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________________ *गीता दर्शन भाग-42 अव्यक्तोऽक्षर इत्युक्तस्तमाहुः परमां गतिम् । | आप उसके पार हाथ न डाल सकें, और इतनी भी बढ़ाई जा सकती यं प्राप्य न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ।। २१।। | है कि आप उसके ऊपर बैठे रहें और नीचे जो पंखा चल रहा है, पुरुषः स परः पार्थ भक्त्या लभ्यस्त्वनन्यया। वह आपको थिर मालूम पड़े। इतनी तेजी से घूम सकता है कि दो यस्यान्तःस्थानि भूतानि येन सर्वमिदं ततम् ।। २२ ।। । | पंखुड़ियों के बीच की जो खाली जगह है, जब तक आपको उस और जो वह अव्यक्त अक्षर ऐसे कहा गया है उस ही अक्षर | | खाली जगह का पता चले, उसके पहले ही दूसरी पंखुड़ी आपके नामक अव्यक्त भाव को परम गति कहते हैं, तथा जिस | नीचे आ जाए, तो आपको कभी भी पता नहीं चलेगा। पता चलने सनातन अव्यक्त को प्राप्त होकर मनुष्य पीछे नहीं आते हैं, | में समय चाहिए। और अगर तीव्रता से घूमती हो गति और हमारी वह मेरा परम धाम है। | पकड़ने की क्षमता कम पड़ती हो, तो गति का पता नहीं चलता। और हे पार्थ, जिस परमात्मा के अंतर्गत सर्वभूत हैं और जिस पत्थर भी चल रहे हैं, उनका अणु-अणु घूम रहा है। दीवालें भी परमात्मा से यह सब जगत परिपूर्ण है, वह सनातन अव्यक्त चल रही हैं, उनका अणु-अणु घूम रहा है। उतनी ही तेज गति से परम पुरुष अनन्य भक्ति से प्राप्त होने योग्य है। उनका अणु घूम रहा है, जितनी तेज गति से आकाश में चांद-तारे घूम रहे हैं। इस जगत में कुछ भी थिर नहीं है। . एडिंग्टन ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि जीवनभर पदार्थों का ति संसार का स्वभाव है। ठहरना नहीं और चलते ही | की खोज करने के बाद एक शब्द मुझे ऐसा मिला है मनुष्य की भाषा ण रहना, ऐसा संसार का स्वरूप है। यहां कुछ भी ठहरा | | में, जो कि नितांत ही झूठ है, और वह शब्द है, रेस्ट, ठहराव। कोई हुआ नहीं है; जो ठहरा हुआ मालूम होता है, वह भी चीज ठहरी हुई नहीं है। इसलिए जब भी हम कहते हैं किसी चीज ठहरा हुआ नहीं है। जो चलता हुआ मालूम होता है, वह तो चलता | को एट रेस्ट, तो हम गलत ही कहते हैं। कोई चीज ठहरी हुई नहीं हुआ है ही; जो ठहरा हुआ मालूम होता है, वह भी चलता हुआ है। | है। कोई चीज ठहरी हुई हो नहीं सकती है। इस जगत में होने के पत्थर ठहरे हुए मालूम पड़ते हैं, मकानों की दीवालें ठहरी हुई मालूम | लिए चलना ही नियम है। पड़ती हैं, लेकिन अब विज्ञान कहता है, वे सब भी चलती हुई हैं। मैंने कहा, बहुआयामी है यह गति। आप यहां बैठे हुए मालूम और यह गति बहुआयामी है, मल्टी-डायमेंशनल है। इसे हम थोड़ा | पड़ रहे हैं। निश्चित ही, आप बिलकुल बैठे हुए हैं, चल नहीं रहे समझें, तो परम गति का हमें खयाल आ सके कि वह क्या है। । हैं। लेकिन जिस पृथ्वी पर आप बैठे हैं, वह बड़ी तेजी से भागी जा दीवाल दिखती है ठोस, जरा भी चलती हुई नहीं, लेकिन रही है। उस पृथ्वी की दोहरी गति है। आप बैठे हुए हैं जिस पृथ्वी वैज्ञानिक कहते हैं, दीवाल का अणु-अणु चल रहा है। अगर | | पर, वह पृथ्वी अपनी कील पर घूम रही है। और अपनी कील पर दीवाल के हम परमाणुओं को देखें, तो सब परमाणु गतिमान हैं। ही नहीं घूम रही, कील पर घूमती हुई वह सूर्य का चक्कर भी लगा और प्रत्येक परमाणु के भीतर जो और छोटे खंड हैं, इलेक्ट्रांस, वे रही है। दोहरी गति है उसकी। और जिस सूर्य का वह चक्कर लगा बड़ी तीव्र गति से चक्कर काट रहे हैं। हमें दीवाल थिर दिखाई पड़ती। रही है, वह सूर्य भी अपनी कील पर घूम रहा है इस पृथ्वी को लिए। है, क्योंकि हमारी आंखें उतनी सूक्ष्म गति को पकड़ने में असमर्थ और अपने सब ग्रहों को लेकर वह सूर्य भी किसी महासूर्य का हैं। गति जितनी तीव्र हो जाती है, उतनी ही हमारी आंख पकड़ने में | परिभ्रमण कर रहा है। मुश्किल हो जाती है। ऐसा मल्टी-डायमेंशनल, गति के भीतर गति है, और गति के जैसे एक बिजली का पंखा बहुत जोर से चलता है, तो आपको भीतर गति है। शायद जिस महासूर्य का यह सूर्य चक्कर लगा रहा पता नहीं चलता है कि उसमें तीन पंखुड़ियां हैं, चार पंखुड़ियां हैं या है, और अनेक सूर्य चक्कर लगाते होंगे, वह सूर्य भी अपनी कील दो पंखुड़ियां हैं। अगर पंखा और भी तेजी से चले, तो आपको यह पर घूमकर और किसी महान से महानं सूर्य के चक्कर पर निकला भी पता नहीं चलेगा कि पंखे में पंखुड़ियां हैं। ऐसा ही पता चलेगा होगा। परिभ्रमण, पौं-पों में, जीवन का स्वभाव है। कि गोल टीन का घेरा ही घूम रहा है। इस परिभ्रमणशील जीवन में शांति असंभव है। इस गति से भरे वैज्ञानिक कहते हैं कि पंखे की गति इतनी बढ़ाई जा सकती है कि हुए, भागते हुए जगत में कोई विश्राम संभव नहीं है। और जब आप 108
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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