अनेक उपलब्धियों को पा सकता है। लेकिन चाहिए, फिर हम दक्षिणायण की स्थिति को समझें। ऐसे साधक की जो उपलब्धियां हैं, पश्चिम में जिसे ब्लैक मैजिक एक, जिस व्यक्ति की काम ऊर्जा बहिर्मुखी है, बाहर की तरफ | कहते हैं और पूरब में जिसे मैली विद्या कहते हैं, उस तरह की होंगी। बह रही है, और जिस व्यक्ति की कामवासना नीचे की ओर | फिर भी इस साधक की एक क्षमता तो तय ही है कि इसने काम प्रवाहित है, वैसा व्यक्ति, कामवासना नीचे की ओर बहती रहे, तो | ऊर्जा को बाहर जाने से अवरुद्ध किया है। तो जीवन के प्रवाह में भी अनेक प्रकार की साधनाओं में संलग्न हो सकता है, योगी भी | बायोलाजिकल जो श्रृंखला है, जीवन के उस प्रवाह से तो यह बन सकता है। | आदमी बाहर हो गया। और यह जो बाहर हो जाना है, यही इसका और अधिकतर जो योग-प्रक्रियाएं दमन, सप्रेशन पर खड़ी हैं, वे | पुण्य है। इस पुण्य के बल पर यह व्यक्ति गहनतम सुखों को पा काम ऊर्जा को ऊर्ध्वगामी नहीं करती हैं, केवल काम ऊर्जा के | | सकेगा; आनंद को नहीं। अधोगमन को अवरुद्ध कर देती हैं, रोक देती हैं। तो ऊर्जा काम-केंद्र | | गहनतम सुखों को पाने की अवस्था का नाम ही स्वर्ग है। यह पर ही इकट्ठी हो जाती है, उसका बहिर्गमन बंद हो जाता है। | ऐसे सुख पा सकेगा, जो बाहर ऊर्जा बहती हो, वैसे व्यक्ति ने कभी इसे थोड़ा ठीक से समझ लें। | भी नहीं जाने होंगे। लेकिन यह वैसा आनंद कभी न पा सकेगा, काम-केंद्र पर, सेक्स सेंटर पर ऊर्जा इकट्ठी हो, तो तीन जैसा आनंद ऊपर की ओर बहती हुई ऊर्जा के मार्ग में उपलब्ध होता 238
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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